पुलिस थानों में मानवाधिकारों के लिए सबसे बडा संकट !- मुख्य न्यायाधीश एन वी रमणा
पुलिस की ‘थर्ड डिग्री’ से कोई भी नहीं बच सकता !
मुख्य न्यायाधीश भी वही बात कह रहे हैं, जो साधारण नागरिकों को अनेक बार सहन करनी पडती है । इससे पुलिस की राक्षसी प्रवृत्ति एक बार पुनः स्पष्ट होती है ! ऐसी जनविरोधी पुलिस पर अंकुश लगाने के लिए मुख्य न्यायाधीश ने ही पहल करनी चाहिए, ऐसा ही सामान्य जनता को लगता है ! – संपादक
नई दिल्ली – ‘पुलिस थानों में मानवाधिकारों के लिए सर्वाधिक संकट हैं, समाज में विशेषाधिकार प्राप्त लोगों पर भी ‘थर्ड डिग्री’ (पुलिस हिरासत में की जाने वाली पिटाई एवं मानसिक उत्पीडन) का प्रयोग किया जाता है’, ऐसा वक्तव्य भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमणा ने किया । वे ‘भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (‘नैशनल लीगल सर्विसेस अथाॅरिटी ऑफ इंडिया’) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे ।
Threat To Human Rights & Bodily Integrity Highest At Police Stations : CJI NV Ramana https://t.co/Uzhcp1Whqc
— Live Law (@LiveLawIndia) August 8, 2021
मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि,
१. पुलिस हिरासत में होने वाला उत्पीडन एवं पुलिस के अत्याचार ये समस्याएं अभी भी हमारे समाज को त्रस्त कर रही हैं । (अंग्रेजाें के शासनकाल में निर्दोष भारतीयों पर पुलिस द्वारा अत्याचार किए गए हैं । स्वतंत्रता के ७४ वर्षोंपरान्त भी पुलिस द्वारा जांच के नाम पर निर्दोष लोगों पर अत्याचार किए जा रहे हैं, यह भारत के लिए लज्जाजनक ! हिन्दू राष्ट्र में ऐसा नहीं होगा ! – संपादक)
२. बंदी बनाए गए अथवा पुलिस द्वारा हिरासत में लिए व्यक्तियों को संविधान ने कुछ अधिकार प्रदान किए हैं । ऐसा होते हुए भी पुलिस थानों में इसकी अनदेखी किए जाने के कारण, बंदियों को असुविधा हो रही है । (इससे पता चलता है कि पुलिस थानों में कैसी जनविरोधी गतिविधियां की जाती हैं । ऐसी पुलिस क्या कानून एवं व्यवस्था बनाए रख सकती है ? – संपादक)
३. यह आवश्यक है कि पुलिस के अत्याचार रोकने के लिए कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार एवं निःशुल्क कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता की जानकारी का प्रचार-प्रसार किया जाए । प्रत्येक पुलिस थाने एवं कारागृह में इस जानकारी से संबंधित फलक एवं बाहर पट-विज्ञापन (होर्डिंग) लगाना, यह इस दिशा में एक मार्गदर्शक पदचिन्ह (कदम) होगा । (ध्यान दें कि अब तक के सर्वदलीय शासकों ने ऐसा नहीं किया है ! इसे शीघ्रातिशीघ्र लागू करने के लिए न्यायपालिका ने ही प्रयास करने चाहिए, ऐसा ही जनता को लगता है ! – संपादक)
४. न्याय प्राप्त करने के संदर्भ में सबसे विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति तथा सबसे दुर्बल व्यक्ति के मध्य का अंतर घटाने की आवश्यकता है । हमारे देश में विद्यमान सामाजिक एवं आर्थिक विविधता की वास्तविकता कभी भी अधिकारों से वंचित करने का कारण नहीं हो सकती है ।
५. यदि न्यायप्रणाली एक संस्था के रूप में लोगों का विश्वास अर्जित करना चाहती है, तो हमें प्रत्येक को आश्वस्त करना होगा कि ‘हम आपके लिए वहां हैं’। प्रदीर्घ कालावधी से समाज के असुरक्षित वर्ग न्यायप्रणाली से वंचित रहे हैं । (यह भारत के लिए लज्जाजनक है ! – संपादक)
६. कोरोना महामारी होते हुए भी हम कानूनी सहायता सेवा जारी रखने में सफल हुए हैं ।