परात्पर गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञभाव में रहनेवालीं जयपुर (राजस्थान) निवासी सनातन की संत पू. गीतादेवी खेमकाजी
पू. गीतादेवी खेमकाजी के चरणों में जन्मदिन के अवसर पर सनातन परिवार की ओर से कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार !
सनातन की ८३ वीं संत पू. गीतादेवी खेमकाजी का ७९ वां जन्मदिन भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी (२८.८.२०२१) को है । इस अवसर पर उनकी बेटी और पोते को ध्यान में आई पू. खेमकाजी की गुणविशेषताएं आगे दी हैं ।
श्रीमती पुष्पा गोयल (बेटी), जयपुर, राजस्थान
१. बेटी को साधना में सहायता करना : ‘पू. माताजी मेरे नामजप आदि उपचारों का ब्योरा लेती हैं । यदि मेरे नामजप आदि उपचार अल्प हुए, तो वे मुझे इनका भान करवाती हैं । इस कारण मेरे नामजप करने के प्रयास में वृद्धि हो रही है ।
२. पू. माताजी अखंड भावस्थिति एवं गुरुदेवजी के सान्निध्य में रहती हैं ।’ (२६.७.२०२१)
श्री. आकाश गोयल (पोता), भाग्यनगर, तेलंगाना
१. निरंतरता एवं दृढता : ‘पू. नानीजी नियमित रूप से व्यायाम करती हैं । वे नियमित रूप से पोथीवाचन एवं मंत्रजप करती हैं तथा प्रतिदिन नामजपादि उपचार लगन से पूर्ण करती हैं ।
२. समय का पालन करना : पू. नानीजी ‘सवेरे उठना, व्यायाम करना, व्यक्तिगत काम निपटाना और नामजप’ आदि कृतियां ठीक समय पर करती हैं ।
३. अन्यों की सहायता करना : पू. नानीजी की आयु ७८ थी, तब डेढ मास के लिए हमारे घर आई थीं । उस समय रसोई में वे मेरी मां की सहायता करती थीं ।
४. अल्प अहं : पू. नानीजी संत हैं, तब भी वे पूछती हैं कि उन्हें और क्या प्रयास करने चाहिए ।
५. श्रद्धा : कोरोना के कारण मेरे मामा सुदीप खेमकाजी (पू. दादीजी के सुपुत्र) की मृत्यु हुई । उस समय भी परात्पर गुरुदेवजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) के प्रति पू. नानीजी की श्रद्धा डगमगाई नहीं । पू. नानीजी इस दुःखभरे प्रसंग में भी स्थिर रहकर परिवार के अन्य सदस्यों को सांत्वना देती रहती थीं ।
६. कृतज्ञभाव : ‘परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से ही मेरे सर्व प्रयास होते हैं’, ऐसा उनका अखंड भाव रहता है ।
७. पू. नानीजी के संदर्भ में हुई अनुभूति – पू. नानीजी के घर आने पर अनुभव हो रहा कष्ट एवं साधक का आध्यात्मिक कष्ट अल्प होकर साधक को साधना के प्रयास करने के लिए ऊर्जा मिलना : पू. नानीजी के हमारे घर आने से पूर्व घर में कष्ट अनुभव होता था । उस समय मेरे आध्यात्मिक कष्ट भी बढ गए थे । पू. नानीजी के घर आने के पश्चात घर में अनुभव हो रहे कष्ट और मेरे आध्यात्मिक कष्ट भी अल्प होकर मुझे व्यष्टि साधना के प्रयास करने के लिए ऊर्जा प्राप्त हुई ।’ (२६.७.२०२१)