‘आपातकाल’ भी भगवान की एक लीला होने के कारण परात्पर गुरु डॉक्टरजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों में शरणागत होकर आपातकाल का सामना करें !
‘मनुष्य में ‘मैं’ पन होता ही है; परंतु ‘यह ‘मैं’ कौन है ?’, यह किसी को भी ज्ञात नहीं । वर्तमान आपातकाल में साधक अनेक स्तरों पर संघर्ष कर रहे हैं । कोई पारिवारिक, कोई सामाजिक, कोई आर्थिक, कोई शारीरिक, कोई मानसिक, तो कोई बौद्धिक संघर्ष कर रहा है ! आपातकाल अर्थात ईश्वर द्वारा ली जानेवाली मानव की परीक्षा । इस परीक्षा में हमें उत्तीर्ण होना है और श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी की कृपा संपादित करनी है । हमें श्रीराम के वानर और श्रीकृष्ण के पांडव बनना है । आपातकाल हम सभी के लिए एक युद्ध ही है । उसका सामना करना साधना ही है । श्रीविष्णु द्वारा ली जा रही यह परीक्षा हमारे प्रारब्ध और संचित की परीक्षा के साथ ही हमारी गुरुनिष्ठा और श्रद्धा की भी परीक्षा है । यह परीक्षा जितनी कठिन है, उतना ही इस परीक्षा का अंत मधुर एवं आंनददायी है; इसलिए ‘सनातन के तीन गुरु और साधकों का क्या नाता है ?’, यह समझेंगे ।
१. ‘श्रीविष्णु की लीला समझ सके’, ऐसा इस विश्व में कोई भी नहीं !
चराचर जगत के पालक वैकुंठपति श्रीविष्णु ने जब श्रीकृष्णावतार धारण किया, तब अर्जुन को बताया था,
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ।।
– श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १०, श्लोक २
अर्थ : मेरी उत्पत्ति अर्थात ‘लीला द्वारा प्रकट होना’, इसे न देवता जानते हैं, न ही महर्षि; क्योंकि मैं सभी देवताओं और महर्षियों का आदिकारण हूं ।
१ अ. कलियुग में ‘श्रीविष्णु के अवतार परात्पर गुरु डॉक्टरजी का दैवी कार्य समझ सके’, ऐसा कोई भी नहीं : ‘भगवान की लीला समझ सके’, ऐसा कोई भी नहीं । उसी प्रकार कलियुग में ‘श्रीविष्णु के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का दैवी कार्य समझ सके’, ऐसा कोई भी नहीं । देवता, ॠषि-मुनि और भगवद्भक्त-संतों को यह ज्ञात होने से वे ‘ईश्वर की आगामी लीला क्या होगी ?’, यह जानने का प्रयास न कर केवल उनकी लीला आनंद से अनुभव करते हैं और उसकी अनुभूति लेते हैं ।
१ आ. सनातन के आरंभ से अब तक घटित सभी घटनाएं और गुरुदेवजी द्वारा करवाया गया धर्मप्रसार, श्रीमन्नारायण की लीला : सनातन का कार्य आरंभ हुए ३१ वर्ष हो गए हैं । सनातन संस्था की स्थापना भारत के पश्चिमी क्षेत्र में होना, गुरुदेवजी द्वारा एक-एक साधक को ढूंढकर उसे तैयार करना, कालानुसार और चरण-प्रति-चरण साधना सिखाना, ग्रंथ लिखना, ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक प्रकाशित करना, गांव-गांव में प्रवचन और सत्संग लेना, १ सहस्र से अधिक हिन्दू राष्ट्र-जागृति सभाओं का आयोजन करना, धर्मजागृति अभियान चलाना, जालस्थल (वेबसाइट) द्वारा प्रसार करना, विदेश में प्रसार करना, साथ ही हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन आयोजित करना, यह सबकुछ श्रीमन्नारायण की लीला ही है ।
२. भगवान श्रीविष्णु और उनकी २ शक्तियां – ‘श्रीसत्शक्ति’ और ‘श्रीचित्शक्ति’ का कार्य !
२ अ. गुरुदेवजी से जोडे जाने के लिए प्रत्येक की अंतरात्मा को हुई ईश्वरीय प्रेरणा अर्थात ‘श्रीचित्शक्ति’ और अंतरात्मा को गुरुदेवजी के विषय में निर्माण हुई श्रद्धा अर्थात ‘श्रीसत्शक्ति’ ! : भगवान श्रीविष्णु की शक्ति का दूसरा नाम अर्थात श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ! ये दोनों तत्त्वरूप से ‘श्रीसत्शक्ति’ और ‘श्रीचित्शक्ति’ हैं । हम सभी साधक साधना में आए । साधना में आने के लिए कोई तो कारण हुआ और हम गुरुदेवजी से जुड गए । गुरुदेवजी से जुडने के लिए प्रत्येक की अंतरात्मा को हुई ईश्वरीय प्रेरणा अर्थात ‘श्रीचित्शक्ति’ ! गुरुदेवजी से जुडने पर अल्पावधि में प्रत्येक की अंतरात्मा में गुरुदेवजी के विषय में जो श्रद्धा निर्माण हुई, वह अर्थात ‘श्रीसत्शक्ति’ !
२ आ. हिन्दू राष्ट्र-जागृति सभा में जाने की प्रेरणा अर्थात ‘श्रीचित्शक्ति’ और मार्गदर्शन सुनकर धर्म के प्रति कुछ करने का विचार निर्माण करती है, वह ‘श्रीसत्शक्ति’ ! : हमें लगता है कि हिन्दू राष्ट्र-जागृति सभा में इतने सहस्र लोग आए; परंतु गुरुदेवजी ने उन लोगों को सभा में आने की प्रेरणा दी । इसलिए वे आए । वह प्रेरणा अर्थात श्रीचित्शक्ति । प्रेरित होकर आए लोग अनेक घंटे बैठकर मार्गदर्शन सुन पाए और उनमें धर्म के प्रति कुछ करने का विचार निर्माण हुआ, यह श्रीसत्शक्ति है ।
२ इ. गुरुदेवजी ने श्रीचित्शक्ति और श्रीसत्शक्ति के माध्यम से समाज के जिज्ञासुओं द्वारा सेवा करवाना : सत्संग हो अथवा भावसत्संग हो, समाज के शुभचिंतक हों अथवा विज्ञापनदाता हों, न्यायालयीन युक्तिवाद करनेवाले अधिवक्ता हों अथवा धर्मरक्षा हेतु कार्य करनेवाले हों, इन सभी से गुरुदेवजी ने श्रीचित्शक्ति और श्रीसत्शक्ति के माध्यम से सेवा करवा ली । हम सभी साधक श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी, साथ ही श्रीचित्शक्ति और श्रीसत्शक्ति के माध्यम ही हैं । वास्तव में हमें ज्ञात न होते हुए भी सनातन के तीनों गुरुओं ने सभी साधकों से धर्मसंस्थापना का कार्य सहजता से करवा लिया है और आगे भी वे करवा लेंगे ।
३. ‘आपातकाल आना’, यह भगवान की लीला होने के कारण, भगवान श्रीविष्णु द्वारा योगमाया से साधकों के जीवन में अनेक प्रसंग निर्माण करना एवं साधकों के लिए आपातकाल परीक्षा काल होना !
वर्तमान में पृथ्वी पर सर्वत्र भीषण आपातकाल आरंभ हुआ है, यह आपातकाल चरण-प्रति-चरण बढते ही जाएगा । अब तक साधकों के जीवन में घटित सबकुछ यदि भगवान की लीला है, तो आपातकाल भी भगवान की लीला है । ‘आपातकाल आ रहा है तो’, ‘मैं यह करूं कि वह करूं ?’, ‘मैं मनानुसार करूं कि संतों द्वारा बताए अनुसार करूं?’, ऐसी दुविधा मन में निर्माण होगी ही । भगवान श्रीविष्णु अपनी योगमाया से साधकों के जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग निर्माण करेंगे, इसलिए भक्ति करनेवाले सनातन के साधकों की यह परीक्षा होगी ।
ऐसे समय में जो साधक आपातकाल से भयभीत हुए बिना श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी पर दृढ श्रद्धा रखकर उनके बताए अनुसार प्रत्येक कृति करेंगे, ईश्वर उन साधकों का योगक्षेम वहन करेगा । यही सत्य है !
४. आपातकाल में साधकों के शत्रु और मित्र
४ अ. आपातकाल में ‘संदेह’ और ‘नकारात्मक विचार’ साधकों के शत्रु : वर्तमान काल ऐसा है जिसमें ‘संदेह’ और ‘नकारात्मक विचार’ के लिए कोई स्थान ही नहीं है । वे हमारे शत्रु हैं । हमारे स्वभावदोष और अहं के कारण वे हमारे भीतर प्रवेश कर अपना स्थान बनाते हैं । इन शत्रुओं को यदि समय रहते बाहर नहीं किया गया, तो जब वास्तव में प्रसंग घटित होगा, तब यह दोनों हम पर ही आवरण निर्माण करेंगे ।
वे हमारे शत्रु हैं । हमारे स्वभावदोष और अहं के कारण वे हमारे भीतर प्रवेश कर अपना स्थान बनाते हैं । इन शत्रुओं को यदि समय रहते बाहर नहीं किया गया, तो जब वास्तव में प्रसंग घटित होगा, तब ये दोनों हम पर ही आवरण निर्माण करेंगे । हमें लगता है, ‘हमें प्रकाश क्यों नहीं दिखाई देता? मार्ग क्यों नहीं मिलता ?’; परंतु तब भी हम संदेह एवं नकारात्मक विचार करना नहीं छोडते ।
४ आ. आपातकाल में ‘श्रद्धा’ और ‘शरणागति’ ही साधकों के मित्र : इस आपातकाल में प्रत्येक कृति विचारपूर्वक करना महत्त्वपूर्ण है; परंतु अब विचार करने का भी समय नहीं है । पहले काल की गति प्रतिदिन परिवर्तित होती थी; किंतु अब वह प्रत्येक घंटे में परिवर्तित हो रही है । ऐसे आपातकाल में ‘क्या मैं जीवित रहूंगा ?’, ऐसे विचार मन में आने पर ‘श्रद्धा’ और ‘शरणागति’ ही हमारे मित्र हैं । आपातकाल में ईश्वर सनातन के तीनों गुरुओं के माध्यम से साधकों की परीक्षा लेंगे । गुरु शिष्य की परीक्षा लेते हैं और उसे उत्तीर्ण होने का मार्ग भी दिखाते हैं । इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए तीनों गुरुओं ने साधकों को ‘श्रद्धा’ और ‘शरणागति’ का मार्ग दिखाया है ।
४ इ. आपातकाल का प्रवाह ईश्वर द्वारा निश्चित होने से उसे रोकने की शक्ति किसी में भी न होना और आपातकाल का सामना करने हेतु ‘गुरुदेवजी की शरण जाना’, यही एकमात्र विकल्प होना : आपातकाल का प्रवाह ईश्वर द्वारा निश्चित किया गया है । उस प्रवाह को रोकने की शक्ति किसी में भी नहीं है । श्रीविष्णु के हाथ से जब सुदर्शनचक्र छूटता है, तो उसे दिया गया कार्य पूर्ण कर ही वह वापस श्रीविष्णु की कनिष्ठा (सबसे छोटी उंगली) पर जाता है । आपातकाल भी श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी का सुदर्शनचक्र ही है । इस आपातकाल में शरण जाने के अतिरिक्त अन्य कोई भी मार्ग हमारे पास नहीं है । अर्जुन श्रीकृष्ण के चरणों में शरणागत हुआ, तभी उसे उसका मार्ग प्राप्त हुआ और उसने सभी भय और नकारात्मक विचारों का त्यागकर युद्ध किया । ‘गुरुदेवजी की शरण जाना’, यही एकमात्र पर्याय है । गुरुदेवजी को ज्ञात है कि इस आपातकाल से साधकों की किस प्रकार रक्षा करनी है । ‘उन्होंने साधकों को जिस प्रवाह में छोडा है, उस प्रवाह में मार्ग भी वे ही दिखाएंगे’, ऐसी हम श्रद्धा रखेंगे और उनके चरणों में शरणागत होकर आपातकाल का सामना करेंगे ।
५. सनातन के तीनों गुरुओं के चरणों में प्रार्थना !
हे श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, हे श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और हे श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, इस आपातकाल में हम साधक जीवों को साधना के बल पर आपातकाल से तरने का मार्ग दिखाईए । हम अज्ञानी और मूर्ख हैं । हमें कुछ भी ज्ञात नहीं । आप ही हमसे साधना करवाएं । हम सभी साधक आपके चरणों में शरण आए हैं । मार्ग भी आप, ध्येय भी आप और महाकाल भी आप ही है । ‘हम साधकों की प्रार्थना स्वीकार कर हम सभी को आपातकाल से हिन्दू राष्ट्र की ओर ले जाएं’, यही आपके चरणों में प्रार्थना है ।’
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.