चीन ने वर्ष २००७-०८ में भारत और अमेरिका की परमाणु संधि रोकने के लिए भारत के कम्युनिस्ट नेताओं को संपर्क किया था !
सेवा निवृत्त चार्टर्ड अधिकारी विजय गोखले का पुस्तक के माध्यम से आरोप !
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नई दिल्ली – भारत और अमेरिका के बीच वर्ष २००७-०८ में किए गए परमाणु समझौते को रोकने के लिए चीन ने भारत के कम्युनिस्ट नेताओं से संपर्क किया था । साथ ही भारत के इन नेताओें के माध्यम से चीन ने देश में विरोधी पार्टी निर्माण करने का प्रयास किया था, ऐसा दावा भारत के सेवा निवृत्त विदेश सचिव विजय गोखले ने किया है । गोखले की ‘द लांग गेम : हाउ द चायनीज़ नेगोशिएट विद इंडिया’ (लंबा खेल : चीनी भारत से किस प्रकार लेनदेन करते हैं ?) यह पुस्तक प्रकाशित कर इसमें अनेक खुलासे किए गए हैं, ऐसा कहा जा रहा है । विदेश मंत्रालय में वर्ष २००७-०९ के काल में गोखले अतिरिक्त सचिव के तौर पर कार्यरत थे । भारत और अमेरिका के बीच परमाणु संधि में परमाणु और तंत्रज्ञान के क्षेत्र में दोनो देशों मे एक दूसरे को सहयोग करने की बात थी । इस समझौते के कारण दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध बढने लगे ।
In his exclusive interview to CNN-News18’s @rupashreenanda, CPI(M) general secretary Sitaram Yechury rubbishes claims made by former foreign secretary Vijay Gokhale in his book, ‘The Long Game’.https://t.co/FCCt1x8S6e
— News18.com (@news18dotcom) August 3, 2021
गोखले ने इस पुस्तक में कहा है कि,
१. चीन के भारत की ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया’ और ‘कम्युनिस्ट पाटीॅ ऑफ इंडिया (माक्सर्वादी)’ इन दोनो कम्युनिस्ट पार्टियों से घनिष्ठ संबंध थे । चीन ने इन कम्युनिस्ट पार्टियों के माध्यम से इस परमाणु समझौते का विरोध करने का प्रयास किया था । भारत की आंतरिक राजनीति में चीन की ओर से हस्तक्षेप करने का यह बहुधा पहला प्रयास होना चाहिए ।
२. सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंध इनके साथ अन्य सूत्रों पर दोनी कम्युनिस्ट पार्टियों की भूमिका राष्ट्रवादी थी; लेकिन चीन को भारत और अमेरिका के बीच होने वाले परमाणु समझौते की चिंता सता रही थी । इस कारण भारत और अमेरिका के बीच होने वाले परमाणु समझौते में चीन की ओर से हस्तक्षेप करने का प्रयास हुआ ।
३. उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की गठबंधन सरकार में कम्युनिस्टवादियों का कितना प्रभाव है, इस विषय में चीन को कल्पना थी और भारतीय अमेरिका की ओर झुकेंगे इस डर से चीन ने यह खेल खेला । यह करते समय ‘स्वयं परदे के पीछे रहेंगे’ ऐसी सावधानी चीन ने बरती ।
४. चीन ने इसके अतिरिक्त कम्युनिस्टों के नजदीक माने जाने वाली मीडिया का भी इसके लिए प्रयोग किया । इस समझौते को लेकर मीडिया में विचारों के स्तर पर संदेह था । (राष्ट्र विरोधी मीडिया को ढूंढ कर उनको देश की जनता के सामने उजागर करना चाहिए और ऐसों का जनता द्वारा बहिष्कार होना चाहिए ! – संपादक)
(कहते हैं) ‘चीन के कारण हमने परमाणु समझौते का विरोध नहीं किया !’ – माकपा के अध्यक्ष प्रकाश करात ने इस दावे को नकारा
कम्युनिस्ट पार्टियों ने चीन को भारत विरोध में सहायता की होगी, इस बात को वे कभी स्वीकार करेंगे क्या ? – संपादक
विजय गोखले के दावे को माकपा के अध्यक्ष प्रकाश करात ने नकार दिया है । करात ने कहा कि, परमाणु समझौते का विरोध करने के विषय में चीन से हमारी कोई भी चर्चा नहीं हुई । इस समझौते के कारण भारत और अमेरिका के संबंध मजबूत होने वाले थे; इसलिए हमने परमाणु समझौते का विरोध किया । (भारत और अमेरिका के संबंध सुधरे, तो कम्युनिस्ट पार्टी के पेट में दर्द क्यों होता है ? भारत चीन को छोड़ अमेरिका के पास जाने के कारण और अमेरिका और चीन शत्रु होने के कारण कम्युनिस्ट पार्टी ने इसका विरोध किया, यह ध्यान दें ! – संपादक) इस समझौते से भारत को कुछ भी लाभ नहीं हुआ ।