सनातन की सर्वांगस्पर्शी ५ सहस्र ग्रंथसंपदा सभी भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में प्रकाशित हो, इस हेतु ग्रंथ-निर्मिति की व्यापक सेवा में सम्मिलित हों !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलन किए जा रहे ग्रंथों में से मई २०२१ तक ३३८ से अधिक ग्रंथ एवं लघुग्रंथों की निर्मिति हो चुकी है तथा अन्य लगभग ५ सहस्र से भी अधिक ग्रंथों की निर्मिति की प्रक्रिया और अधिक गति से होने हेतु अनेक लोगों की सहायता की आवश्यकता है । आप अपनी रुचि एवं क्षमता के अनुसार लेखन का संकलन, संरचना एवं विविध भाषाओं में उनका अनुवाद करना इत्यादि ग्रंथ-निर्माण से संबंधित कार्य में अपना योगदान दे सकते हैं ।
१. सनातन के आगामी ग्रंथों के कुछ विषय
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित किए जा रहे संभावित ५ सहस्र ग्रंथों का लेखन संगणकीय स्वरूप में तैयार है । आप ऐसे ग्रंथों के संकलन हेतु निश्चित रूप से समय दे सकते हैं, साथ ही अपने परिचितों से भी इस सेवा में सम्मिलित होने का आवाहन कर सकते हैं । भावी युद्धकाल से पूर्व इन सभी ग्रंथों का प्राथमिक संकलन हुआ, तो युद्धकाल उपरांत की भावी पीढी को इन ग्रंथों का प्रत्यक्ष लाभ मिल सकेगा ।
२. ग्रंथ-निर्मिति के कार्य में सम्मिलित होने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए उपलब्ध विविध सेवाएं
२ अ. मराठी भाषा के ग्रंथों का संकलन करना : इसके लिए संगणक पर टंकण करना, साथ ही मराठी भाषा के व्याकरण एवं शब्दरचना का ज्ञान होना आवश्यक है ।
२ आ. लेखन में निहित संस्कृत वचन, श्लोक आदि की पडताल करना तथा उनका मूल संदर्भ लिखना : इसके लिए साधक को संस्कृत भाषा का थोडा-बहुत ज्ञान होना आवश्यक है ।
२ इ. विविध भाषा के ग्रंथ एवं लघुग्रंथों की संगणकीय संरचना करना : इसके लिए ‘इन-डिजाइन’ संगणकीय प्रणाली का ज्ञान होना चाहिए ।
२ ई. हिन्दी, मराठी, कन्नड अथवा अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का अन्य देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद करना : मराठी, हिन्दी, कन्नड अथवा अंग्रेजी भाषा में ग्रंथ उपलब्ध हैं । यह सेवा करने हेतु ‘आप जिस भाषा में अनुवाद करने के इच्छुक हैं’, व्याकरण की दृष्टि से उस भाषा के व्याकरण का उचित ज्ञान होना आवश्यक है । यदि भाषा का ज्ञान है; परंतु व्याकरण की दृष्टि से ज्ञान नहीं है, तो उसका प्रशिक्षण लेना होगा । मूल लेखन के अनुवाद की सेवा करने के लिए MsWord एवं PDF संगणकीय प्रणालियों का ज्ञान होना चाहिए ।
३. ग्रंथ-निर्मिति के कार्य में सहभागी होने हेतु संपर्क करें !
उपरोल्लेखित सेवाएं सनातन के आश्रम में रहकर अथवा घर बैठे भी की जा सकती हैं । ग्रंथ-निर्माण से संबंधित सेवाएं सीखने हेतु इच्छुक व्यक्ति सनातन के आश्रम में २ – ३ सप्ताह रह सकते हैं । उसके आगे आश्रम में रहकर अथवा घर बैठे भी सेवाएं की जा सकती हैं ।
इन सेवाओं के लिए इच्छुक व्यक्ति अपने जनपदसेवकों के माध्यम से निम्नांकित सारणी में दिए अनुसार अपनी जानकारी श्रीमती भाग्यश्री सावंत के नाम से sankalak.goa@gmail.com संगणकीय पते पर भेजें ।
– (पू.) श्री. संदीप आळशी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२६.५.२०२१)
अपातकाल से पूर्व परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
द्वारा संकलित ग्रंथों का प्रकाशित होना आवश्यक !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित; किंतु अभी भी ५ सहस्र से अधिक ग्रंथ अप्रकाशित हैं ! इन ग्रंथों के माध्यम से समाजतक शीघ्रातिशीघ्र इनका ज्ञान पहुंचना आवश्यक है ! इसके कारण निम्नलिखित हैं ।
१. रामराज्य में प्रजा सात्त्विक थी; इसलिए उसे श्रीराम जैसे आदर्श राजा मिले । रामराज्य की भांति सर्वांगसुंदर एवं आदर्श हिन्दू राष्ट्र का अनुभव करना हो, तो वर्तमान समाज का भी सात्त्विक होना अनिवार्य है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी जिन ग्रंथों का संकलन कर रहे हैं, उनमें निहित ज्ञान से समाज सात्त्विक (साधक) बनकर हिन्दू राष्ट्र के लिए पोषक बनेगा और उसी से हिन्दू राष्ट्र बननेवाला है ।
२. तीसरा विश्वयुद्ध, बाढ इत्यादि के रूपों में आनेवाला महाभीषण आपातकाल से हम बचे रहें, तभी हम हिन्दू राष्ट्र देख सकेंगे !
हमने साधना की, तभी हम आपातकाल से बच सकते हैं; क्योंकि साधकों पर भगवान की कृपा होती है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित किए जा रहे ग्रंथों से सुयोग्य तथा आज की पीढी की समझ में आ सके, वैज्ञानिक परिभाषा में तथा काल के अनुसार आवश्यक साधना का ज्ञान मिलता है । इसलिए इन ग्रंथों का महत्त्व अनन्य साधारण है ।
३. प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति एवं रुचि के अनुसार उसे अध्यात्म की शिक्षा मिली, तो उसमें साधना की रुचि बहुत शीघ्र जागृत होती है, कला में रुचि रखनेवाले व्यक्ति को ‘कला के माध्यम से साधना कैसे की जा सकती है ?’, यदि इसका ज्ञान मिले, तो वह व्यक्ति आनंद एवं रुचि के साथ साधना करता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी विविधांग विषयों पर आधारित ग्रंथों का संकलन करते हैं; इसलिए उस माध्यम से अनेक लोग अपनी-अपनी प्रकृति एवं रुचि के अनुसार साधना की ओर शीघ्र मुड पाएंगे ।
४. हिन्दू राष्ट्र तो कुछ सहस्र वर्षाें तक टिका रहेगा; परंतु ग्रंथों में विद्यमान ज्ञान अनंत काल तक टिका रहता है; इसलिए जैसे हिन्दू राष्ट्र का शीघ्र आना आवश्यक है, वैसे ही आपातकाल एवं विश्वयुद्ध आरंभ होने से पूर्व इन ग्रंथों का प्रकाशन करने के लिए हमें शीघ्रता करनी होगी ।
– (पू.) श्री. संदीप आळशी, सनातन के ग्रंथों के एक संकलनकर्ता