‘मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं ।’, के अनुसार जिनका प्रत्येक वाक्य और शब्द मंत्र की भांति कार्य करता है’, ऐसे सनातन के साधकों के लिए संजीवनी बने ३ महान गुरु !
‘आजकल कोरोना विषाणु के कारण भारत एवं विश्व के सभी देशों में हाहाकार मचा हुआ है । मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन बाधित हो गया है । एक विषाणु ने विज्ञान में प्रगत मनुष्य को असहाय बना दिया है । ‘यह विषाणु कब नष्ट होगा ?, यह बताना संभव नहीं । ‘संत एवं ऋषि-मुनि जिस आपातकाल की बात कर रहे थे, वह आपातकाल अब विश्व के द्वार पर आ पहुंचा है । आज के समय में पृथ्वी पर बुद्धि से परे घटनाएं होती हुई दिख रही हैं । ऐसे भीषण आपातकाल में सनातन के साधकों का आधार बन उनका मार्गदर्शन करनेवाले सनातन के साधकों को प्राप्त तीन महान गुरु अर्थात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ! – श्री. विनायक शानभाग, रामनाथी, गोवा. (१२.४.२०२०)
१. सनातन के तीन गुरु अर्थात आपातकाल में साधकों के लिए संजीवनी !
वर्ष १९९९ से लेकर सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी सभी साधकों को बताते रहे हैं कि ‘आपातकाल आनेवाला है और उससे पूर्व साधकों को साधना बढानी चाहिए ।’ यह आपातकाल न्यूनतम ३ वर्ष तक तो होगा ही । वर्ष २०२३ के दिसंबर महीने तक ईश्वरीय लीला की भांति वह अल्पाधिक होनेवाला है । इस तीव्र आपातकाल में सनातन के साधकों के लिए संजीवनी बने हुए सनातन संस्था के तीन गुरु अर्थात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी !
२. श्रद्धा का अपार महत्त्व
२ अ. ‘सनातन के ये तीनों गुरु केवल संत अथवा गुरु न होकर वे भूदेवी एवं श्रीदेवी सहित मनुष्यरूप में अवतरित श्रीमहाविष्णु ही हैं’, सनातन के साधकों में यह श्रद्धा है । नित्य व्यवहार की छोटी से छोटी बातें भी विश्वास पर निर्भर होती हैं ।
नित्य व्यवहार की छोटी से छोटी बातें भी विश्वास पर निर्भर होती हैं । मनुष्य अनेक वर्ष विश्वास के साथ अधिकोष मैं पैसे रखता है, तब उसे लगता है, ‘मेरे पैसे सुरक्षित हैं और कठिन प्रसंग में मुझे उनसे लाभ मिलेगा ।’ रोगी व्यक्ति डॉक्टरों पर विश्वास करते हैं और कर्मचारी अपने स्वामी पर विश्वास करता है ।
विश्व में विश्वास का इतना महत्त्व है, तो विश्वास की अपेक्षा श्रद्धा निश्चितरूप से बडी है । सनातन के प्रत्येक साधक में श्रद्धा है, ‘सनातन के ये तीनों गुरु केवल संत या गुरु नहीं, अपितु वे भूदेवी एवं श्रीदेवी सहित मनुष्यरूप में अवतरित श्रीमहाविष्णु ही हैं ।’
२ आ. सनातन के साधकों में इन तीनों गुरुओं के प्रति दृढ श्रद्धा है ! : ‘चराचर में निहित प्रत्येक वस्तु में ईश्वर है’ ऐसी श्रद्धा रखनेवाले भक्त प्रल्हाद, ‘श्रीराम मुझसे मिलने अवश्य ही आएंगे’ यह श्रद्धा रखनेवाली शबरी, ‘श्रीकृष्ण आपद्बंधु की भांति हमारी रक्षा के लिए दौडे आते हैं’ यह श्रद्धा रखनेवाले पांडव, छल होते समय भी ‘श्रीकृष्ण रक्षा करेंगे ही ’ ऐसी श्रद्धा रखनेवाली द्रौपदीमाता, इंद्र के कोप के कारण त्रस्त होते हुए भी बालकृष्ण के प्रति श्रद्धा रखनेवाले गोकुल के गोप-गोपियां, ‘श्रीराम की कृपा से अथाह समुद्र पर सेतु का निर्माण होकर रहेगा’, यह श्रद्धा रखनेवाले वानर’, इन सभी में निहित एकमात्र समानता है और वह है, उनमें व्याप्त भगवान के प्रति दृढ श्रद्धा ! सनातन के साधकों में इन तीनों गुरुओं के प्रति दृढ श्रद्धा है कि ‘आनेवाले आपातकाल में सनातन के ये तीनों गुरु साधकों को सुरक्षित रखेंगे ही’, जो अविनाशी सत्य है !
३. भगवान को पुकारने पर सहायता के लिए उनका तुरंत दौडे आना
३ अ. कौरवों के साथ द्युत खेलते समय युधिष्ठिर द्वारा ‘श्रीकृष्ण राजसभा में न आएं’, यह प्रार्थना करना और उसके कारण श्रीकृष्ण का राजसभा में न आना : इस संदर्भ में महाभारत का एक प्रसंग बहुत ही यथार्थ है । कौरवों के साथ द्युत खेलते समय हार जाने पर युधिष्ठिर श्रीकृष्ण से कहते हैं, ‘‘हे आपद्बंधु, आप हमारी रक्षा के लिए क्यों नहीं आए ? आपने हमें द्युत खेलने से क्यों नहीं रोका ?’’ तब श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हे युधिष्ठिर, आप स्मरण करें । द्युत खेलना आरंभ करते समय आपने मन ही मन राजसभा में न आने के लिए मुझसे प्रार्थना की थी न ? आपकी उस प्रार्थना ने मुझ पर बंधन लगा दिया था । मैं राजसभा के प्रवेशद्वार के बाहर आपके पुकारे जाने की प्रतीक्षा में ही खडा था !’’
३ आ. साधकों ने प्रेम या आर्त भाव से श्री गुरुदेवजी को पुकारा, तो वे भी साधकों की सहायता के लिए तुरंत दौडे चले आएंगे !
‘प्रार्थना’ एकमात्र ऐसा माध्यम है जिससे भगवान जागृत होकर भक्त के लिए कार्य करते हैं । सनातन के ये तीनों गुरु साधकों की रक्षा हेतु ही वैकुंठलोक से पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं । हम ही उनका स्मरण नहीं करते, उन्हें प्रेम से नहीं पुकारते ! इस आपातकाल में भी हम सभी की स्थिति युधिष्ठिर की भांति है । भगवान केवल भाव चाहते हैं । जहां भाव, भक्ति, विनम्रता एवं प्रार्थना है, वहां सनातन के इन गुरुओं का अस्तित्व तो होगा ही ।
हे गुरुदेवजी, मुझमें उक्त सूत्र लिखने की योग्यता नहीं है । सनातन के सहस्रों साधकों की भांति मैं भी एक सामान्य साधक हूं । आपने जो सुझाया, मैंने वही शब्दबद्ध किया ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१२.४.२०२०)
साधक तीनों गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा कैसे बढाएं ?
श्रीगुरुगीता में निम्नांकित निरूपण है, ‘ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति: पूजामूलं गुरो: पदम् । मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा ।। अर्थ : ध्यान के आधारकेंद्र गुरुमूर्ति होते हैं । पूजा का मूल केंद्र गुरुचरण, मंत्र का उद्गमस्रोत गुरुवाक्य और मोक्ष का मूलाधार गुरु की कृपा होती है । |
१. ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः
‘सनातन के तीनों गुरु स्थूल से सभी साधकों के साथ रहें’, यह संभव नहीं है । गुरुदेवजी ने साधकों को ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’, यह अमूल्य ग्रंथ प्रदान किया है । इस ग्रंथ के माध्यम से सनातन के तीनों गुरुओं का ध्यान हो सकता है । आपातकाल में प्रतिदिन ‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ ग्रंथ प्रत्यक्ष तीनों गुरुओं का ही रूप है’, यह भाव रखकर उसे देखने से साधकों में निश्चित रूप से श्रद्धा बढेगी ।
२. पूजामूलं गुरो: पदम्
आपातकाल में पूजा के लिए समय एवं पूजासामग्री, दोनों उपलब्ध नहीं होंगे । ऐसे में ‘प्रत्येक साधक का हृदय’ ही उसका पूजाघर है और प्रतिदिन इसी पूजाघर में हमें इन तीनों गुरुओं का आवाहन करना है । इन तीनों गुरुओं का रूप सूर्य से भी तेजस्वी है और उनका हास्य किसी नवजात शिशु के हास्य से भी मधुर है । ‘हृदयसिंहासन के मध्य भाग में श्रीविष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, उनकी दाहिनी ओर भूदेवीस्वरूप श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं बाईं ओर श्रीदेवीस्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का आवाहन कर प्रतिदिन मनोभाव से उनकी मानसपूजा करनी चाहिए’, ऐसा मुझे लगता है । मानसपूजा के लिए कोई बंधन लागू नहीं होता । ‘साधकों ने इस प्रकार मानसपूजा की, तो निश्चित रूप से उनमें भाव बढेगा’, यह मेरी दृढ श्रद्धा है ।
३. मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं इस संदर्भ में रामायण का एक प्रसंग महत्त्वपूर्ण है ।
३ अ. श्री गुरु भगवान का सगुण रूप होने से श्री गुरुदेवजी का प्रत्येक वाक्य भी मंत्र की भांति ही कार्य करता है ! : जिस दिन विभीषण श्रीराम की शरण जाते हैं, उस दिन श्रीराम उन्हें लंका का राजा घोषित करते हैं और उनका राज्याभिषेक भी करते हैं । श्रीराम की वानरसेना के सेनापति सुग्रीव को यह बात रास नहीं आती । रात को सुग्रीव श्रीराम से कहते हैं, ‘‘हे श्रीराम, आपके द्वारा शीघ्रता में आकर विभीषण का राज्याभिषेक करना’ मुझे उचित नहीं लगा । न तो हम अभी लंका पहुंचे हैं, न ही अभी युद्ध आरंभ हुआ है और न ही रावण का वध हुआ है ।
इस अवधि में रावण ने आकर सीतामाता को आपको सौंप दिया, तो आप क्या करेंगे ?’’ तब श्रीराम हंसकर सुग्रीव से कहते हैं, ‘‘हे सुग्रीव, इतने दिन मेरे साथ रहकर तुमने क्या सीखा ? मेरे प्रत्येक कृत्य में एक दैवी रहस्य छिपा होता है । मैं जो बोलता हूं और करता हूं, वह भगवान ही करते हैं । ‘इस युद्ध में रावण, उसके भाई, पुत्र और राक्षस सेना का वध होने ही वाला है’, यह ईश्वरीय नियोजन है और उसके अनुसार ‘विभीषण लंका के राजा बनेंगे’, यह भी ईश्वरीय नियोजन है । अतः मुझसे होनेवाला प्रत्येक कृत्य ईश्वरीय लीला ही है । तुम्हारे कहने के अनुसार यदि रावण मेरी शरण आया, तो मैं अपनी अयोध्या उसे दूंगा और विभीषण को मैंने जो वचन दिया है, उसके अनुसार मैं उसे लंका का राजा बना दूंगा ।’’
श्री गुरु भगवान का सगुण रूप होने के कारण श्री गुरुदेव का प्रत्येक वाक्य मंत्र की भांति ही कार्य करता है; इसीलिए सनातन के तीनों गुरु जो बताते हैं, उसके अनुसार आचरण करने से साधकों को उनमें निहित देवत्व की प्रतीति होगी और साधकों में श्रद्धा भी बढेगी ।
३ आ. ‘ईश्वरस्वरूप तीन गुरु प्राप्त होना’, सनातन के साधकों का परमभाग्य है । ये तीनों गुरु आपातकाल से पार लगने हेतु सनातन के साधकों का दिशादर्शन कर रहे हैं और साधकों को केवल उस मार्ग पर चलना है । समाज के लोगों के लिए आपातकाल का जीवन तो तट से दूर, अथाह समुद्र के मध्य, अंधेरी रात में और बहुत ही तीव्रगति से बहनेवाली हवा में एक छोटी सी नाव में रहने समान है । उन्हें मार्ग दिखानेवाला कोई नहीं है । सनातन के सभी साधकों का यह परमभाग्य है कि सनातन के तीनों गुरु उन्हें मार्ग दिखा रहे हैं । हमें तो केवल इन तीनों गुरुओं द्वारा दिखाए जा रहे मार्ग पर चलना है । सभी साधकों को इस आपातकाल में तीनों गुरुओं के मुख से निकलनेवाला प्रत्येक शब्द मंत्रवत कार्य करेगा, इसकी प्रतीति होनेवाली है । अतः ये तीनों गुरु जो बताते हैं, उसका तथा सभी कार्यपद्धतियों का पालन करना; उत्तरदायी साधकों द्वारा और नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से मिलनेवाली सभी सूचनाओं का ही पालन करना है । इतना करने पर ये तीनों गुरु साधकों को आपातकाल से सुखपूर्वक बाहर निकालनेवाले हैं ।
४. मोक्षमूलं गुरो: कृपा
‘गुरुकृपा में मोक्ष का रहस्य छिपा है’, इसे जो जानता है; उसे ‘शिष्य’ कहा गया है । भगवान शिव ने पार्वती को बताया है कि श्री गुरु का नित्य ध्यान करने से, उन्हें नित्य अपने हृदयसिंहासन पर विराजमान कर उनकी मानसपूजा करने से और उनके बताए अनुसार साधना कर उनका आज्ञापालन करने से शिष्य को मोक्षप्राप्ति होती है । आपातकाल से बाहर निकलने पर तीनों गुरुओं के प्रति संपूर्ण श्रद्धावान साधकों को श्री गुरुदेवजी के चरण तो प्राप्त होंगे ही ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के रूप में भगवान अवतरित होना
‘वर्ष २०२० से वर्ष २०२३ तक पृथ्वी पर ‘न भूतो न भविष्यति ।’ अर्थात ‘पहले कभी न हुआ और भविष्य में भी न होगा’, ऐसा आपातकाल आनेवाला है ।’, यह सनातन के तीनों गुरु पहले से जानते थे । इसलिए गत २०-२१ वर्ष से तीनों गुरु साधकों को सूचित करते रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ‘अग्निहोत्र’ ग्रंथ में लिखा है, ‘आनेवाले आपातकाल में पृथ्वी पर ३५० करोड लोगों की मृत्यु होगी ।’ इससे पार लगने हेतु हमारे पास आध्यात्मिक ऊर्जा नहीं होगी । इसे जानकर ही श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पृथ्वी पर अवतरित हुए । उनकी आज्ञा से ही भूदेवीस्वरूप श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीदेवीस्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने अवतार धारण किया ।
केवल अस्तित्व से ही संपूर्ण विश्व के सनातन के साधकों की रक्षा कर सकनेवाले सनातन के साधकों को प्राप्त तीन महान अलौकिक गुरु !
सनातन के आश्रम को न किसी राजकीय पक्ष का समर्थन है, न किसी का आर्थिक समर्थन तथा न ही संख्याबल ! ‘ऐसा होते हुए भी इस आपातकाल में ये तीनों गुरु साधकों की रक्षा कैसे करेंगे ?’, सर्वसामान्य लोगों के मन में प्रश्न उठ सकता है । इसका उत्तर है, ‘जिनकी प्राणवायु में अनंत कोटि ब्रह्मांड में क्षणभर में जाकर आनेवाली वायु है, जिनकी वाणी में देवी सरस्वती विराजमान हैं तथा जिनकी वाणी से निकले शब्द धारण करने के लिए देवता भी आतुर रहते हैं’, ऐसे सनातन के तीनों गुरु अलौकिक हैं । सृष्टिचक्र, सर्व मनुष्यमात्र, सभी को उनके कर्मानुसार आचरण करवानेवाले महाकाल एवं सृष्टिचक्र का माध्यम बने ॠषियों के आदि एवं अंत, ये तीन गुरु हैं । इन गुरुओं का जगत में ‘कर्तव्य’ जैसा कुछ नहीं । उन्हें न प्रकृति स्पर्श कर सकती है, न माया बांध सकती है । पृथ्वी पर इन तीनों गुरुओं के केवल अस्तित्व से संपूर्ण विश्व के सनातन के सर्व साधकों की रक्षा होनेवाली है । वर्ष २०२३ के उपरांत तीनों गुरु एवं उन पर श्रद्धा रखने के कारण घोर आपातकाल से तर जानेवाले सनातन के साधक, इस सृष्टि में नया इतिहास रचेंगे ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने नहीं कहा कि ‘मैं अवतार हूं’ । ऐसा महर्षि ने नाडीपट्टिका में कहा है । साधकों का और सनातन प्रभात के संपादक का महर्षि के प्रति भाव होने से हम महर्षि की आज्ञा मानकर इस विशेषांक में लेखन प्रकाशित कर रहे हैं । – संपादक |