ईश्‍वरप्राप्‍ति की दिशा में मार्गक्रमण करनेवाले साधकों के पथदर्शक प्रीतिस्‍वरूप प.पू. भक्‍तराज महाराजजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !

शिष्‍य डॉ. जयंत आठवले

     ‘भजन, भ्रमण और भंडारा’, इन ३ ‘भ’कारों से भक्‍तों का उद्धार करनेवाले मेरे गुरु प.पू. भक्‍तराज महाराजजी की आज १०१ वीं जयंती है ! प.पू. बाबा सदैव कहते थे, ‘देह प्रारब्‍ध पर छोडो । चित्त चैतन्‍य से जोडो ॥’ आज कोरोना महामारी के कारण सामान्‍य व्‍यक्‍ति हताश और निराश है । ऐसे समय में ‘चित्त चैतन्‍य से’ अर्थात साधना कर निरंतर ईश्‍वर के आंतरिक सान्‍निध्‍य में रहने पर आनंद की अनुभूति लेकर कठिन परिस्‍थितियों को हराया जा सकता है । प.पू. बाबा ने यही सीख भजनों द्वारा समाज को दी है । बाबा के भजन ‘ज्ञानभंडार’ हैं । इन भजनों में जीवन जीने की कला है । ‘गुरुसेवा कैसे करें ?’, ‘लगन से प्रयास कैसे करें ?’, ‘गुरुचरणों की लगन कैसे रखें ?’ इत्‍यादि विविध सूत्रों का मार्गदर्शन इन भजनों से मिलता है । इसलिए साधना करनेवालों के लिए ये भजन पथदर्शक हैं । आज भी उनकी सीख के अनुसार आचरण करनेवाले अनेक लोग ईश्‍वरीय चैतन्‍य की अनुभूति ले रहे ।

     प.पू. बाबा का एक शब्‍द में वर्णन करना हो, तो ‘प्रीति अर्थात बाबा और बाबा अर्थात प्रीति’ । ‘जो उनसे मिला वो उनका हो गया’, इसकी अनुभूति अनेक भक्‍तों ने ली है । कभी प्रेम से, तो कभी क्रोध कर प.पू. बाबा ने भक्‍तों से साधना करवाई । वे क्रोधित हों तब भी उनकी प्रीति अनुभव कर सकते थे । आज बाबा देहरूप में हमारे साथ नहीं हैं, तब भी निर्गुण से उनका कार्य जारी है । उनकी प्रीति सभी ओर के भक्‍तों सहित सनातन के साधक भी अनुभव कर रहे हैं ।

प.पू. बाबा ने कहा था, ‘सनातन मैं चलाऊंगा !’ इसकी प्रतीति प्रति क्षण हो रही है । कोरोना महामारी के कारण संचारबंदी होते हुए भी सनातन संस्‍था और हिन्‍दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित किए ‘ऑनलाइन धर्मसत्‍संगों’ का देशविदेश के लाखों जिज्ञासु लाभ ले रहे हैं । इन सत्‍संगों के कारण सहस्रों लोगो ने साधना आरंभ की है और वे आनंद अनुभव कर रहे हैं । संचारबंदी के काल में भी सनातन के धर्मप्रसार के कार्य में गति से वृद्धि होना, यह प.पू. बाबा की ही कृपा है !

    सनातन के हिन्‍दू राष्‍ट्र के कार्य में आनेवाली बाधाएं दूर करनेवालेे, साथ ही साधकों पर कृपावर्षाव करनेवाले प.पू. भक्‍तराज महाराजजी के चरणों में उनकी जयंती के निमित्त कोटिशः कृतज्ञता !’ – डॉ. जयंत आठवले