साधकसंख्या अल्प होते हुए भी भावपूर्वक एवं लगन से गुरुकार्य करनेवाले अयोध्या के पू. डॉ. नंदकिशोर वेद !
‘डॉ. नंदकिशोर वेद से हमारा लगभग १७ वर्षाें से निकट का संबंध था । हम सभी प्रेम से उन्हें ‘नंदकिशोर काका’ कहते थे । मैं उत्तर भारत में सेवा हेतु आया, तब से अयोध्या केंद्र का दायित्व उन्हीं के पास था । इसलिए विविध सेवाओं के संदर्भ में उनसे संपर्क होता रहता था । अयोध्या स्थित साकेत महाविद्यालय में प्राध्यापक होने के कारण समाज के सम्माननीय व्यक्ति के रूप में उनकी गणना होती थी । डॉ. नंदकिशोर वेद का निधन ११.५.२०२१ को हुआ । स्वर्गीय डॉ. नंदकिशोर वेद के निधन के उपरांत उनके संदर्भ में कृतज्ञतापूर्वक संकलित किए सूत्र इस लेख में प्रकाशित कर रहे हैं ।
१. गुरुकार्य हेतु पूर्णत: समर्पित अयोध्या निवासी वेद
परिवार के निवास पर आश्रम जैसा आनंद एवं प्रेम प्राप्त होना
‘स्वयं के निवास को आश्रम कैसे बनाएं ?’, इसका एक आदर्श उदाहरण अर्थात डॉ. नंदकिशोर वेद । वे और उनके परिवारजनों के भाव के कारण उनके घर में आश्रम जैसा वातावरण बन गया । प्रचार के उद्देश्य से अयोध्या जाने पर सनातन के संतों एवं साधकों का निवास एवं अन्य व्यवस्था उनके घर पर ही रहती थी । उनका पूरा परिवार साधना करता है और गुरुकार्य हेतु पूर्णत: समर्पित है । उनके निवासस्थान पर आश्रम जैसा आनंद और प्रेम प्राप्त होता है ।
२. उनका आश्रमरूपी निवासस्थान प्रसारदौरे का केंद्र बनना
हमारा प्रसारदौरा आरंभ होने पर उसका केंद्र उनका आश्रमरूपी निवासस्थान होता था । उनके घर जाने पर हम तीन-चार साधकों के निवास, अल्पाहार, भोजन आदि की वे स्वयं भावपूर्ण रूप से व्यवस्था करते थे । वे बडी लगन और प्रेम से ध्यान देते थे कि हमें कुछ भी न्यून न पडे । कोई साधक बीमार हो जाए, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना, औषधीय उपचार करवाना भी वे उतने ही दायित्वपूर्वक करते थे ।
३. सात्त्विक उत्पादों के स्वयं स्थानीय वितरक बनना
उन्हें पीठ और कमर दर्द का तीव्र कष्ट था, तथापि केंद्र के लिए भेजा जानेवाला ‘सनातन प्रभात’ का गट्ठर, सात्त्विक उत्पाद के पार्सल बसस्थानक से उठाना, ‘सनातन प्रभात’ का वितरण करना इत्यादि सेवाएं वे समय से करते थे । वे सनातन के सात्त्विक उत्पादों के स्थानीय वितरक थे । अत: उसका संग्रह भी उनके निवासस्थान पर ही रहता था । वे स्वयं साधकों और समाज में सात्त्विक उत्पादों का वितरण करते थे । अयोध्या में साधकसंख्या अल्प होने के कारण अपना दायित्व समझकर प्रसारकार्य करनेवाला अन्य कोई भी नहीं था । इसलिए प्रसार से संबंधित सभी सूचनाएं वे आचरण में लाने का प्रयास करते थे ।
४. स्वयं चारपहिया वाहन चलाकर ७ घंटे की यात्रा पूर्ण कर उत्साह से
वाराणसी आना और सेवा हेतु आवश्यक उतने दिन रहकर सेवा पूर्ण करना
वाराणसी सेवाक्रेंद्र में साधकों का शिविर, हिन्दू राष्ट्र (कलियुगांतर्गत सत्ययुग) अधिवेशन, गुरुपूर्णिमा महोत्सव, धर्मप्रेमी कार्यशाला इत्यादि का आयोजन होने पर नंदकिशोरजी के लिए विशेष सेवाएं निश्चित रहती थीं । इसके लिए वेसपरिवार अपने चारपहिया वाहन से ७ घंटे की यात्रा कर उत्साह से वाराणसी आते और आवश्यक उतने दिन रहकर सेवा पूर्ण करके ही वापस जाते । उन्हें शारीरिक कष्ट थे, इसलिए वे अयोध्या से आते-जाते एक वाहनचालक साथ रखते थे । वाराणसी पहुंचने पर वे अपना चारपहिया वाहन आश्रमसेवा के लिए उपलब्ध करवा देते थे ।
५. शारीरिक कष्ट होते हुए भी प्रसारदौरे के संदर्भ में विशेष उत्साहित
रहना और दौरे के समय निरपेक्षभाव से प्रत्येक स्थिति में स्वयं को ढाल लेना
शारीरिक कष्ट होते हुए भी प्रसारदौरे में साथ आने के लिए वे विशेष उत्साहित रहते थे । हमारे अयोध्या पहुंचने पर हम उनके चारपहिया वाहन से लखनऊ, कानपुर, सुलतानपुर आदि स्थानों पर प्रसार के लिए जाते थे । उस समय नंदकिशोरजी भी हमारे साथ रहते थे । उस क्षेत्र की भौगोलिक रचना की भी उन्हें अच्छी जानकारी थी । उसका उपयोग प्रसार के लिए होता था । उन्हें शारीरिक कष्ट होते हुए भी वे दौरे के समय निरपेक्षभाव से प्रत्येक स्थिति में स्वयं को ढाल लेते थे, यह उनकी विशेषता थी ।
६. श्री. प्रशांत जुवेकर (श्री. वेदजी के जमाई) को मडगांव बमविस्फोट
प्रकरण के (झूठे)आरोप में बंदी बनाए जाने के कठिन समय में भी डगमगाए बिना
स्थिर रहकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पर दृढ श्रद्धा रखकर परिवार को आधार देना
उनके जमाई श्री. प्रशांत जुवेकर को मडगांव बमविस्फोट प्रकरण के (झूठे) आरोप में बंदी बनाया गया था । तब उनकी पुत्री श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर और श्री. प्रशांत का विवाह हुए कुछ मास ही हुए थे । ऐसी कठिन स्थिति में भी वे कभी भी डगमगाए नहीं और उनकी श्रद्धा थोडी भी न्यून (कम) नहीं हुई । उस समय भी उन्होंने स्थिर रहकर और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पर दृढ श्रद्धा रखकर परिवार को आधार दिया और स्वयं की साधना तथा सर्व प्रकार की सत्सेवा करते रहे । उस अवधि में भी उनके घर आनेवाले सनातन के संतों एवं साधकों की उन्होंने सपरिवार मनःपूर्वक सेवा की ।
७. सनातन के हिन्दी भाषा में ग्रंथों की निर्मिति के कार्य में अमूल्य
योगदान देना और अनेक ग्रंथों के व्याकरण एवं भाषाशुद्धि की सेवा करना
हिन्दी भाषा और व्याकरण पर नंदकिशोरजी का विशेष प्रभुत्व था । इसलिए सनातन के हिन्दी भाषा में ग्रंथों की निर्मिति में उनका अमूल्य योगदान है । अनेक हिन्दी ग्रंथों के व्याकरण एवं भाषाशुद्धि की सेवा भी उन्होंने की है ।
८. सभी साधकों का प्रत्यक्ष अथवा ‘ऑनलाइन’ साप्ताहिक व्यष्टि साधना का ब्योरा नियमित लेना और
स्वास्थ्य ठीक न होते हुए भी निर्धारित दिन पर साधकों का ब्योरा लेकर स्वयं की साधना का भी ब्योरा देना
अयोध्या केंद्र में साधकसंख्या अल्प होते हुए भी वे सभी साधकों का प्रत्यक्ष अथवा ‘ऑनलाइन’ साप्ताहिक व्यष्टि साधना का ब्योरा नियमित लेते थे । साथ ही स्वयं की व्यष्टि साधना का ब्योरा भी साधकों को देते थे । एक बार हम दौरे पर थे और उनका स्वास्थ्य बिगड गया । तब भी उन्होंने निर्धारित दिन पर साधकों की साधना का ब्योरा लिया और स्वयं का ब्योरा भी दिया । इस प्रकार उन्होंने सभी साधकों के मन पर व्यष्टि साधना और साधना में निरंतरता बनाए रखने का संस्कार दृढ किया ।
९. एक बार प्रसारदौरे पर संतों का स्वास्थ्य बिगडने पर वेदजी का
अधिक समय गाडी चलाना और उस समय भी उत्साहित एवं आनंदित रहना
एक बार प्रसारदौरे पर चारपहिया वाहन से हमें रात को ‘कानपुर से अयोध्या’ जाना था । उस समय मेरा स्वास्थ्य अत्यंत बिगड गया था । यात्रा आरंभ करने पर स्वास्थ्य और बिगड गया । हाइवे होने के कारण रात के समय ढेर सारे बडे वाहन आ-जा रहे थे । इसलिए चार घंटे की यात्रा को सात घंटे लग गए । तब मुझे कष्ट न हो, इसलिए वेदजी ने स्वयं लगभग साढे चार से पांच घंटे वाहन चलाया । उस समय वे उत्साहित और आनंदित थे ।’
– (पू.) श्री. नीलेश सिंगबाळ, वाराणसी सेवाकेंद्र (१५.५.२०२१)
(उपरोक्त लेख पू. नंदकिशोर वेदजी के संत घोषित होने के पूर्व लिखा गया था । इसलिए लेख में उनका उल्लेख ‘नंदकिशोरजी’ के रूप में किया गया है । – संपादक)
समाज में सम्मानीय होते हुए भी धर्मप्रसार के उद्देश्य से
समाज से अर्पण एकत्रित करते हुए उनमें लेशमात्र भी अहं न होना
समाज में वे सम्मानीय थे, तब भी धर्मप्रसार के उद्देश्य से समाज में जाकर अर्पण एकत्रित करने तथा गुरुपूर्णिमा के लिए विज्ञापन लेने की सेवा वे स्वयं करते थे और इस संदर्भ में केंद्र के दायित्व का भाग वे स्वयं पूर्ण करके भेजते थे । गुरुपूर्णिमा स्मारिका के लिए वे अकेले ही चालीस से पैंतालीस विज्ञापन लाते थे । अयोध्या केंद्र में धर्मप्रेमियों की कार्यशाला, गुरुपूर्णिमा महोत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होने पर समाज से सभागृह, भोजन आदि प्रायोजित करवाना इत्यादि सेवाएं भी वे करते थे । समाज में प्रतिष्ठा होते हुए भी उनमें उसका अहं नहीं था । अयोध्या के ‘सनातन प्रभात’ के पाठक, हिन्दुत्वनिष्ठ और सनातन संस्था के शुभचिंतकों के साथ उनके सम्माननीय एवं प्रेमपूर्ण संबंध थे ।
सनातन के १०७ वें संत पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी के देहत्याग के
उपरांत अयोध्या में उनके मित्र एवं परिचित मान्यवरों से प्राप्त भावपूर्ण संदेश !
१. डॉ. अभय सिंह, प्रधानाचार्य, साकेत डिग्री महाविद्यालय
१ अ. डॉ. नंदकिशोर की मृत्यु से हुई क्षति की भरपाई कभी नहीं हो सकती ! : हमारे महनीय गुरु, विभाग के सहयोगी, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, ‘सैन्य विज्ञान’ विषय में ‘डॉक्टरेट’ नंदकिशोरजी का दीर्घकालीन बीमारी से आकस्मिक निधन हुआ । मैं एकदम निःशब्द एवं स्तब्ध रह गया । ‘उनका इस प्रकार स्वर्ग सिधारना’, मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है; जिसकी कभी भी भरपाई नहीं हो सकती । ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ! ॐ शांति !
२. श्री. अजय कुमार पांडे, सैन्य विज्ञान विभाग, साकेत महाविद्यालय
२ अ. भगवान ने हमारे अभिन्न मित्र को हमसे दूर कर अपने पास बुला लिया । उन्हें सद्गति प्रदान हो ।
२ आ. डॉ. नंदकिशोरजी सदैव दृढता से मेरा साथ देते ! : हमारे भूतपूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. नंदकिशोरजी के आकस्मिक निधन से मेरी व्यक्तिगत क्षति हुई है । मैं एकदम टूट गया हूं । वे सदैव मुझे समझते थे । मुझे इतना प्रेम आज तक किसी से नहीं मिला । मैं जब अकेला रहता था, तो वे मुझे ज्ञानपूर्ण बातें बताते । पिता की भांति मेरा साथ देते । मैं एवं मेरा पूरा परिवार उन्हें श्रद्धांजलि पुष्प अर्पित करता है ।
३. डॉ. हर्ष कुलश्रेष्ठ, पूर्व अधिकारी, भारत सरकार
३ अ. हमने अपने परिवार का सदस्य खो दिया ! : अत्यंत दुःखद समाचार सुना । हमने अपने परिवार के सदस्य को खो दिया है । भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें, ऐसी प्रार्थना है । विनम्र श्रद्धांजलि ! ॐ शांति ॐ !
४. श्री. विधिपूजन पांडे, पुरोहित, सनातन संस्था के शुभचिंतक
४ अ. डॉ. नंदकिशोर हम सभी को अकेला छोडकर चले गए । वे हमें (आनेवाले) हिन्दू राष्ट्र के मार्ग पर छोडकर चले गए हैं ।