समाज के जिज्ञासुओं और धर्मप्रेमियों द्वारा पू. माधव साठेजी के संदर्भ में व्यक्त मनोगत !
२३.४.२०२१ को पू. माधव साठेजी ने देहत्याग किया । इस अवसर पर कल्याण के जिज्ञासुओं और धर्मप्रेमियों के ध्यान में आई पू. साठेजी की गुणविशेषताएं और उनसे सीखने मिले महत्त्वपूर्ण सूत्र इस लेख में प्रकाशित कर रहे हैं ।
१. श्री. गिरीशभाई धोकीया, कल्याण
१ अ. स्वयं चिकित्सालय में भरती होकर और कुछ समय पूर्व ही पत्नी का निधन होते हुए भी स्थिरता से बात करनेवाले पू. साठेजी ! : ‘पू. साठेजी ने देहत्याग किया’, यह सुनकर मैं एक मिनट के लिए स्तब्ध हो गया । मुझे पता चला कि इसके ‘१०-१२ दिन पूर्व श्रीमती साठे का भी निधन हुआ था ।’ यह समाचार सुनकर मेरी और मेरे परिवार की जो स्थिति हुई, शब्दों में उसका वर्णन नहीं कर सकता । पू. साठेजी स्वयं चिकित्सालय में उपचार करवा रहे थे और उनकी पत्नी की मृत्यु हुई है, तब भी पू. साठेजी बिना भूले हमें दूरभाष करते थे । ‘लिंक भेजी है ।’, ‘ऑनलाइन’ जुड पाएंगे न ?, ‘अमुक एक’ कार्यक्रम है, उद्योगपति शिविर है, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ प्राप्त हो रहा है न ?, कुछ अडचन तो नहीं न ?’, ऐसा भी उन्होंने मुझसे पूछा; किंतु श्रीमती साठे की मृत्यु के संदर्भ में उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा अथवा वैसा कुछ अनुभव भी नहीं होने दिया ।
१ आ. उत्साह और निर्मलता से सेवाकार्य करना : पू. साठेजी का संपर्क और संग अत्यंत उत्साहवर्धक था । उनका मन सदैव शांत रहता था । मुझे उनके मुख पर सदैव शांति और तेज दिखाई देता था । पू. साठेजी से ‘थक गए’ अथवा ‘बोर हो गए’, ऐसा कभी भी सुनने को नहीं मिला । ‘निर्मल बहती धारा’ समान उन्होंने धार्मिक और सामाजिक कार्य किया ।
१ इ. लगन से सेवा करना : कोई भी कार्यक्रम हो सभी कृत्य ध्यान में रखकर और उचित नियोजन कर ‘कार्यक्रम अच्छे से हो’, इसके लिए वे प्रयास करते थे । उनकी लगन रहती थी कि ‘हमारे कार्यक्रम का उद्देश्य सभी तक पहुंचे और हमारी सेवा हो ।’ उन्हें कोई लोभ अथवा किसी से भी अपेक्षा नहीं थी । केवल एक ही ध्येय था, ‘धर्मप्रेमियों को धर्म समझाना !’ इसलिए साधना, नामजप, शिविर इत्यादि उपक्रम उत्साह से करते हुए उनका आनंद द्विगुणित हो जाता था ।
१ ई. पू. साठेजी द्वारा साधना करवाने से अनेक संकटों से निकल पाना : पू. साठेजी ने मुझे खरी साधना बताकर नामजप करना सिखाया । इसका अनुभव मैंने स्वयं किया है । वर्तमान संचारबंदी और विषम स्थितियों में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करनेके लिए पू. साठेजी ने मुझे नामजप और साधना करने के लिए प्रोत्साहित किया । इसलिए अनेक संकटों से हमारी रक्षा हुई ।
२. श्री. यतीन शुक्ल, पाठक, उद्योगपति, कल्याण.
२ अ. पू. साठेजी द्वारा सनातन संस्था की जानकारी देने पर मन में नकारात्मक विचार आना : ‘दो वर्ष पूर्व पू. साठेजी उनके मित्र डॉ. डहाके के साथ हमारे घर आए थे । उन्होंने मुझे सनातन संस्था के संदर्भ में जानकारी बताई । मैं कट्टर हिन्दू हूं; परंतु क्रियाशील नहीं हूं । इसलिए आरंभ में मुझे पू. साठेजी के संदर्भ में थोडी नकारात्मकता लगी ।
२ आ. पू. साठेजी की बातों से उनका मन निर्मल होकर उन्हें केवल ‘श्रीगुरु का दिया ज्ञान सभी तक पहुंचाने की लगन है’, ऐसा लगना : मुझसे संवाद करना आरंभ करने पर मुझे उनकी वाणी में सत्यता लगी और ‘वे मन से अत्यंत निर्मल हैं’, ऐसा भान हुआ । ‘मुझे मेरे गुरु से जो ज्ञान मिला, वह सभी को दें और सभी का जीवन सकारात्मक हो’, ऐसी उनकी तीव्र लगन थी । वे स्वयं सकारात्मक जीवन जीते थे ।
२ इ. पू. साठेजी द्वारा परिवार के लिए सत्संग का आयोजन करना, उनके मार्गदर्शनानुसार कृति करने पर अत्यधिक लाभ होना : तदुपरांत पू. साठेजी ने हमारे घर आकर हमें कहा, ‘‘मुझे आप सभी को कुछ बताना है और उसके लिए मुझे आपके परिवार के लिए एक सत्संग का आयोजन करना है ।’’ एक दिन पू. साठेजी अपनी बेटी श्रीमती प्राची के साथ हमारे घर आए। तब हमारे घर पर मेरे कुछ संबंधी और मित्र भी थे । पू. साठेजी के बोलना आरंभ करने पर मुझे लगा, ‘मैंने अपने पूर्वजों के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया है ।’ तदुपरांत मैंने पू. साठेजी के मार्गदर्शनानुसार कृति करना आरंभ की और वास्तव में मुझे उसका अत्यंत सकारात्मक लाभ हुआ । इसलिए अब पू. साठेजी जो भी बताते हैं, उस अनुसार मैं कृति करता हूं ।
२ ई. कृतज्ञता : ‘मुझे पू. साठेजी का संग मिला’ इसलिए मैं अत्यंत आनंदित हूं । इस हेतु मैं भगवान के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । पू. साठेजी भगवान के चरणों में लीन हुए हैं; किंत ‘वे आज भी हमें देख रहे हैं’, ऐसा मुझे लगता है ।’
३. जिज्ञासु, पाठक, शुभचिंतक इत्यादि के आधार पू. माधव साठेजी, अर्थात ठाणे जिले के पितृतुल्य साधक !
पू. माधव साठेजी की आयु ७५ वर्ष थी । इतने वृद्ध होते हुए भी वे समर्पण और लगन से सेवा करते थे । वे अनेक जिज्ञासुओं को संपर्क करते थे । उनके संपर्क इतने प्रभावी होते थे कि समाज के अनेक जिज्ञासु, ‘सनातन प्रभात’ के पाठक, विज्ञापनदाता एवं शुभचिंतकों ने साधना करना आरंभ किया । पू. साठेजी उन सभी के आधारस्तंभ हो गए थे । पू. साठेजी के निधन के उपरांत मैंने कुछ जिज्ञासुओं से संपर्क किया । तब उन्होंने पू. साठेजी के संदर्भ में व्यक्त उद्गार आगे दिए हैं ।
– श्री. विनोद पालन, ठाणे, महाराष्ट्र.
३ अ. श्री. प्रदीप अंचन, ठाणे
३ अ १. पू. साठेजी से निकटता होना और उनकी सेवा का आश्चर्य लगना : ‘पू. साठेजी ने देहत्याग किया यह ज्ञात होने पर मुझे धक्का लगा । पू. साठेजी से मेरी अत्यंत निकटता हो गई थी । विगत २ -३ वर्षाें से मेरा उनसे संपर्क था । वे मृदुभाषी थे । वे सदैव मेरा पक्ष समझकर बोलते थे । पू. साठेजी सेवा के लिए अधिक समय देते थे । इतनी आयु में भी वे अत्यंत सक्रिय थे । वे मुझे सदैव कार्यक्रमों का स्मरण कराते थे । विगत सप्ताह उन्होंने मुझे संपर्क किया; परंतु उस समय उन्हें योग्य प्रकार से बोलते नहीं बन रहा था । इसलिए उन्होंने मुझे कार्यक्रम की ‘पोस्ट’ भेजी । मैंने वह कार्यक्रम देखकर उन्हें सूचित भी किया । उनका व्यक्तित्व हीरे समान था ।’
३ आ. श्री. विवेक सोनावणे, ठाणे
३ आ १. प्रत्येक समय साधना का नया सूत्र बताकर साधना पथ पर उंगली पकडकर अग्रसर करवानेवाले पू. साठेजी के निधन के कारण ‘उनका पकडा हुआ हाथ मध्य मार्ग में ही छूट गया’, ऐसा लगना : ‘प्रत्येक शनिवार को उद्योगपति चर्चा होती है । उस हेतु पू. साठेजी मुझे सुबह भ्रमणभाष करते थे । उनके भ्रमणभाष की मैं प्रतीक्षा करता था । उनके कारण ही मैं सनातन संस्था से जुड पाया ।
पू. साठेजी मुझसे सेवा करवा लेते थे । अब ‘मैं अध्यात्म में अनाथ हो गया हूं’, ऐसा लगता है । हम स्वयं से सद्गुरु तक पहुंच नहीं सकते; परंतु पू. साठेजी उस मार्ग का पथप्रदर्शन कर रहे थे । मैं उनकी उंगली पकडकर चल रहा था; किंतु ‘मार्ग के मध्य में ही वह उंगली छूट गई’, ऐसा मुझे लगा । इसलिए मुझे पू. साठेजी का अभाव अनुभव हो रहा है ।’
३ इ. श्रीमती नीरजा मिश्रा, ठाणे
३ इ १. मन में मूलत: दबा साधना का बीज पू. साठेजी के संपर्क के कारण जागृत होना : ‘पू. साठेजी चिकित्सालय में भरती थे, तब उन्होंने मुझे संपर्क किया था तथा उनके साथ मेरी चर्चा हुई थी । मेरी मां देवी की उपासक थीं और उन्होंने उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया था, इस कारण मुझमें साधना का बीज था । मैंने भक्ति समझकर कुछ सेवाएं कीं; परंतु मैं अध्यात्म की ओर देर से आकर्षित हुई । अनेक वर्ष उपरांत पू. साठेजी से संपर्क हुआ और उनके कारण मैं पुन: अध्यात्म की ओर प्रवृत्त हो पाई ।’