राजस्थान के स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी का देहत्याग !

     जोधपुर (राजस्थान) – ओजस्वी वक्ता, धर्मध्वजा संवाहक, गीतामर्मज्ञ, लेखक, आध्यात्मिक गुरु एवं अधिष्ठाता श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर, शिवमठ बीकानेर स्थित शिवबाडी मठ के स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी (आयु ७८ वर्ष) ने १८ मई २०२१ को बीकानेर में देहत्याग किया ।

     संत सरोवर स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी की लौकिक देह को शांकरी परम्परानुसार पूर्ण विधि-विधान से श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर और श्रीलक्ष्मीनारायण मन्दिर की परिक्रमा करते हुए श्रीलालेश्वर महादेव मन्दिर मठ परिसर में भू-समाधि के द्वारा पंचमहाभूत में विलीन किया गया । स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी अभियंता थे । उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का प्रसार करने का महान कार्य किया । राजस्थान सहित देश के विविध भागों में उनके अनुयायी हैं । बीकानेर के साथ ही माऊंट आबू में भी उनका एक मठ है ।

     स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी के देहत्याग के उपरांत बीकानेर स्थित मंदिर, मठ, आश्रम के महंत और पुजारियों ने उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की ।

विमर्शानन्द गिरि महाराज बने लालेश्वर मठ के अधिष्ठाता

     स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी के शिष्य स्वामी विमर्शानन्दगिरिजी को लालेश्वर मठ का अधिष्ठाता बनाया गया है । बीकानेर के पूर्व राजपरिवार की ओर से बीकानेर राजमाता की प्रतिनिधि पूर्व की विधायिका सुश्री सिद्धिकुमारी ने स्वामी विमर्शानन्दगिरिजी को तिलक किया तथा धणीनाथगिरिमठ पंच मन्दिर के अधिष्ठाता महामण्डलेश्वर परम पूज्य स्वामी विशोकानन्द भारतीजी के प्रतिनिधि स्वामी अमरानन्द भारती जी एवं अन्य सन्तों के उपस्थिती में स्वामी विमर्शानन्दगिरि को शॉल ओढाकर गद्दी पर बिठाया ।

स्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज का सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति से संबंध !

उज्जैन में सनातन की ग्रंथ-प्रदर्शनी स्थल पर स्वामी संवित् सोमगिरि महाराजजी (दाएं से) की भेंट करते समय हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी

सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य को सदैव आशीर्वाद देना

     वर्ष २०१६ में जब से स्वामी संवित् सोमगिरी महाराजजी से संपर्क हुआ, तब से हिन्दू जागृति और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य हेतु उनके निरंतर आशीर्वाद प्राप्त हुए । बीकानेर में धर्मप्रसार के लिए जानेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के पूर्णकालीन कार्यकर्ताओं के निवास और भोजन की व्यवस्था महाराजजी के शिवबाडी मठ में ही रहती थी । गोवा में हुए अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में भी महाराजजी अवश्य उपस्थित रहते थे । शिवबाडी के शिवमंदिर में होनेवाले प्रत्येक कार्यक्रम में समिति के धर्मशिक्षा देनेवाले प्रदर्शन अथवा सनातन के ग्रंथप्रदर्शन लगाने के लिए वे हमें निमंत्रित करते थे । कोटा में धर्मप्रसार हेतु गए कार्यकर्ताओं की भी उन्होने ही पूर्ण व्यवस्था की । कार्य हेतु उपयुक्त संपर्क वह उपलब्ध करवाते थे ।

हिन्दुओं में चेतना जागृत करनेवाले विशेष संत !

     गीता परीक्षा द्वारा अनेक विद्यार्थियों को गीताज्ञान देना हो, ‘संवित् शूटिंग’ संस्था के माध्यम से युवकों को प्रशिक्षित करना हो अथवा शिवबाडी मंदिर का कायापलट कर बीकानेरवासियों को एक धर्मपीठ उपलब्ध करवाना हो, ऐसे अनेक कार्य कर हिन्दुओं में चेतना जागृत रखनेवाले वे विशेष संत थे । धर्म के लिए कार्य करनेवाले सभी के लिए वे आधारस्तंभ थे ।

स्वामी संवित् सोमगिरि महाराजजी द्वारा किया गया धर्मकार्य आगे जारी रखना, यही धर्माभिमानियों की साधना !

     अभियांत्रिकी प्राध्यापकपद से संन्यास की ओर बढे संवित् सोमगिरी महाराजजी में आधुनिकता का उपयोग कर धर्म समाज तक पहुंचाने की लगन थी । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के विविध आधुनिक उपकरणों के माध्यम से सनातन धर्म की महती पूर्ण विश्व तक पहुंचाने का कार्य उन्हें विशेषत: अच्छा लगा । उनके देहत्याग के कारण अनेक हिन्दुओं, भक्तों का स्थूल आधार छिन गया है । चेतनाहीन हिन्दुओं में नवचेतना निर्माण कर आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाले महाराजजी ने देहत्याग किया हो, तो भी उनका कार्य भविष्य में आगे बढाना, यह प्रत्येक धर्माभिमानी हिन्दू की साधना होगी । सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !

– श्री. आनंद जाखोटिया, समन्वयक, राजस्थान और मध्य प्रदेश, हिन्दू जनजागृति समिति.

‘शब्दांजलि’

ब्रह्म की प्रतिमूर्ति: श्रीस्वामी संवित् सोमगिरि जी महाराज महामनाओं, दिव्यात्माओं के बारे में,
मैं कुछ लिख सकूं इतना ज्ञान नहीं है मुझमें, फिर भी पूज्यश्री के चरणों में ‘शब्दांजलि’ के माध्यम से
उनको याद करने का प्रयास किया है मैंने। मेरे प्रयास में कोई त्रुटि हो तो अल्पज्ञ जानकर मुझे क्षमा करें। -विवेक मित्तल

     सनातन, जो युगों-युगों से धरा पर अनवरत प्रवाहित हो रहा है, कालजयी है, मृत्यंुजयी है। लेकिन काल के प्रवाह के साथ-साथ सनातन संस्कृति को दूषित-प्रदूषित करने के लिए असुरों द्वारा जो विष बीज रोपित किए गए, वो वर्तमान में विशाल विषबेल बनकर समाज की व्यवस्थाओं को विषाक्त कर नष्ट कर रहे
हैं । इन्हांेने परम्पराओं को धूमिल करने का प्रयास किया है, युवाओं की सोचने-समझने-परखने की दक्षता को कुण्ठित किया है। इससे भी आगे बढ़ कर विशाल, गौरवमयी, सुदृढ़ और समृद्ध गुरुकुल व्यवस्था, गुरु-शिष्य सम्बन्धों को छिन्न-भिन्न करने का हर सम्भव निरन्तर प्रयास किया। लेकिन धर्म- गुरु, धर्मध्वजा वाहक, सनातन के संवाहक, वेदान्त और श्रीमद्भगवद्गीता मर्मज्ञ, ओजस्वी वक्ता, ब्रह्मज्ञानी परम पूज्य श्रीस्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज ने महाराज ने अपने जीवनकाल में जीवन पर्यन्त अपने ओज से, तेज से, दिव्यता से धर्म, समाज और संस्कृति को पोषित, पुष्पित और पल्लवित करने का निर्बाधित प्रयास किया ।

विलक्षण गुणों के धनी इस शिष्य ने अपने दिव्य गुरु ब्रह्मलीन परम पूज्य श्रीमत् स्वामी ईश्वरानन्दगिरिजी महाराज, आबू पर्वत के सान्निध्य में, प्रकृति की गोद में बैठकर वेदान्त अध्ययन किया, साधना की, उसको आत्मसात किया, प्रकृति से जो पाया उसे जी-भर कर आमजन को अर्पण किया। पूज्य स्वामीजी ने शासन-प्रशासन की कार्यशैली, प्रणाली से अव्यवस्थाओं की शिकायत कभी नहीं कि । इससे इतर उन्होंने यथा सम्भव उपलब्ध संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग करते हुए समाज के प्रत्येक वर्ग को अपने अनुभवों का लाभ पहुंचाने का हर-सम्भव प्रयास किया। सम्पूर्ण पर्यावरण से निश्छल प्रेम, ईश्वर से एकाकार होने का निर्बाध मार्ग है। मनुष्य, गौसेवा, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पर्वत-पहाड़, नदियां-समुद्र सभी में ईश्वर की उपस्थिति को वे मानते थे, पहचानते थे। पूज्य स्वामीजी अपनी सांसारिक जीवन यात्रा में सदैव धर्म जागरण, युवाओं के चारित्रिक निर्माण, राष्ट्रभक्ति, वीरता, नारी सम्मान, अध्यात्म-लेखन और अनुसंधान जैसे कार्य करने में जीवन के अन्तिम क्षण तक गतिमान रहे। उन्होंने असंख्य गोष्ठियों, कार्यशालाओं, सम्मेलनों, धार्मिक आयोजनों, यात्राओं, यज्ञ-अनुष्ठानों, संत समागम, दीक्षान्त समारोह में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति और ओजस्वी वाणी से धर्म का परिचय करवाया, सद्मार्ग और सतकर्म करना सिखाया, युवाओं को खेल से जुड़ना और शौर्य का पाठ पढ़ाया। अपने बोध को, अपनी दृष्टि को ठीक रखते हुए सही ढंग से जीने का मार्ग बताया।

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा, शश्वच्-छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रति-जानीहि, न मे भक्तः प्रणश्यति।।9.31।।
(वह) शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है (और) सदा रहनेवाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू यह प्रतिज्ञा कर ले (अर्थात् दृढ़ निश्चय पूर्वक जान ले) कि मेरा भक्त (कभी) नष्ट नहीं होता।।9.31।।

सच्चे अर्थों में जिसने धर्म को धारण किया वही ब्रह्म कहलाता है। पूज्य श्रीस्वामी संवित् सोमगिरिजी महाराज भी ब्रह्म की प्रतिमूर्ति थे। ऐसे दिव्य, अलौकिक ब्रह्मात्मा के श्रीचरणों में कोटिशः शिवकामनाएँ।

अज्ञानता का गहरा अंधकार है छाया,
अभी तो छोटा-सा दीप है जलाया।
बाधाओं के सामने कभी झुकना नहीं,
कर्मशील रहो सदा कभी रूकना नहीं।
जय-जय सनातन, जय गुरु-परम्परा।

विवेक मित्तल
समाजसेवी, विचारक एवं पत्रकार
मो. 9414309014