‘यज्ञसंस्कृति’ को पुनर्जीवित करनेवाले मोक्षगुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
‘इहलोक में अर्थात पृथ्वी पर धर्मसंस्थापना करने हेतु ही, हे श्रीमन्नारायण, आपने जन्म लिया । ‘भगवान सदाशिव की ओर से ज्ञान, तथा जनार्दन से मोक्ष प्राप्त होता है’, इस वचन के अनुसार श्रीमन्नारायण, आपमें साधकों को मोक्ष तक ले जाने की इतनी लगन है कि मनुष्य को अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त हो, इसके लिए इस घोर कलियुग में आपने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की स्थापना की । ‘गुरुकृपायोग’ में ज्ञानयोग, ध्यानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग, ये सर्व साधनामार्ग अंतर्भूत हैं । हे गुरुदेवजी साधकों में परिपूर्णता आने हेतु नाम, यज्ञ, ध्यान, ज्ञान, इन सभी साधनों का व्यापक और गहरा ज्ञान आप दे रहे हैं । आप साधकों को सैद्धांतिक और प्रायोगिक दोनों अंगों की शिक्षा देकर इस कलियुग में भी साधकों से चार युगों की साधना करवाकर उन्हें पूर्णत्व तक पहुंचा रहे हैं । उसके लिए सनातन धर्म के महत्त्वपूर्ण और अभिन्न अंग ‘यज्ञसंस्कृति’ को आप पुनर्जीवित कर रहे हैं । इसके लिए अखिल मानवजाति आपकी ऋणी है तथा हम साधक आपके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं ।
– श्रीमती शालिनी मराठे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
१. विलुप्त हो रही यज्ञसंस्कृति
२१ वीं शताब्दी अर्थात आज की युवा पीढी को केवल जन्म, मृत्यु और विवाह के अवसर पर किया जानेवाला होम (यज्ञ) ही ज्ञात होता है । युवकों ने किसी देवी के मंदिर में किया जानेवाला नवचंडी याग या गणेशयाग देखा होता है । इसके अतिरिक्त याग के संदर्भ में उन्होंने कुछ नहीं देखा होता ।
२. यज्ञसंस्था को पुनर्जीवित करना
सनातन संस्था की ओर से नवंबर २०१९ तक २२० यज्ञ किए गए । रामनाथी आश्रम के साधकों को इन सभी यज्ञों को देखने का और यज्ञस्थल पर नामजप करने के लिए बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, कुछ अन्य संत और पुरोहित साधकों को यज्ञ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इससे साधकों को यज्ञ के संदर्भ में नया और अनमोल सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक (अनुभवजन्य) ज्ञान मिला । उन्हें यज्ञ के लाभ और परिणामों का अनुभव करना संभव हुआ । इस कारण साधकों को इन यज्ञ-यागों का कभी भी विस्मरण नहीं होगा ।
३. सीखने के लिए मिले सूत्र
३ अ. संकल्प का महत्त्व : यज्ञ के संकल्प अर्थात उद्देश्य का उच्चारण करना महत्त्वपूर्ण होता है । यज्ञ से देवता के प्रसन्न होने से हमारा संकल्प सिद्धि तक पहुंचता है । उसके कारण हमारा कार्य पूरा होता है । सनातन संस्था की ओर से किए गए सभी यज्ञ जनकल्याण के उद्देश्य से किए गए । यज्ञ के संकल्प ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी का महामृत्युयोग टलकर उन्हें स्वस्थ जीवन और दीर्घायु प्राप्त हो, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो और साधकों के आध्यात्मिक कष्ट दूर होकर उनसे अच्छी साधना हो’, इस प्रकार के समष्टि कल्याण हेतु थे ।
३ आ. पूर्णाहुति का महत्त्व : प्रत्येक यज्ञ में अज्ञानवश कुछ अपूर्ण रहा हो, तो यज्ञ को पूर्णता तक पहुंचाने हेतु ‘पूर्णाहुति’ दी जाती है । उस समय श्रीफल अर्पण कर यज्ञकुंड में घी की धारा छोडी जाती है ।
३ इ. त्रिवार विष्णु का स्मरण करने का महत्त्व : यज्ञ में कुछ त्रुटियां रह गई हों, तो यज्ञ पूरा होने पर भगवान हमें क्षमा करें और ये त्रुटियां दूर होकर यज्ञ पूर्णता तक पहुंचे; इसके लिए सभी को श्रीविष्णु का स्मरण करना होता है ।
३ ई. गुरुचरणों में अर्पण करने का महत्त्व : अंततः सभी कर्म ‘इदं न मम ।’ अर्थात ‘यह मेरा नहीं है’ और ‘यह ईश्वर ने ही करवाया है’; इसके लिए उनके चरणों में ‘ब्रह्मार्पणमस्तु ।’ अर्थात ‘यह सब ब्रह्मार्पण हो’, ऐसा बोलकर गुरुचरणों में अर्पण करना होता है अर्थात कर्मफल का त्याग करना होता है ।
३ उ. गुरुकृपा का महत्त्व : यज्ञ में कितने भी विघ्न क्यों न आएं; परंतु गुरुकृपा से उनका निवारण हुआ । महारुद्रयाग करते समय सूक्ष्म से अनेक विघ्न आए । यज्ञस्थल पर दबाव बढकर सहस्रार से अनाहत चक्र तक बहुत दबाव प्रतीत हो रहा था । तब पुरोहितों को कुछ सूझ नहीं रहा था । उनके लिए मंत्र बोलना कठिन हो रहा था । उसके उपरांत सद़्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी ने नामजप किया । यज्ञस्थल पर (आकाशतत्त्व के उपाय होने हेतु) सात बक्से रखे गए । उन्होंने मंत्रजप किया । कर्नाटक के विनय गुरुजी के मार्गदर्शन में दत्तगुरु और कालभैरव देवता प्रत्येक को २ श्रीफल रखकर प्रार्थना की गई । उसके उपरांत वातावरण में व्याप्त दबाव दूर होकर चैतन्य बढा और यज्ञ निर्विघ्न रूप से संपन्न हुआ ।
४. अनुभूतियां
४ अ. श्री बगलामुखी यज्ञ के लिए बडी मात्रा में कनकचंपा के फूल उपलब्ध होना : श्री बगलामुखी यज्ञ के समय कनकचंपा के फूल की आवश्यकता थी और गोवा में एक ही दिन में इतने फूल उपलब्ध होना असंभव था । गुरुकृपा से कर्नाटक के शिवमोग्गा से प्रचुर मात्रा में फूल मिले और यह समस्या दूर हुई ।
४ आ. मिर्च का हवन करने पर भी मिर्च की सुरहुरी (तीखापन) न लगना : ‘अग्नि में १ – २ मिर्च भी पडे, तो उससे उत्पन्न सुरहुरी सहन नहीं होती’, इसका हमें अनुभव होता है । श्री उग्रप्रत्यंगिरा यज्ञ के लिए यज्ञस्थल की रक्षा करनेवाले सप्तदेवता एवं प्रमुख देवताआें के लिए हल्दी और कुमकुम लगाई हुई लाल मिर्च हवनद्रव्य था । इसमें ३ दिन तक बहुत सी मिर्च का हवन किया गया; परंतु मिर्च की गंध से किसी को भी सुरहुरी अथवा खांसी नहीं आई (वहां इतनी बडी मात्रा में काला आवरण था ।) साथ ही घी की आहुति न होते हुए भी बडी मात्रा में अग्नि प्रज्वलित हुई थी ।
४ इ. गुरुकृपा की अनुभूति : श्री. दामोदर वझे गुरुजी ने भावपूर्ण एवं पूर्ण श्रद्धा सहित मधुर स्वर में अनेक घंटे मंत्रपाठ किया, हम साधकों ने उन पर स्थित गुरुकृपा की यह अनुभूति ली है । पुरोहित वझे गुरुजी की अनुपस्थिति में सर्वश्री अमर जोशी, सिद्धेश करंदीकर, ईशान जोशी और अन्य पुरोहित साधकों ने (आयु २० से ३० वर्ष) समर्थता के साथ यज्ञ का दायित्व संभाला ।
४ ई. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के संदर्भ में अनुभूतियां : हे भगवान, श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के माथे पर कमल की आकृति (अंकित) दिखाई देना, उनका सिंदुर चमकते हुए दिखाई देना और उनका सहस्रार जागृत होने का प्रतीत होना, पूर्णाहुति के समय और आरती उतारते समय उनके पैरों से दैवी द्रव स्रवित होकर उनके गीले कदम भूमि पर अंकित होने जैसी स्थूल और सूक्ष्म स्तर की सैकडों अनुभूतियां आपने हम साधकों को दीं और आप ही ने हमारी श्रद्धा दृढ की ।
– गुरुचरणों में शरणागत, श्रीमती शालिनी मराठे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३०.११.२०१९)
सनातन के आश्रम में संपन्न कुछ विशेषतापूर्ण यज्ञ एवं विधियां
अ. ईश्वरेच्छा से और उन्नत पुरुषों के मार्गदर्शन में किए गए यज्ञ : ये सभी यज्ञयाग महर्षि की आज्ञा से, परात्पर गुरु डॉक्टरजी के संकल्प से और अधिकारी व्यक्तियों और संतों के मार्गदर्शन में संपन्न हुए; इसलिए वे परिपूर्ण और परिणामकारी सिद्ध हुए, उदा. पंचमुखी हनुमत्कवच यज्ञ के समय प.पू. दास महाराजजी का, अश्वमेध यज्ञ के समय में अश्वमेधयाजी प.पू. नाना काळे गुरुजी का, उच्छिष्ट गणेशयाग के समय प.पू. रामभाऊस्वामीजी का, तो पंचमहाभूतों के देवताआें के लिए किए यज्ञ के समय प.पू. आबा उपाध्येजी का मार्गदर्शन मिलने से अनेक साधकों ने, ‘ये यज्ञ देवलोक में हो रहे हैं’, इसकी अनुभूति ली । ‘विविध राज्यों के (महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु इत्यादि) संतों के मार्गदर्शन में संपन्न इन यज्ञों को देखते समय ‘ये सभी संत तो महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की यज्ञशाला के प्राध्यापक हैं’, मन में यह विचार आने से मैं आनंदित हुआ ।
आ. सनातन वैदिक धर्म में अनेक देवता होने के पीछे का परिपूर्ण शास्त्रीय और प्रगल्भ दृष्टिकोण समझ में आना : रामनाथी आश्रम में विविध देवताओं के लिए यज्ञ संपन्न हुए । श्री महासुदर्शन यज्ञ, श्री बगलामुखी यज्ञ, महाचंडी यज्ञ, महारुद्रयाग, श्री त्रिपुरसुंदरीललिताअंबा यज्ञ, श्री राजमातंगी देवी यज्ञ, पंचमहाभूततत्त्व यज्ञ, ऋषियज्ञ, गरुडपंचाक्षरी यज्ञ, पितृयज्ञ, श्री अर्कगणपति यज्ञ, श्री धन्वंतरि यज्ञ, पंचमुखी हनुमत्कवच यज्ञ, श्री उग्रप्रत्यंगिरा यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, साधकों ने ऐसे अनेक यज्ञ देखे और उनकी अनुभूति ली ।
सनातन के साधकों द्वारा किए यज्ञों की विशेषताएं
१. ईश्वर द्वारा साधकों से द्वापर युग की साधना करवाना : विविध देवता, उनके कार्य, उनका गायत्रीमंत्र, देवताआें के बीजमंत्र, हविर्द्रव्य, हवनों की संख्या, हवन और ध्यान का मंत्र, यज्ञकुंड के प्रकार, देवतापूजन की अंग-रचना (षोडशोपचार पूजा), फूलों की सजावट, रंगोलियां, पुरोहित वर्ग और यजमानों के वस्त्रों के (सूती अथवा रेशमी पवित्र वस्त्रों के) रंग इन सभी बातों का प्रायोगिक (प्रत्यक्ष) ज्ञान देकर ईश्वर ने साधकों को सिखाया, तैयार किया और सभी से द्वापरयुग की साधना करवाई । ‘ये सर्व देखते समय हम महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के आरंभिक छात्र हैं तथा यह हमारी पहली टुकडी (ग्रुप) है’, इस विचार से मैं बहुत आनंदित हुआ । ‘भविष्य में इस यज्ञशाला में शिक्षा लेनेवाले छात्र इन यज्ञों की दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं देखेंगे; परंतु हमने इन यज्ञों को प्रत्यक्ष देखा’, यह आनंद तो कुछ अलग ही है ।
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यज्ञ से लाभ
साधक एवं समाज के व्यक्तियों को सूक्ष्म और स्थूल स्तर पर यज्ञ के अनेक लाभ हुए हैं ।
अ. तपस्या (साधना) होना : इसमें पुरोहित वर्ग, यज्ञकर्ता, (यजमान) ध्वनिचित्रीकरण करनेवाले साधक एवं सूत्रसंचालकों की तपस्या हुई ।
आ. ईश्वर ने सभी साधकों की क्षमता बढाई : पुरोहित वर्ग और यज्ञकर्ता साधक, संत एवं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को पूजा, साथ ही हवन करने हेतु कभी-कभी ७ – ८ घंटे तक भूमि पर आसन डालकर बैठना पडता था । पुरोहित साधकों को ऊंचे स्वर में और तीव्र गति से निरंतर मंत्रपाठ करने पडते थे; परंतु तब भी यज्ञ के समय ८ घंटे तक निरंतर सेवा कर भी ‘कभी कोई थका अथवा ऊब गया हो’, ऐसा नहीं लगा । ‘यज्ञ संपन्न होने के पश्चात साधक अधिक उत्साहित और कार्यक्षम हुए हैं और वे भावावस्था में एवं आनंदित हैं’, ऐसा प्रतीत होता था । यज्ञस्थल पर नामजप करते हुए बीमार साधक भी ८ घंटे कुर्सी में बैठे रहते थे । श्रद्धा के कारण ईश्वर ने सभी की क्षमता बढाई ।
इ. तेज बढना : ‘यज्ञ के समय श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी श्रीसूक्त में वर्णित महालक्ष्मीदेवी की भांति स्वर्ण कांति और चैतन्य से चमकती रहती थीं, उस समय साधकों की आंखें दीप्त हो जाती थीं ।
ई. निरीक्षणक्षमता बढना : यज्ञ से निकल रहे धुएं की दिशा, रंग, मात्रा; अग्नि की ज्वालाओं का पीला सा रंग, लाल है अथवा नीला ?, अग्नि प्रदीप्त है अथवा धीमी ? देवी के गले में स्थित पुष्पमाला की लंबाई बढी है तथा वह ताजा है, देवी के मुकुट पर स्थित फूल गिर गया है, वरुणदेवता के आशीर्वाद के रूप में वर्षा हो रही है इत्यादि बातों के संदर्भ में किसी के बिना बताए भी उस प्रकार से सभी का निरीक्षण होने लगा ।
उ. कुछ मात्रा में सूक्ष्म जानना संभव होना : ‘अच्छे स्पंदन प्रतीत होते हैं । सिर पर दबाव प्रतीत होता है, हल्कापन लगता है । चैतन्य प्रतीत होता है । कष्ट प्रतीत होता है’ आदि वातावरण में आनेवाले परिवर्तन और जब पूर्णाहुति के लिए संत आते हैं, तब साधकों के लिए चैतन्य और आनंद से भारित वातावरण पहचानना संभव होने लगा ।
ऊ. शुभ-अशुभ संकेतों के संबध में थोडा अध्ययन होने पर ईश्वर के प्रति श्रद्धा बढना : ‘देवता की मूर्ति पर चढाया हुआ फूल गिर जाना, देवता की मूर्ति का तेज बढना, वर्षा होना, सुगंध आना, यज्ञस्थल पर तितलियां आना, ये सभी शुभ संकेत हैं । इसके विपरीत देवता को अर्पित करने के लिए नारियल तडक जाना, फूल मुरझाना, यज्ञ की अग्नि धीमी होना आदि अशुभ संकेत होते हैं, इसका भी अध्ययन हुआ ।
ए. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में विद्यमान दैवी गुणों के हुए दर्शन : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में विद्यमान यज्ञ और पूजा के साथ एकरूपता (तन्मयता), निरंतर वर्तमान में रहने का उनका कौशल, उनका दायित्व, मन की स्थिरता, आज्ञापालन, भावावस्था; ईश्वर की शक्ति, आनंद और चैतन्य ग्रहण करने की उनकी क्षमता, उसमें हुई वृद्धि, उनका तेज, तप, उत्साह और अथक परिश्रम उठाने पर भी कमल समान ताजा रहना, साधकों को इन सर्व गुणों के दर्शन हुए । यज्ञ के समय रामनाथी आश्रम के साधकों को इन सद़्गुरुद्वयी में महालक्ष्मीदेवी की सुंदरता, उनमें निहित दैवी गुण और उनमें आनेवाले परिवर्तनों को प्रत्यक्ष रूप से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
ऐ. यज्ञ के कारण वातावरण में व्याप्त काली शक्ति नष्ट होने से वातावरण शुद्ध हुआ ।
ओ. ‘यूएएस’ उपकरण से वस्तुओं का परीक्षण करने पर वस्तुआें के प्रभामंडल में वृद्धि दिखाई दी ।
औ. वातावरण में व्याप्त सात्त्विकता, चैतन्य और आनंद में वृद्धि होकर साधकों के कष्ट न्यून हुए ।
अं. संस्कृत से परिचय होना : देवभाषा संस्कृत से परिचय होने पर साधकों को उससे आध्यात्मिक लाभ हुआ । कुछ बालसाधकों को श्लोक और आरतियां कंठस्थ हो गईं ।
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