महाभारत में श्रीकृष्‍ण द्वारा अर्जुन व उनके रथ की रक्षा करने तथा परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा अनिष्‍ट शक्‍तियों से साधकों की रक्षा करने में समानता

श्री. विनायक शानभाग

१. युद्ध समाप्‍त होने के उपरांत श्रीकृष्‍णजी के रथ से नीचे
उतरते ही अर्जुन का रथ जलकर भस्‍म हो जाना

     ‘महाभारत का युद्ध समाप्‍त होते ही सर्वप्रथम श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को रथ से नीचे उतरने के लिए कहा । उसके उपरांत हनुमान को अपने स्‍वस्‍थान जाने की आज्ञा दी । हनुमान अपना धर्मध्‍वज लेकर निजधाम पहुंचे । फिर श्रीकृष्‍ण रथ से नीचे उतरे और उनके नीचे उतरते ही वह रथ एक क्षण में जलकर भस्‍म हो गया । अर्जुन इस घटना को विस्‍मित होकर देखता रह गें ।
अर्जुन : हे श्रीकृष्‍ण, स्‍वयं अग्‍निदेव ने मुझे यह रथ प्रदान किया था; परंतु तब भी इस रथ की आहुति अग्‍नि में क्‍यों पडी ?
श्रीकृष्‍ण : हे अर्जुन, महारथी भीष्‍माचार्य, गुरु द्रोणाचार्य और महाबली कर्ण द्वारा प्रयोग किए गए अस्‍त्रों का विरोध करना असंभव है । उन्‍होंने पिछले १८ दिनों में एक से बढकर एक अस्‍त्रों का प्रयोग किया था, उसके कारण वास्‍तव में प्रथम दिन ही रथ को नष्‍ट हो जाना चाहिए था । उन महाबली वीरों द्वारा प्रयोग किए गए अस्‍त्रों के परिणाम के कारण रथ एक क्षण में नष्‍ट हो गया होता ।
अर्जुन : हे श्रीकृष्‍ण, यदि ऐसा था, तो इतने दिनों में रथ को कुछ भी क्‍यों नहीं हुआ? वह अभी ही नष्‍ट क्‍यों हुआ ?
श्रीकृष्‍ण : हे अर्जुन, ‘महारथी भीष्‍माचार्य, गुरु द्रोणाचार्य और महाबली कर्ण के अस्‍त्रों का परिणाम रथ पर कैसे नहीं होगा, यह मैंने देखा । मैं स्‍वयं इस रथ पर उपस्‍थित था; इसलिए उनके बलशाली शस्‍त्र भी निष्‍प्रभ हो गए । उनका छोटा परिणाम था रथ पर अंकित छोटे खरोंच ! मैं जिस क्षण रथ से नीचे उतरा, तब सूक्ष्म से पहले ही भस्‍म हो चुके रथ का दृश्‍य तुमने देखा ।

२. परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा अनिष्‍ट
शक्‍तियों के आक्रमण एवं मृत्‍यु से साधकों की रक्षा करना

अ. परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी भी इसी प्रकार अनिष्‍ट शक्‍तियों के आक्रमण एवं मृत्‍यु से साधकों की रक्षा कर रहे हैं । परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्रों पर उभर रही खरोंचें उसी के उदाहरण हैं । सनातन संस्‍था के साधक अर्जुन के छोटे रूप हैं तथा परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सप्‍तपाताल में निहित अनिष्‍ट शक्‍तियों द्वारा साधकों पर किए गए सूक्ष्म के आक्रमण दूर किए हैं ।

आ. महाभारत का युद्ध १८ दिनों तक चला । सनातन के साधकों को अनिष्‍ट शक्‍तियों के तीव्र कष्‍ट आरंभ हुए अब १८ वर्ष पूरे हो रहे हैं । श्रीकृष्‍णस्‍वरूप परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को अनिष्‍ट शक्‍तियों के कष्‍टों से सुरक्षित दूर ले जाकर अब अंतिम चरण तक पहुंचा दिया है ।

‘हे गुरुदेवजी, इसके लिए हम साधक आपके चरणों में कितनी भी कृतज्ञता व्‍यक्‍त करें, अल्‍प ही है ।’

– श्री. विनायक शानभाग, देहली. (२६.४.२०१९)

बुरी शक्‍ति : वातावरण में अच्‍छी तथा बुरी (अनिष्‍ट) शक्‍तियां कार्यरत रहती हैं । अच्‍छे कार्य में अच्‍छी शक्‍तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्‍ट शक्‍तियां मानव को कष्‍ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्‍न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्‍थानों पर अनिष्‍ट शक्‍तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्‍ट शक्‍ति के कष्‍ट के निवारणार्थ विविध आध्‍यात्‍मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।

सूक्ष्म : व्‍यक्‍ति का स्‍थूल अर्थात प्रत्‍यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीव्‍हा एवं त्‍वचा यह पंचज्ञानेंद्रिय है । जो स्‍थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्‍तित्‍व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्‍लेख है ।