आपको परम पूज्य कहूं या भगवान । परम पूज्य हैं एक भगवान ॥
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा
‘विगत ३० वर्षों से परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ‘गुरुकृपायोग’ नामक साधनामार्ग के माध्यम से मुझसे साधना करवा रहे हैं । उनकी कृपा से मेरी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर की समस्याएं दूर होकर मैं आनंदित हूं । साधना एवं धर्मसेवा करते समय देवताओं के रूप में वे निरंतर मेरी सहायता कर अनुभूतियां प्रदान कर रहे हैं ।
२. ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी को पहचान पाना’ साधना है
परात्पर गुरु पांडे महाराजजी सदैव कहते थे, ‘‘परम पूज्य डॉक्टरजी को कोई नहीं पहचान सकता । ‘उन्हें पहचानना’ मेरी साधना है । वेद, पुराण इत्यादि में निहित संदर्भों के आधार पर परात्पर गुरु डॉक्टरजी धर्मसंस्थापना हेतु भूलोक पर अवतरित हुए पुरुष हैं ।’’ उसके उपरांत महर्षि ने बताया, ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी श्रीविष्णु, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के अवतार हैं ।’ सभी साधक इसकी अनुभूति ले रहे हैं ।
३. संतों द्वारा वर्णित परात्पर गुरु डॉक्टरजी की महानता
हाल ही में कर्नाटक के एक संत ने साधना की दृष्टि से मेरा भविष्यकथन किया । उस समय उन्होंने मुझे बताया, ‘‘वे (परात्पर गुरु डॉक्टरजी) अनेक जन्मों से मेरे साथ हैं और आगे भी रहेंगे’; परंतु तब भी ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी निश्चित रूप से कौन हैं ?’, यह मैं पहचान नहीं सका और ‘उन्हें निश्चित रूप से क्या कहकर बुलाना है’, यह मेरी समझ में नहीं आता । इसका चिंतन करने पर उन्हीं की कृपा से मुझे यह काव्य सूझा । इस काव्य को मैं उनके चरणों में कृतज्ञतापूर्वक अर्पित कर रहा हूं ।
– (पू.) श्री. शिवाजी वटकर, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल, महाराष्ट्र. (३१.१२.२०१९)
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को ‘डॉक्टरजी’ के स्थान पर और क्या कहना चाहिए ?’,
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देवताओं के तत्त्व से युक्त परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !
१. महादेव की भांति स्वयं अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का
हलाहल प्राशन कर साधकों की रक्षा करनेवाले प.पू. गुरुदेवजी !
‘हे गुरुदेवजी, इस घोर संकटकाल में सप्तपाताल में निहित भयानक अनिष्ट शक्तियों से लडकर श्री दुर्गामाता की भांति आप हमारी रक्षा कर रहे हैं और हमें भी लडने के लिए तैयार कर रहे हैं । देवाधिदेव महादेव की भांति आप हलाहल अर्थात अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म स्तरीय प्राणघाती आक्रमणों को स्वयं झेलकर साधकों की रक्षा कर रहे हैं ।
२. प्रभु श्रीराम की भांति हनुमान जैसे अनेक
सेवकों की पंक्ति बनानेवाले प.पू. गुरुदेवजी !
हे गुरुदेवजी, आप प्रत्यक्ष मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ही हैं । ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापना का शिवधनुष्य आपके अतिरिक्त और कौन उठाएगा ? ग्लानि से ग्रस्त हिन्दू धर्म को संजीवनी दिलाने हेतु श्री हनुमान जैसे अनेक सेवकों की पंक्ति आपके अतिरिक्त कौन बनाएंगे ?
३. भगवान दत्तात्रेय की भांति साधकों में सजीव-निर्जीव
सृष्टि से सीखने की वृत्ति उत्पन्न करनेवाले परात्पर गुरुदेवजी !
गुरुदेव, ‘गुरुकृपा हि केवलं शिष्यपरममङ्गलम् ।’ अर्थात ‘गुरुकृपा के कारण शिष्य का परममंगल होता है ।’ श्री गुरुदेव दत्तात्रेय ने २४ गुरु किए और ‘सीखने की वृत्ति कैसी होनी चाहिए ?’, इसका आदर्श हमारे सामने रखा । आपने तो हमारे अंदर पत्थर, वृक्ष-बेल, पशु-पक्षी जैसी सजीव-निर्जीव सृष्टि से निरंतर सीखने की वृत्ति उत्पन्न की । आपने हमारे अंदर मनुष्यजन्म को सार्थक बनाने की लालसा उत्पन्न की और आप सहस्रों साधकों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर रहे हैं ।
हे गुरुदेवजी, आप श्री लक्ष्मीमाता की भांति हम सभी साधकों को आध्यात्मिक ऐश्वर्य एवं संतुष्टि प्रदान कर रहे हैं ।
– श्री. विलास महाडिक, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (२३.२.२०१७)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं । – संपादक |