स्वभावदोष निर्मूलन सत्संग की सेवा करते हुए सीखने को मिले सूत्र और स्वयं में अनुभव हुए परिवर्तन !
‘श्रीगुरु की कृपा से संचारबंदी (लॉकडाउन) की कालावधि में चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (७.४.२०२०) को झारखंड, बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के साधकों के लिए स्वभावदोष निमूर्लन सत्संग आरंभ हुआ । पिछले एक वर्ष से यह साप्ताहिक सत्संग चल रहा है । २६.४.२०२१ को इस सत्संग को एक वर्ष पूर्ण हो रहा है । सत्संग लेने की सेवा करते समय मुझे सीखने को मिले सूत्र कृतज्ञतास्वरुप गुरुचरणों में अर्पण करने का प्रयास कर रही हूं ।
१. ‘जीवन का कायापालट करनेवाली स्वभावदोष निर्मूलन दैवी प्रक्रिया का आनंद लेकर साधक शीघ्र आध्यात्मिक उन्नती करें’, इस उद्देश्य से सत्संग लेना आरंभ करना : वर्ष २००३ से गुरुदेवजी ने साधकों को स्वभावदोष निमूर्लन प्रक्रिया सिखाई है, लेकिन ‘अभी भी यह प्रक्रिया हम साधकों से अच्छे से नहीं हो रही है’ यह मेरे ध्यान में आया । कई बार सारिणी के सभी कॉलम न भरना और स्वसूचना योग्य प्रकार से न बनाने के कारण साधकों को स्वयं में परिवर्तन अनुभव नहीं होते । इसलिए उन्हें यह प्रक्रिया कठिन लगती है तथा ‘उनमें इसके प्रति निरसता है’ ऐसा मेरे ध्यान में आया । अत: जीवन का कायापलट करनेवाली यह प्रक्रिया सभी साधक अच्छे से सीखकर प्रक्रिया का आनंद लें और आध्यात्मिक उन्नति के लिए गति से साधकों के प्रयास हो, यह उद्देश्य रखकर साधकों के लिए संचारबंदी (लॉकडाउन) की कालावधि में यह सत्संग आरंभ किया गया ।
२. संतों का संकल्प, अस्तित्व और आशीर्वाद के कारण स्वभावदोष निर्मूलन सत्संग का अनेक साधकों का अत्यधिक लाभ होकर उनकी व्यष्टि और समष्टि साधना भलीभांति होना : आरंभ के सत्संगों में मन का निरीक्षण करना, दिनभर के समय का नियोजन करना, स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की (सारिणी लेखन से लेकर स्वसूचना की विभिन्न पद्धतियां) सैद्धांतिक जानकारी के साथ ही उसका प्रायोगिक भाग लेने का प्रयास किया । संतों के संकल्प, अस्तित्त्व व आशीर्वाद के कारण इस सत्संग का अनेक साधकों को बहुत लाभ मिला । कई साधकों की प्रक्रिया आरंभ होने से उनके मन की स्थिति में बहुत परिवर्तन हुआ । साधकों की व्यष्टि साधना अच्छी होने लगी और व्यष्टि अच्छी होने के कारण समष्टि में उनका सहभाग भी बहुत बढा है ।
३. श्रीकृष्ण ने स्वभावदोष निर्मूलन सत्संग लेने का अवसर देकर जन्मदिवस पर अनमोल भेट देना ! : गुरुदेवजी की कृपा से यह सत्संग लेने की सेवा मुझे मिली । पिछले वर्ष तिथि अनुसार जन्मदिन के दिन यह सत्संग आरंभ हुआ । जन्मदिन की सुबह मैंने श्रीकृष्णजी को पूछा ‘आप मुझे आज क्या भेंट देने वाले हो ?’ श्रीकृष्णजी ने मुझे भेंटस्वरुप सत्संग लेने की सेवा दी । इस अनमोल भेंट के कारण मुझमें जो परिवर्तन हुए, उन पर मुझे स्वयं को भी विश्वास नहीं होता । ‘यह केवल और केवल गुरुकृपा से ही संभव है’, इसका भान इस अज्ञानी जीव को हो रहा है ।
४. अनुभूती
४ अ. स्वभावदोष निर्मूलन सत्संग में विषय प्रस्तुत करते समय ‘कौन सी चूकें हो सकती है?’, इस बारे में रात्रि स्वप्न में संतों का मार्गदर्शन प्राप्त होना : एक सप्ताह की कालावधि में २ – ३ बार मुझे रात को स्वप्न में कभी सद़्गुरु पिंंगळेकाका (सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे), कभी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ, तो कभी पू. नीलेश सिंगबाळ ‘अगले सप्ताह के विषय से संबंधित मेरी गलती का प्रसंग बताकर मुझे योग्य दृष्टिकोण बता रहे हैं ।’, ऐसा दिखाई देता था । संतों से मिल रहे मार्गदर्शन के कारण मुझे बहुत कृतज्ञता लगती ।
४ आ. सत्संग में बोलते समय मैं नहीं बोल रही हूं ऐसा प्रतीत होना तथा आवाज भी भिन्न लगना : सत्संग में विषय प्रस्तुत करते समय ‘मैं न बोलकर मेरे माध्यम से अन्य कोई बोल रहा है’, ऐसा मुझे प्रतीत होता । सत्संग के समय मेरी आवाज और अन्य समय की मेरी आवाज का भेद मेरे ध्यान में आता था । सत्संग के कारण मेरा विषय का अध्ययन कर प्रस्तुत करने के आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई है ।
४ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी ने सूक्ष्म से मार्गदर्शन करना : सत्संग लेने के लिए अध्ययन करते हुए मेरी बहुत भावजागृति होती है । ‘गुरुदेव जी ने कितना गहन अध्ययन कर स्वभावदोष निर्मूलन की प्रक्रिया सरल स्वरूप में हमें बताई है ।’, यह प्रतीत होकर मैं कृतज्ञता व्यक्त करती । अनेक बार ‘मेरी कुर्सी के पीछे खडे रहकर गुरुदेव मुझे ‘क्या लिखना है ?’ यह बता रहे है अथवा कभी मेरे पडोस में बैठकर मार्गदर्शन कर रहे हैं’, ऐसा मुझे प्रतीत होता ।
५. अनुभव हुए परिवर्तन !
५ अ. दोपहर में सोने की पुरानी आदत होने पर भी सेवा पूर्ण किए बिना न सोना : मुझे दोपहर में सोने की आदत थी । कितनी भी व्यस्तता हो, मैं दिन में सोने के लिए समय निकाल ही लेती । लेकिन अब साधना के सूत्र, सेवा जब तक पूर्ण नहीं होती, तब तक मुझे नींद नहीं आती । दिनभर में करने की नियोजित सेवा अपूर्ण छोडकर मैं सोने गई, तो मुझे भीतर से ‘पहले सेवा पूर्ण करो’, ऐसा कोई बता रहा है ।’, ऐसा लगता था । कभी ‘उठने के बाद करेंगे’, ऐसे छूट लेने के विचार आने पर भी मैं त्वरित उठकर प्रथम सेवा को प्रधानता देती हूं । ‘मैं ऐसा कर सकती हूं’, इसका मुझे ही विश्वास नहीं होता और मेरे माता-पिता को भी अत्यधिक आश्चर्य लगता है ।
५ आ. स्वभावदोष निर्मूलन सत्संग लेने का अवसर देकर एकाकी स्वभाव और सभी के सामने बोलने का भय दूर करना तथा अन्यों की सहायता करने की वृत्ति निर्माण होना : मैंने भौतिकशास्त्र में स्नातकोत्तर (Masters in Physics) किया है । सभी को लगता है ‘मुझे प्राध्यापिका की नौकरी के लिए प्रयास करना चाहिए’; किन्तु एकाकी स्वभाव और सभी के सामने बोलने के भय के कारण मैंने वह नहीं
किया । ‘मैं कभी कोई बात किसी को समझाकर बता नहीं सकती’, ऐसा मुझे लगता था । मैं साधकों से भी नहीं बोलती थी; किन्तु मेरा यह स्वभावदोष दूर करने के लिए ही गुरुदेवजी ने मुझे यह सत्संग लेने का अवसर दिया और सहायता करने के लिए अनेक अनमोल साधकपुष्प दिए । अब मुझे साधकों के प्रति अपनापन लगता है और ‘साधक मन खोलकर बोलेे’, इस हेतु ‘मैं उन्हें कैसे सहायता करूं ? क्या प्रयास करूं ?’, ऐसा मुझे भीतर से लगता है । अपने आप ही मुझसे वैसे प्रयास होते है । गुरुदेवजी की कृपा से इस सेवा के माध्यम से वही मुझे साधकों के लिए आवश्यक सूत्र सुझाते है ।
५ इ. व्यक्तिनिष्ठता से तत्त्वनिष्ठता की ओर ले जाना : पहले मैं एक उत्तरदायी साधक से मन खोलकर बात करती थी; किन्तु ‘अन्य किसी से भी मैं मन खोलकर नहीं बोल सकती’, ऐसा मुझे लगता था । गुरुदेवजी ने शंभू भैया (श्री. शंभू गवारे), पू. नीलेश सिंगबाळ, पू. खेमका भैया और पू. (श्रीमती) खेमका दीदी के माध्यम से मुझे तत्त्वनिष्ठ रहना सिखाया ।
६. कृतज्ञता : इस सत्संग के माध्यम से गुरुदेवजी ने मुझ जैसे अज्ञानी जीव पर बहुत कृपा की और मुझे अंतर्मुख बनाकर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त किया । इस हेतु मैं शब्दों में कृतज्ञता व्यक्त नहीं कर सकती और कृतज्ञता व्यक्त करने की मेरी पात्रता भी नहीं है !
कु. मधुलिका शर्मा, झारखंड (७.४.२०२१)
गुरुकृपा की वर्षा में भीगे हर क्षण ।मन में, विचारों में, कृति में, दृष्टि में । सिर पर रहे, प.पू. का हाथ । हर एक साधक में हो गुरुदेव आपके दर्शन । – गुरुचरणों में समर्पित, |