महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कार्यशाला में जिज्ञासुआें के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ‘स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन’ संस्था के प्रेरणास्रोत हैं । पूरे विश्व में अध्यात्मप्रसार करने हेतु उन्होंने ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है । इस विश्वविद्यालय की ओर से भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र में ५ दिनों की आध्यात्मिक कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं । इन कार्यशालाआें का उद्देश्य ‘जिज्ञासुआें को साधना के प्रायोगिक भाग की जानकारी देकर उनकी साधना को गति प्रदान करना’ है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा इन कार्यशालाआें में उपस्थित जिज्ञासुआें के लिए किया मार्गदर्शन यहां दे रहे हैं । (भाग ४)
१. साधना
१. ई ३. प्रश्न पूछकर अथवा ग्रंथ पठन कर नहीं, अपितु साधना करने से ही बुद्धि की अडचन दूर होती है ।
श्रीमती श्वेता क्लार्क : कु. मिल्की ने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ एवं अन्य अनेक धार्मिक ग्रंथ का पठन किया है; परंतु उसे उसमें साधना से संबंधित कोई मार्गदर्शन नहीं मिला । वह सत्सेवा करना चाहती है । इसलिए जाने से पूर्व वह उसकी कुशलताआें की सूची देनेवाली है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : अंत में हमें अपना तन, मन एवं धन सबकुछ ईश्वर को अर्पण करना होता है । प्रत्यक्ष रूप से वह उनका ही है, अपना कुछ नहीं है । हम कहते हैं, ‘यह मेरा घर है’ । हम वहां रहते हैं एवं एक दिन मर जाते हैं । हमारे आने से पूर्व एवं पश्चात भी वह ईश्वर का ही होता है । अतः सबकुछ ईश्वर को अर्पण करना ही उत्तम है । अपना तन, मन एवं धन सब कुछ ईश्वर को अर्पण करना है । इसके लिए सत्सेवा माध्यम है । अनेक ग्रंथों को पढने से हमें सब केवल बुद्धि से समझ में आता है । प्रत्यक्ष साधना करते समय बुद्धि को ईश्वर के चरणों में अर्पण कर हमेें बुद्धि का लय करना होता है । इसके पश्चात ही हम विश्वबुद्धि अर्थात ईश्वर की बुद्धि से एकरूप हो पाते हैं । ग्रंथ पढकर हम अपनी बुद्धि का समाधान करते हैं; परंतु ‘बुद्धिलय करना साधना का ध्येय है’। हमें यह निरंतर ध्यान में रखना चाहिए ।
कु. मिल्की अग्रवाल ः मेरे मन में आनेवाली शंकाओं का निवारण करने हेतु मैं क्या कर सकती हूंं ?
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : यदि किसी को पैसे अर्जन करने में ही रुचि है, तो वह साधना पर ध्यान कैसे केंद्रित कर सकता
है । उससे उसके जीवन में अडचन सिद्ध होगी । उसी प्रकार ‘बुद्धि’ आपकी साधना में अडचन है, यह ध्यान में आने पर उसे दूर करने हेतु वैसी स्वसूचना दे सकती हैं । साधना में आनेवाली अडचनों पर विजय पाना आवश्यक है । मुंबई से एक पति-पत्नी आए थे, पत्नी नामसाधना करती हैं । वह नामजप से होनेवाली अनुभूतियां मुझे बता रही थीं । इतने में बीच में ही उनके पति ने कहा, ‘मेरे पास नामजप से संबंधित ५०० ग्रंथ हैं । वे सब मैंने पढे हैं ।’ उन्होंने प्रत्यक्ष में कभी नामजप किया ही नहीं । इसलिए नामजप करने से क्या अनुभव होता है, यह उन्हेंं कभी नहीं समझ में आएगा ।
(उनकी पत्नी प्रत्यक्ष ग्रंथ पढे बिना साधना करती हैं, इसलिए उन्हें नामजप करते समय अनुभूतियां हुईं । अनुभूति का अर्थ है ईश्वर ने उनका साधनामार्ग उचित होने का प्रमाण दिया ।)
कु. मिल्की अग्रवाल ः कुछ समय पूर्व मैं निराश थी परंतु तत्पश्चात मुझे स्वयं में हुए आमूल परिवर्तन ध्यान में आने लगे । नामजप करने से मुझे बहुत लाभ हुए हैं । अब मैं बहुत सकारात्मक हो गई हूं । ईश्वर मेरा मार्गदर्शन करते हैं, इसलिए मुझे उत्साह प्रतीत हो रहा है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : यह परिवर्तन ग्रंथ पढने से नहीं, अपितु नामजप करने से आपको प्रतीत हो रहा है ।
१ उ. सत्सेवा एवं अन्य लोगों से सीखने की वृत्ति, ये आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वोत्तम मार्ग हैं !
श्राीमती श्वेता क्लार्क : श्रीमती योगिता में (श्रीमती योगिता चेऊलकर) आए बदलाव देखकर बहुत आश्चर्य हुआ । वे किसी भी सेवा के लिए सदैव उत्सुक रहती हैं एवं दायित्व लेकर सेवा करती हैं । कभी-कभी वे स्वयं पहल कर (आगे आकर) सेवा मांगकर लेती हैं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : सत्सेवा सबसे महत्त्वपूर्ण है । इससे हमारे अहं का विस्मरण होता है । हमें जो सेवा मिली है; उसे सर्वोत्तम पद्धति से पूर्ण करने पर हम अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं ।
श्रीमती श्वेता क्लार्क : श्रीमती योगिता में बहुत नम्रता है । जब हम सेवा में व्यस्त होते हैं, तब वे स्वयं ‘क्या आपको कुछ चाहिए ?’ ऐसा पूछती हैं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : सामान्य रूप से सभी केवल स्वयं का विचार करते हैं । यहां वे अन्य लोगों का विचार कर रही हैं, यह बहुत अच्छा है ! उनकी आध्यात्मिक उन्नति हो रही है ।
१. ऊ. साधना में ईश्वर द्वारा की जानेवाली सहायता
१ ऊ १. ईश्वर के अस्तित्व पर जिस साधक की संपूर्ण श्रद्धा होती है, उसे कोई समस्या नहीं होती अथवा उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है !
श्रीमती योगिता चेऊलकर : मैंने आपसे सूक्ष्म से बोलना आरंभ किया है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : मुझसे बोलने की अपेक्षा ईश्वर से बोलना अधिक अच्छा है ।
श्रीमती योगिता चेऊलकर : मै अपनी समस्याएं ईश्वर को बताती हूं एवं उन समस्याओं का समाधान हो जाता है । इसका मुझे भान होता है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : ईश्वर के प्रति हमारी संपूर्ण श्रद्धा होती है । इसलिए ईश्वर हमारी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं । ईश्वर के प्रति हमारी श्रद्धा न होने से हम चिंता करते हैं । आपको ईश्वर के प्रति दृढ श्रद्धा है, अतः ईश्वर आपके प्रत्येक विषय पर ध्यान देते हैं । आपके प्रयासों को देखकर मुझे अत्यधिक आनंद हुआ । आपने दूसरों के सामने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है ।
१ ऊ २. जिस जीव में जीवन में आगे जाकर साधना करने की क्षमता होती है, ईश्वर उसकी जानलेवा संकट से भी रक्षा करते हैं ।
श्रीमती श्वेता क्लार्क : श्रीमती मामी सुमगरी मूलतः जापान की हैं एवं आजकल वे मलेशिया में रहती हैं । एक बार वे ‘मॉल’ में गई थी । वहां एकाएक उनके मन में ‘मॉल’ से बाहर निकलने का विचार तीव्रता से आया । इसलिए वे वहां से बाहर निकल आईं । कुछ समय पश्चात ही ‘मॉल’ में बमविस्फोट हुआ । इस प्रसंग मेंं उन्हें भान हुआ कि ईश्वर ने उनकी रक्षा की । जापान के लोगों का ईश्वर के प्रति अधिक विश्वास नहीं है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी : पूरे विश्व मेंं कहीं भी लोगों का ईश्वर के प्रति विश्वास नहीं रहा । केवल जापान में ही नहीं, अपितु सभी लोगों को ईश्वर का विस्मरण हो गया है । ‘लोगों को ईश्वर के अस्तित्व का भान करवाना’ हमारा दायित्व है । हमें अध्यात्मशास्त्र ज्ञात है । इसलिए हम साधना कर रहे हैं । आप साधना आरंभ करने से पूर्व साधना समझ लें । अध्यात्म में उन्नति कैसे करनी चाहिए ? इस विषय में लोगों का मार्गदर्शन करना ही हमारी साधना है । ईश्वर ने आपकी रक्षा क्यों की ? आप सुरक्षित ‘मॉल’ के बाहर निकलीं । यह प्रसंग क्यों घटित हुआ ? विज्ञान में हम सदैव किसी भी घटना के पीछे का कारण एवं उसके परिणाम का अध्ययन करते हैं । आप सुरक्षित रहीं यह परिणाम है । ईश्वर द्वारा आपको ‘मॉल’ के बाहर जाने का विचार देने के पीछे क्या कारण है ? आपके क्षेत्र में आप जैसा विचार करती हैं, वैसा अध्यात्म में नहीं कर सकतीं । यदि किसी जीव में अध्यात्म में उन्नति करने की क्षमता होगी, तो ऐसे जानलेवा प्रसंग में ईश्वर ही उस जीव की रक्षा करते हैं एव उस पर ध्यान देते हैं । इस प्रसंग से ध्यान में आता है कि आपमें आध्यात्मिक उन्नति करने की अच्छी क्षमता है । आप प्रयास करें । आपकी आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होगी ।