६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त महर्लोक से पृथ्वी पर जन्मा जबलपुर, मध्य प्रदेश का चि. दिवित सार्थक मुक्कड (आयु १ वर्ष)
जन्मदिन पर ऑनलाईन सत्संग में ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित !
जबलपुर (मध्य प्रदेश) – भगवान श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित होनेवाले एवं देवतापूजन में रमनेवाले चि. दिवित सार्थक मक्कड का फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी अर्थात २६ मार्च को उसके जन्मद़िन पर ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित किया गया । यह आनंदवार्ता सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने एक ‘ऑनलाइन’ सत्संग में दी । इस अवसर पर चि. दिवित के पिता श्री. सार्थक मक्कड, मां श्रीमती श्वेता मक्कड, द़ादाजी श्री. भूषण मक्कड, द़ादीजी श्रीमती सीमा मक्कड, मौसी श्रीमती रश्मी शर्मा और नानीजी श्रीमती रिचा वर्मा सहित अन्य साधक उपस्थित थे ।
इस अवसर पर प्रारंभ में चि. दिवित की गुणविशेषताएं पूछने पर दिवित की दादी श्रीमती सीमा मक्कड बोलीं, ‘‘चि. दिवित को जो भी सिखाओ, वह तुरंत सीखता है । चलना, हाथ जोडना तुरंत ही सीखा । उसे केवल एक ही बार सिखाना पडता है, वह तुरंत ग्रहण करता है । वह कष्ट नहीं देता । रोता नहीं ।’’
दिवित की नानी श्रीमती रिचा वर्मा बोलीं, ‘‘दिवित संभाजीनगर आया था । तब वह श्रीकृष्ण के चित्र की ओर बार-बार आकर्षित हो रहा था । ऐसे लगा मानो वह कृष्ण को आलिंगन देने का प्रयत्न कर रहा हो ।’’ दिवित के दादाजी श्री. भूषण मक्कड ने कहा, ‘‘उसे प्रतिदिन तिलक लगाना अच्छा लगता है । वह सभी से तुरंत हिल-मिल जाता है । सभी से बोलने और हंसने का प्रयत्न करता है ।’’
चि. दिवित जन्मतः दैवीय गुण लेकर आया है ! – सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेसद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे बोले, ‘‘चि. दिवित जन्मतः दैवीय गुण लेकर आया है । दैवीय बालकों में अन्य बालकों की तुलना में विलक्षण गुण होते हैं । पूर्वजन्म की साधना के कारण उसका जन्म साधना और धर्मकार्य के लिए ही हुआ है । उसे बचपन में सिर पर शिखा के पास घाव का निशान, एक संकेत ही है । शिखा के माध्यम से दैवीय स्पंदन आकर्षित करने की प्रक्रिया होती है । इससे ध्यान में आता है कि ब्रह्मरंध्र से वह ईश्वर के विचार ग्रहण करता है । बालक के माता-पिता और उनके माता-पिता की साधना के परिणामस्वरूप दैवीय बालक जन्म लेते हैं । अब दिवित में देवत्व जागृत रखने के साथ ही उस पर योग्य संस्कार करने का उत्तरदायित्व परिवार का है ।’’ |
१. जन्म से ३ मास
अ. शरीर पर दैवी कण दिखाई देना : शिशु का जन्म हुआ, तब रुग्णालय में उसके शरीर पर दैवी कण दिखाई दिए ।
आ. सात्त्विकता का लगाव : शिशु (दिवित) को रोते समय पूजाघर में ले जाने से वह शांत होता था । दिवित सोते समय हाथों के उंगलियों की मुद्रा कर सोता है ।
२. आयु – ४ सेे ६ मास
अ. एक बार मैं कक्ष में उसे दूध पिला रही थी और पूजाघर में उसकी दादीजी आरती कर रही थी । तब उसने दूध पीते-पीते ही अपने हाथ जोडे । जब तक आरती चल रही थी, तब तक उसके हाथ नमस्कार की मुद्रा में ही थे ।
आ. दिवित के रोने पर ‘कृतज्ञता गीत’ लगाने से वह तुरंत शांत होकर उसे सुनता है और अत्यंत आनंदी होता है ।
इ. दिवित को पहली बार टीका दिया । तब उसे बुखार आया । मैंने हनुमान चालीसा लगाने पर वह शांती से सुनने लगा और मैं हनुमान चालीसा गा रही थी ‘तो वह भी गा रहा है’, ऐसा मुझे प्रतित हुआ ।
३. आयु – ७ से ९ मास
अ. ईश्वर के प्रति लगाव : उसे पूजाघर में ले जाने पर वहां बैठकर तालियां बजाता है । उसे वहां पर रहना अत्यंत पसंद है । दिवित को बाहर टहलने के लिए जाना भी अत्यंत पसंद है । उसके दादाजी उसे टहलने लेकर जाते समय यदि पूजाघर में आरती चल रही हो, तो वह ‘मुझे पूजाघर में जाना है’, ऐसे संकेत करके बताता है और रोता है ।
४. आयु – ८ से ११ मास
अ. संभाजीनगर की साधिका कु. चैताली डुबे और कु. प्रियांका लोणे एक बार हमारे घर आई थीं । उन्हें देखकर उसने स्वयं से ही नमस्कार किया । बहुत समय तक वह नमस्कार की मुद्रा में ही था ।
५. स्वभावदोष : हठ करना
‘हे गुरुदेव, हे श्रीमन्नारायण, आपकी ही कृपा से चि. दिवित की गुणविशेषताएं मेरे ध्यान में आयी और आपने ही मुझसे लिखवाईं, इसके लिए मैं आपके चरणों में कोटिशः कृतज्ञता व्यक्त करती हूं।’
– श्रीमती श्वेता मक्कड, जबलपुर, मध्य प्रदेश. (८.२.२०२१)