समान नागरिकता कानून लागू करने के विरोध में धर्मांध महिला द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट !
समान नागरिकता कानून लागू करने के संदर्भ में
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा प्रविष्ट याचिका का विरोध
मुसलमान समाज में स्त्री को उपभोग की वस्तु समझा जाता है, यह सर्वज्ञात है । ऐसा होते हुए भी धर्मांध महिला उसमें भी खुश रहकर उन्हें अधिकार देनेवालों के विरोध में लडती है । समान नागरिकता कानून को एक धर्मांध महिला द्वारा विरोध करना, इससे उनकी कट्टरता दिखाई देती है !
नई देहली – समान नागरिकता कानून की मांग के नाम पर मुसलमान महिलाआें के मूलभूत अधिकारों के हनन का प्रयास किया जा रहा है, ऐसा दुष्प्रचार कर उसके विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की गई है । अलिना शेरवानी ने विवाहविच्छेद (तलाक) और भरणपोषण भत्ता के संदर्भ में ‘समान नागरिकता कानून मुसलमान महिलाआें को न्याय द़ेगा या नहीं ?’, ऐसी शंका इस याचिका में उपस्थित की है । विगत वर्ष दिसंबर में अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सभी धर्मियों के लिए विवाहविच्छेद (तलाक) और भरणपोषण भत्ते के समावेशवाला एक कानून बनाने की मांग इस याचिका में की थी । कुछ धर्मों में महिलाआें के संदर्भ में भेदभाव किया जाता है, उनकी उपेक्षा की जाती है, ऐसा उन्होंने इसमें कहा था । इस पृष्ठभूमि पर अलिना शेरवानी ने यह याचिका प्रविष्ट की है ।
शेरवानी ने याचिका में कहा है कि
१. मुसलमान महिला को ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ ने अधिकार दिए हैं । मुसलमानों का व्यक्तिगत कानून ऐसी महिलाआें के अधिकारों को अनुमति देता है ।
२. अधिवक्ता उपाध्याय की याचिका संविधान के अनुच्छेद २५ और २६ के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में बाधा निर्माण करती है । मुसलमानों की संस्कृति और रूढियों में जानबूझकर हस्तक्षेप करने का यह प्रयास है ।
३. मुसलमानों का व्यक्तिगत कानून मुसलमान महिला को पति से विवाहविच्छेद करने (तलाक लेने) के विविध पर्याय उपलब्ध कराता है । इनमें तलाक-ए-तफवीज, खुला, तलक-ए-मुबार्रह, फास्क और १३९ वां मुसलमान विवाह अधिनियम का समावेश है ।
४. मुसलमानों में विवाह एक करार है और उसमें वैवाहिक संबंध नियमित करने के लिए शर्त रखने की अनुमति है । ये शर्तें विवाह के पहले अथवा विवाह के समय, साथ ही विवाह के बाद भी जोडी जा सकती हैं ।
५. मेहर (विवाह के समय पति द्वारा पत्नी को दी जानेवाले राशि) पत्नी के सम्मान का प्रतीक माना गया है । इस्लामिक सिद्धांतों के अनुसार अल्प राशि देना गलत है । विवाहविच्छेद (तलाक) करते समय मेहर की राशि नहीं दी गई, तो पति की संपत्ति को नियंत्रण में लेने का अधिकार है । पति द्वारा मेहर की राशि देने से मना करने पर पत्नी को स्वतंत्रता से जीने का और इस अवधि में उसे पति द्वारा भरणपोषण भत्ता प्राप्त करने का भी अधिकार है । (२.४.२०२१)