चुल्हे की राख की ऑनलाईन बाजार में अधिक दाम से बिक्री !
खाद और बर्तन मांजने के लिए हो रहा है उपयोग !
पहेले एवं आज भी, अनेक गावों में खाद और बर्तन मांजने के लिए इसका उपयोग किया जाता है । अब शहेरों में भी बर्तनों के लिए इसका हो रहा उपयोग देखें, तो लोगों को भारतीय संस्कृति का महत्त्व ध्यान में आ रहा है, ऐसे कहेना पडेगा ! फिर भी, अधिक दाम से लोगों को इसकी बिक्री करना भूल है और इस बारे में प्रशासन ने ध्यान देना अपेक्षित है !
कपूरथला (पंजाब) – भारत के अनेक गावों में आज भी चुल्हे पर रसोई बनाई जाती है । उसके लिए लकडी और गोबर के उपलों का उपयोग किया जाता है । यह चूल्हे में जलने के बाद जो राख निर्मित होती है, वह ऑनलाईन बाजार में आजकल अधिक दाम से बिक्री की जा रही है । बडी- बडी कंपनियां भी यह राख, खाद एवं बर्तन मांजने के लिए खरीदतीं है । इस राख में पोटॅशियम, कॅल्शियम, फॉस्फोरस, ऐल्यूमिनीयम, मॅग्नेशियम, सोडियम, मायक्रो न्यूट्रेंट, कॉपर, सल्फर और जिंक, बडी मात्रा में है, ऐसा कहा जाता है ।
१. तामिलनाडु के ‘केआरवी नेचुलर एंड ऑर्गेनिक’, कर्णावती के ‘ओसकास ग्रुप’ और जोधपुर के ‘ग्रीनफील्ड ईको सॉल्युशन प्रायव्हेट लिमिटेड’ जैसी कंपनियां, २५० ग्राम से ९ किलो जैसी थेलीयों में यह राख बेच रही हैं । एवं उसपर छूट भी दे रहीं हैं ।
२. एक कम्पनी, २५० ग्राम राख १६० रुपयों में बेची जा रही है, तो एक अन्य कम्पनी उसे ३९९ रुपयों में बेचती है । अन्य एक कम्पनी ९ किलो राख के लिए ८५० रुपये ले रही है ।