राष्ट्र की ओर देखने का सर्वदलीय शासकों का अपूर्ण दृष्टिकोण एवं परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी का परिपूर्ण दृष्टिकोण !
वर्तमान सर्वदलीय शासक राष्ट्र को केवल स्थूल दृष्टि से एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं; अत:वे केवल राष्ट्र के भौतिक विकास, जनता के लिए आधुनिक सुविधाएं आदि के अनुसार ही विचार करते हैं । चराचर में स्थित प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व के पीछे स्थूल कारण सहित सूक्ष्म कारण भी होते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी राष्ट्र की ओर स्थूल दृष्टि के साथ-साथ सूक्ष्म दृष्टि से, अर्थात धर्म की दृष्टि से देखते हैं;क्योंकि धर्म राष्ट्र की आत्मा है । जब हम स्थूल दृष्टि सेे देखते हैं,तब मनुष्य अपनी आंखें, कान अदि के द्वारा कार्य करता है, ऐसा हमें दिखाई देता है; परंतु वास्तव में मनुष्य द्वारा कार्य होने हेतु अदृश्य शक्ति आत्मा ही कारण बनती है । जिस प्रकार मनुष्य की देह से आत्मा निकलने पर मनुष्य मृत हो जाता है, उसी प्रकार राष्ट्र-स्वरूप शरीर से धर्म-स्वरूप आत्मा के निकल जाने पर, राष्ट्र भी मृत हो जाता है । अब तक विघातक विदेशी और स्वदेशी शक्तियों के असंख्य आक्रमणों को सहने के उपरांत भी ईश्वर की कृपा, तीर्थस्थल, मंदिर, संतों के अस्तित्व आदि के कारण भारत ने अपना अस्तित्व बनाए रखा है ! भारत वर्तमान स्थिति से भी अधिक रसातल तक न पहुंचे,इस हेतु परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी सर्वत्र धर्मप्रसार होने हेतु और धर्माधिष्ठित राष्ट्र की स्थापना,अर्थात हिन्दू-राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रयासरत हैं । परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी कहते हैं,राष्ट्र के विकास एवं समृद्धि के लिए प्रयास करना अनुचित नहीं है; परंतु प्रयासों की दिशा धर्म के लिए अनुकूल ही होनी चाहिए । इससे अधर्मी शासकों का राष्ट्र की ओर देखने का अपूर्ण दृष्टिकोण, तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का परिपूर्ण दृष्टिकोण ध्यान में आता है । अधर्मी राज्यकर्ताआें द्वारा धर्माधिष्ठित राष्ट्र की स्थापना होना असंभव है; इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में हिन्दू राष्ट्र की (ईश्वरीय राज्य की)स्थापना हेतु संगठित होकर मनुष्यजन्म सार्थक करें !
-(पू.) श्री. संदीप आळशी (१३.७.२०१९)