साधको, धर्मप्रसार के कार्य में समर्पित भाव से सहभागी होकर संधिकालीन साधना का लाभ लें !
मकर संक्रांति के शुभमुहूर्त पर पुनश्च शुभारंभ ! मकरसंक्रांति के शुभ अवसर पर सर्व साधकों को नमस्कार !
मकर संक्रांति के शुभमुहूर्त पर (१४.१.२०२१ को) सनातन संस्था के प्रत्यक्ष समाज के धर्मप्रसार के कार्य का शुभारंभ हुआ । कोरोना के कारण गत १० माह से सनातन संस्था का धर्मप्रसार ‘ऑनलाइन’ माध्यम से चल रहा था । अब अनेक जिलों की स्थिति पूर्ववत हो रही है । इसलिए कोरोना के नियमों का पालन कर सनातन के साधक पहले की भांति समाज में जाकर धर्मप्रसार करनेवाले हैं ।
गत कुछ माह कोरोना महामारी के कारण बाह्यतः आपातकालीन परिस्थिति होते हुए भी यह काल साधकों के लिए अनुभूतियों का पर्व सिद्ध हुआ । कोरोना के कारण भावी भीषण आपातकाल की एक छोटीसी झलक अनुभव करने के लिए मिली । इससे साधना अधिकाधिक लगन से करने का भान साधकों को हुआ । ‘साधक सतत ‘सत्’ में रहें’, ऐसी जो सीख परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को दी है, उसे साधकों ने इस कठिन काल में आचरण में लाने का प्रयत्न किया । यातायात बंदी के काल में प्रत्यक्ष प्रसार करने में सीमा आने पर भी ऑनलाइन माध्यमों द्वारा समाज को ईश्वराभिमुख और धर्माभिमुख करने का कार्य अनवरत जारी था । घर बैठे अनेक साधकों ने आधुनिक माध्यम सीखकर लगन से सेवा की । इस काल में साधकों की व्यष्टि साधना के प्रयत्नों में वृद्धि हुई । कुल मिलाकर व्यष्टि और समष्टि साधना का संतुलन होने से साधकों के लिए यह काल कृतज्ञता काल सिद्ध हुआ !
गुरुकृपा से अब मकर संक्रांति के शुभमुहूर्त पर साधकों को कोरोना के सर्व नियमों का पालन कर पुन: प्रत्यक्ष धर्मप्रसार करने का सुवर्ण अवसर मिला है। वर्तमान काल आपातकाल समान है, तब भी भावी आपातकाल की तुलना में वह आपातकाल का संपतकाल समान है । यह संधिकाल साधना के लिए पूरक होने से इस काल में समर्पित भाव से समष्टि साधना करने से हम सभी को उसका आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत अधिक मात्रा में लाभ होनेवाला है । इसलिए सभी साधकों को ईश्वर द्वारा प्रदान किए इस सुवर्ण अवसर का लाभ लेना चाहिए !
कोरोना महामारी में लाखों लोगों की बलि चढ गई और करोडों लोगों पर भारी संकट आ गया; परंतु ईश्वर की कृपा से सभी साधक इस आपत्ति में भी तर गए । ईश्वर और गुरु ने साधकों पर की हुई इस अपार कृपा का ऋण चुकाना संभव नहीं; परंतु साधक इस नाते से कम से कम कृतज्ञता निश्चित रूप से व्यक्त कर सकते हैं । यह कृतज्ञता केवल शब्दों से व्यक्त होनेवाली नहीं, अपितु कृति से व्यक्त होनेवाली होनी चाहिए । अर्थात ईश्वर और गुरुदेव को कृति से अच्छी लगनेवाली कृतज्ञता है ‘धर्मप्रसार’ ! आज उन्हीं की कृपा के कारण देखने मिले ये दिन उन्हीं के श्रीचरणों में अर्पण करने का अवसर है ‘धर्मप्रसार’ ! धर्मप्रसार के इस नए सिरे से आरंभ होनेवाले कार्य में सहभागी होकर इस अमूल्य अवसर का लाभ लेकर गुरुकृपा के पात्र बनेंगे ! इसके लिए ‘आप सभी को बल मिले’, यह गुरुचरणों में प्रार्थना है !
– (श्रीसत्शक्ति) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१२.१.२०२१)