पादरियों की वासनांधता की बलि !

     पादरियों की वासनांधता से विश्‍व अपरिचित नहीं है । अनेक दशकों से अमेरिका और यूरोप में पादरी महिलाओं, छोटे बच्‍चों और ननों का लैंगिक शोषण कर रहे हैं, ऐसे समाचार सामने आ रहे हैं । इन प्रकरणों में ईसाईयों के सर्वोच्‍च धर्मगुरु पोप ने क्षमा भी मांगी है । भारत में जालंधर के पूर्व बिशप मुलक्‍कल के प्रकरण में उनके चर्च में रहनेवाली नन ने ही बताया था कि मुलक्‍कल ने मेरा अनेक बार लैंगिक शोषण किया है । इस आरोप के पश्‍चात उन्‍हें पुलिस ने बंदी बनाया । इस प्रकरण में चर्च संस्‍था ने नन का पक्ष न लेकर, मुलक्‍कल को ही सहायता पहुंचाने का प्रयत्न किया । इतना ही नहीं, पीडित नन की सहायता करनेवाली अन्‍य ननों को प्रताडित किया ।

     सिस्‍टर अभया हत्‍या प्रकरण में सिस्‍टर अभया ने सवेरे पादरी फूथराकयाल, पादरी थॉमस कोट्टूर और सिस्‍टर सेफी को आपत्तिजनक स्‍थिति में देखा, तो इन तीनों ने इसकी हत्‍या कर शव को कूएं में फेंक दिया, यह आरोप इन पर था । इस घटना से पता चलता है कि केवल पादरी नहीं, कुछ नन भी वासना में डूबकर अपने मूल उद्देश्‍य आध्‍यात्‍मिक साधना से विमुख होकर, सामन्‍य लोगों से भी निचले स्‍तर का आचरण करने लगी हैं ।

दोषियों को बचाने का प्रयत्न करनेवालों के विरुद्ध भी कार्यवाही होनी चाहिए !

     सिस्‍टर अभया की हत्‍या का पता चलने में २८ वर्ष लगना, बहुत गंभीर बात है । २७ मार्च १९९२ के सवेरे सिस्‍टर अभया जब होस्‍टल के रसोईघर में गईं, तब उन्‍होंने पादरी फूथराकयाल, थॉमस कोट्टूर और सिस्‍टर सेफी को आपत्तिजनक स्‍थिति में देखा  इसलिए इन तीनों ने उसे पकडकर उसके सिर पर प्रहार कर मूर्च्‍छित कर दिया और खींचते हुए ले जाकर होस्‍टल के परिसर में स्‍थित कुएं में फेंक दिया । प्रमाण नष्‍ट कर उसे आत्‍महत्‍या दिखाने का प्रयत्न किया । पश्‍चात जांच में स्‍थानीय पुलिस, अपराध शाखा और सीबीआई ने भी इस हत्‍या को आत्‍महत्‍या घोषित कर दिया । इसके पश्‍चात, वर्ष १९९३ में सीबीआई जांच में पता चला कि यह आत्‍महत्‍या नहीं है । इसके पश्‍चात, १५ वर्ष तक इस घटना की ओर ध्‍यान नहीं दिया गया । पश्‍चात, ६७ ननों ने न्‍यायालय में याचिका डालकर, इस घटना को हत्‍या मानकर जांच करने की प्रार्थना की और उसके अनुसार जांच पुनः आरंभ हुई । पश्‍चात, जांच में सामने आया कि यह आत्‍महत्‍या नहीं, हत्‍या है । तब, उपर्युक्‍त तीनों के विरुद्ध अभियोग पंजीकृत किया गया । इसमें भी, वर्ष २०१८ में पादरी फूथराकयाल को निर्दोष ठहराया गया और शेष दोनों को दोषी माना गया । पादरी ऐसे कृत्‍य कर सकते हैं, इस बात पर सामान्‍य व्‍यक्‍ति विश्‍वास ही नहीं करेगा । केवल राजनीतिक नेता, धनी लोग अपने अपराध छिपाने का प्रयत्न करते हैं और अनेक बार ये इस कार्य में सफल भी होते हैं, यह सामान्‍य व्‍यक्‍ति को दिखाई देता है । इस हत्‍या प्रकरण में भी लगभग ऐसा ही हुआ । परंतु, ईश्‍वर का विधान कुछ अलग ही था; इसलिए अंततः अभया के हत्‍यारों का पता चल गया । जांच सीबीआई के पास आने से पहले, प्रमाण को नष्‍ट करने का प्रयत्न किया गया था । जिस समय अभया की हत्‍या हुई, उस समय उसने जो कपडे पहने थे, वे नहीं मिले । शवविच्‍छेदन के आरंभिक प्रतिवेदन में मृत्‍यु का कारण डूबना बताया गया था । उसमें, उनके शरीर पर लगे घावों का उल्लेख नहीं था । इस प्रकरण में ३ साक्षियों ने बाद में अपने बयान बदल दिए थे । इससे पता चलता है कि यह घटना किसी चलचित्र की पटकथा समान थी । इस प्रकरण में यह आवश्‍यक था कि चर्च संस्‍था समाज के सामने पादरियों का सत्‍य स्‍वरूप लाती । इससे, चर्च संस्‍था के विषय में लोगों के मन में आदर बढा होता; परंतु अब लोग चर्च को संशय की दृष्‍टि से देखेंगे, ऐसा लग रहा है । जिन लोगों ने इतने वर्षों तक इस हत्‍या को आत्‍महत्‍या बताकर दबाने का काम किया, उनकी अब न्‍यायालयीन जांच होनी चाहिए, ऐसा जनता को लगता है ।

प्रचारमाध्‍यमों का मौन !

     २८ वर्ष के बाद इस घटना में पीडिता को न्‍याय मिला; किंतु प्रचारमाध्‍यमों ने इसे आवश्‍यक प्रसिद्धि नहीं दी, यह ध्‍यान देनेयोग्‍य है । परंतु हिन्‍दू संतों और साधुओं के विरुद्ध एक भी आरोप लगने पर, उसे बहुत प्रसिद्धि देनेवाले प्रचारमाध्‍यम, इस घटना में दोहरा मापदंड अपनाते दिखाई दिए । यह समाचार किसी भी राष्‍ट्रीय समाचार-पत्र में प्रमुखता से नहीं छपा । इस विषय में कोई चर्चासत्र आयोजित नहीं किया गया । यह घटना हिन्‍दुओं से संबंधित होती, तो सभी प्रचारमाध्‍यमों में इसपर लंबी चर्चाओं का आयोजन किया गया होता । विदेश में पादरियों के द्वारा होनेवाले लैंगिक शोषण पर भी भारतीय प्रचारमाध्‍यम मौन रहते हैं; मानो, ऐसी कोई घटना होती ही नहीं, ऐसी उनकी मानसिकता रहती है ।