केंद्र सरकार के प्राधिकरण ने सरकारी नियमावली से ‘हलाल’ शब्द हटाया !
हिंदुओं के विरोध का परिणाम !
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नई दिल्ली : केंद्र सरकार के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (A.E.D.D.A.) ने अपने “रेड मीट मैनुअल” से “हलाल” शब्द को हटा दिया है । इस शब्द को हटाकर दिशानिर्देश जारी किए गए हैं । अपेडा ने यह भी स्पष्ट कहा है कि, “रेड मीट मैनुअल” से “हलाल” शब्द को हटाने के लिए कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं है । अपेडा के अनुसार, कई देशों के आयात और निर्यात नियमों पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया गया है। इसके अलावा, इसे मांस निर्यातक देश की आवश्यकता के अनुसार बदला जा सकता है ।
एक प्रसिद्ध लेखक, हरिंदर सि. हसिक्का, जो लंबे समय से ‘हलाल’ शब्द को हटाने का प्रयास कर रहे थे, ने सोशल मीडिया के जरिए यह जानकारी साझा की है । उन्होंने इस शब्द को हटाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को धन्यवाद दिया । इस शब्द को हटाने से, भोजन बेचने या निर्यात करने के लिए ‘हलाल’ प्रमाणपत्र की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी । व्यापारी सभी प्रकार के वैध मांस को भी पंजीकृत कर सकते हैं ।
१. हरिंदर सिक्का ने कहा कि, यह बिना किसी भेदभाव के ‘एक देश, एक नियम’ के तहत लिया गया निर्णय है । यह हलाल मांस बेचने वाले रेस्तरां के लिए भी एक संदेश है ।
२. एपेडा ने अपने खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के मानक और गुणवत्ता प्रबंधन प्रलेखन में बदलाव किया है । पहले लिखा गया था, ‘जानवरों को हलाल तरीके से मारने के नियम का पालन किया जाना चाहिए, क्योंकि इस्लामिक देशों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है । अब इसे बदलकर ‘जहां मांस का निर्यात किया जाना है, उन देशों की आवश्यकताओं के अनुसार पशुओं के वध की पद्धति अपनायी जाए ।’ यह परिवर्तन इस दस्तावेज़ के पृष्ठ ८ पर किया गया है ।
३. पृष्ठ ३० पर पहले लिखा गया था कि, “इस्लामी संगठनों से प्रमाण पत्र लेकर इस्लामिक देशों की आवश्यकताओं के अनुसार प्राणी की हत्या संबंधी प्रमाण पत्र लेने का विचार किया जाना चाहिए । ‘अब इसे बदलकर’ जानवरों को आयात करने वाले देशों की जरूरतों के अनुसार प्राणी की हत्या की जानी चाहिए ।”
४. पृष्ठ ३५ पर यह पहले लिखा गया था कि, “जानवरों को पंजीकृत इस्लामिक संगठनों की देखरेख में शरियत के अनुसार हलाल प्रक्रिया की गई है और उनकी देखरेख में प्रमाणित किया जाता है ।” अब यह वाक्य निकाल दिया गया है ।
५. पृष्ठ ७१ पर, ‘जिलेटिन बोन चिप्स’, एक स्वस्थ भैंस को हलाल तरीके से मारकर बनाया गया है । इस शब्द को हटा दिया गया है । साथ ही हलाल शब्द को भी हटा कर वाक्य को ‘पोस्टमॉर्टम सत्यापन के बाद ही बनाया गया है’, इस प्रकार कर दिया है ।
६. पिछले कुछ महीनों से, देश में विभिन्न हिन्दू और सिख संगठनों द्वारा हलाल प्रमाणपत्रों का विरोध किया जा रहा था । इस विरोध के बाद, अपेडा को स्पष्टीकरण के साथ यह बदलाव करना पडा । एपीडा ने कहा कि, हलाल मांस के निर्यात को लेकर भारत सरकार की ओर से कोई दमनकारी नियम नहीं थे, लेकिन यह आयात करने वाले देशों के नियमों के अनुसार था ।
७. एपेडा का ‘रेड मीट मैनुअल’ मांस व्यापारियों के बीच धार्मिक भेदभाव का कारण बन रहा था । हलाल प्रक्रिया का पालन करने के नाम पर हिन्दू मांस व्यापारियों का शोषण किया जा रहा था । हलाल प्रमाण पत्र के नाम पर रोजगार में भी भेदभाव किया जाता था, क्योंकि, हलाल के अनुसार मुसलमानों को हत्या और मांस पर आगे की सभी प्रक्रियाओं को अंजाम देना आवश्यक था, जिससे हिन्दू बेरोजगार हो रहे थे ।
हलाल मांस क्या है ?
झटका प्रमाण प्राधिकरण के अध्यक्ष, रवि रंजन सिंह ने कहा कि, भारतीय धर्म जैसे कि, हिन्दू धर्म और सिख धर्म में जानवरों को ‘झटके’ के तरीके से मारा जाता है । इसमें जानवर की गर्दन को एक ही झटके में काट दिया जाता है । इससे जानवर को कम प्रमाण में कष्ट होता है । दूसरी ओर, हलाल विधि द्वारा जानवर की गर्दन की नस को काट दिया जाता है । इससे बडी मात्रा में रक्त प्रवाहित होता है और फिर तडप-तडप कर वह मर जाता है । जब इस जानवर की बलि दी जाती है, तब उसका चेहरा मक्का की ओर किया जाता है । साथ ही, यह काम गैर-मुसलमानों को नहीं दिया जाता है । आज, मैक डॉनल्ड्स और लुसियस जैसे प्रतिष्ठान, केवल हलाल मांस बेचते हैं ।
हिन्दुओं की बडी विजय ! – श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
‘एपेडा’द्वारा उसकी नियमावली से ‘हलाल’ शब्द हटाना हिन्दुओं की बडी विजय है । मुसलमान देशों में मांस का निर्यात किया जा रहा है, यह कारण बताकर मांस के लिए ‘हलाल प्रमाणपत्र’ अनिवार्य किया गया था; वास्तव में भारत से निर्यात होनेवाले मांस में से ४६ प्रतिशत अर्थात ६ लाख टन मांस गैर मुसलमान देश वियतनाम में निर्यात किया जाता है । वहां हलाल प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है; परंतु पिछली सरकारों की इस्लामवादी नीतियों के कारण वार्षिक २३ सहस्र ६४६ करोड रूपयों का यह मांस व्यापार हलाल अर्थव्यवस्था को बल दे रहा था । अब इस निर्णय के कारण हिन्दू खटिक समाज को भी उसका लाभ होनेवाला है । हलाल मांस प्रक्रिया में केवल मुसलमान ही काम कर सकते थे, इसलिए हिन्दू खटिक समाज पर बेरोजगारी का संकट आया था ।
अब बहुसंख्यक हिन्दुओं पर ‘हलाल’ मांस खाने की अनिवार्यता पर निर्णय होेना आवश्यक !
भारतीय पर्यटन विकास मंडल (आयटीडीसी), एयर इंडिया, रेलवे का आई.आर.सी.टी.सी. केटरिंग आदि सभी संस्थाएं केवल हलाल मांस उपलब्ध करवानेवालों को ही ठेका देती हैं । संसद में भोजनव्यवस्था रेलवे केटरिंग के पास है । वहां भी हलाल मांस ही दिया जाता है । हिन्दुओं को उनके धार्मिक आधार पर मांस खाने की भी स्वतंत्रता नहीं है । इसलिए सरकार को अब सरकारी संस्थाओं द्वारा भी केवल हलाल मांस देने का बंधन हटाने का प्रयत्न करना आवश्यक है ।