गुरुदेवजी की कृपा और संतों के मार्गदर्शन में रामनाथी, गोवा स्थित सनातन आश्रम में सनातन प्रभात के कार्यालय का नवीनीकरण होने के उपरांत वहां के चैतन्य में हुई आश्चर्यजनक वृद्धि !
‘किसी नियतकालिक अथवा समाचार-पत्र के कार्यालय के अंतर्गत वहां संपादक, उपसंपादक, कार्यवाहक संपादक, उपसंपादक, पृष्ठ संपादक, पृष्ठों की संरचना (फॉर्मेटिंग) करनेवाले संरचनाकार, संवाददाता आदि सभी आते हैं तथा अन्य नियतकालिकों के अंक, समाचार-पत्र, दूरदर्शन संच आदि आवश्यक सर्व साधनसामग्री होनी ही चाहिए । यहां अधिकांश नियतकालिकों का उद्देश्य व्यवसायिक होता है; परंतु ‘सनातन-संस्था’ में समाजप्रबोधन करने के लिए समाचार-पत्र प्रकाशित किया जा रहा है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी सनातन प्रभात नियतकालिकों के संस्थापक-संपादक हैं तथा उनका उद्देश्य ही अलग है । सनातन प्रभात के कार्यालय का फरवरी २०१९ में नवीनीकरण किया गया । यहां केवल नवीनीकरण नहीं किया गया है, अपितु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कृपाशीर्वाद से इस कार्यालय का रूपांतरण चैतन्यमय एवं पवित्र वास्तु में हो गया है । राष्ट्र और धर्म की रक्षा का ध्येय रखकर निःस्वार्थी वृत्ति से कार्य करने पर किसी नियतकालिक का कार्यालय भी कैसे सात्त्विक और चैतन्यमय बनता है, इसका वर्तमान काल में सनातन प्रभात कार्यालय एकमात्र उदाहरण होगा; इसीलिए इस नियतकालिक की चैतन्यमय वास्तु की स्थूल और सूक्ष्म रूप की विशेषताएं समझ लेना महत्त्वपूर्ण है ।
१. सनातन प्रभात के कार्यालय का नवीनीकरण
अधिक सात्त्विक करने के संबंध में एक संत द्वारा दी गई दिशा !
रामनाथी के आश्रम में सनातन प्रभात के मुख्य कार्यालय की पूर्वरचना कुछ अलग थी । यहां संपादकों की दैनिक कार्यालयीन बैठक के लिए स्वतंत्र कक्ष नहीं था तथा दूरदर्शन संच भी इस प्रकार रखा हुआ था कि वह सभी को दिखाई दे । यह दूरदर्शन संच दिनभर चलता रहता था । इसलिए उसकी ओर निरंतर सभी का ध्यान आकर्षित होता था तथा वह मूल सेवा से विचलित होता था; परंतु ‘दूरदूरदर्शन वाहिनी पर दिनभर में संपूर्ण देश में हो रहे घटनाक्रम और अन्य महत्त्वपूर्ण चर्चासत्र देखना संपादकीय विभाग में सेवा करनेवाले सभी की सेवा है’, ऐसी विचारप्रक्रिया कुछ लोगों के मन में दृढ हो गई थी । इसलिए जिनके लिए दूरदूरदर्शन देखना आवश्यक नहीं था, उनके द्वारा भी वह देखा जाता था । परिणामस्वरूप सनातन प्रभात के माध्यम से साधना न होकर केवल कार्य हो रहा था । उसके उपरांत कुछ मास पूर्व कार्यालय की वास्तु का नवीकरण करना निश्चित हुआ, उस समय कार्यालय की रचना सात्त्विक बनाने के संबंध में एक संत और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के मार्गदर्शनानुसार निर्माणकार्य सेवा के साधक और सनातन प्रभात की सेवा करनेवाले साधकों ने उसके अनुसार सेवा करने की योजना बनाई ।
२. संतों के मार्गदर्शनानुसार निर्माणकार्य
करने के पश्चात वास्तु में बढता गया चैतन्य !
वास्तु की रचना अधिक सात्त्विक और चैतन्यमय बनने के लिए संतों के मार्गदर्शनानुसार कार्यालय की वास्तु की पूर्व रचना में कुछ परिवर्तन करना निश्चित किया गया । उसमें स्वतंत्र बैठककक्ष बनाना, अर्थात उसमें से आवाज बाहर न निकले अथवा बाहर की आवाज का भी बैठक कक्ष में कोई कष्ट नहीं हो तथा दूरचित्रवाणी पर समाचार देखने के लिए भी स्वतंत्र कक्ष बनाना जिससे केवल समाचारों से संबंधित सेवा करनेवाले साधक ही बैठ पाएं, सनातन प्रभात की विशेषताएं बतानेवाला स्वतंत्र प्रदर्शनी कक्ष बनाना आदि विशिष्ट रचना करने के संबंध में संतों ने सुझाया । उसी प्रकार दीवारें, द्वार, खिडकियों पर सफेद रंग लगाने के संबंध में तथा सेवा के लिए आवश्यक सर्व सामग्री अर्थात संगणक के पटल, अलमारियां आदि सफेद रंग की बनाने के संबंध में भी संतों ने सुझाया ।
संतों के सुझाए अनुसार भावपूर्ण और परिपूर्ण सेवा होने के लिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा निर्माणकार्य और सनातन प्रभात की सेवा करनेवाले संबंधित साधकों को निरंतर अमूल्य मार्गदर्शन मिल रहा था । सनातन प्रभात नियतकालिकों के भूतपूर्व समूह संपादक पू. पृथ्वीराज हजारेजी भी वहां की रचना सात्त्विक बनाने के लिए समय समय पर मार्गदर्शक सूचनाएं दे रहे थे । नवीनीकरण की यह सेवा चल रही थी, तब संत भी समय समय पर आकर रचना सात्त्विक बनने हेतु मार्गदर्शन कर रहे थे तथा वास्तु में बढते जा रहे चैतन्य का अनुभव करने के संबंध में भी साधकों को बता रहे थे । वास्तु में बढते जा रहे चैतन्य के संबंध में वे संत बोले, ‘‘साधारणतः किसी वास्तु में सामग्री की संख्या जैसे जैसे बढती जाती है, वैसे वैसे वहां का चैतन्य न्यून होता जाता है; परंतु सनातन प्रभात की वास्तु का नवीनीकरण करते समय जैसे जैसे सामग्री अर्थात संगणक पटल, अलमारियां, विद्युत उपकरण आदि की संख्या बढ रही है, वैसे-वैसे चैतन्य भी अधिक बढ रहा है ।’’ इस समय वहां सेवा करनेवाले साधकों को भी यह चैतन्य वहां भूमि से प्रक्षेपित हो रहा है तथा देह में सर्वत्र फैल रहा है, ऐसी अनुभूति गुरुदेवजी की कृपा से हो रही थी ।
३. नवीनीकरण के उपरांत वास्तु में ध्यानमंदिर के समान
चैतन्य उत्पन्न होने संबंधी एक संत द्वारा बताना तथा वैसी अनुभूति होना
‘४.२.२०१९ को सनातन प्रभात के कार्यालय का नवीनीकरण पूर्ण होने के उपरांत एक संत द्वारा उसका अवलोकन किया गया तथा उसी समय वे आश्रम के ध्यानमंदिर में भी नमस्कार करने पहुंचे, तब उनके ध्यान में आया कि ध्यानमंदिर में जितना चैतन्य है, उतना ही चैतन्य सनातन प्रभात की वास्तु में भी निर्माण हो गया है । उन्होंने संबंधित सर्व साधकों को भी उस बारे में बताकर उस चैतन्य का अनुभव लेने हेतु कहा । वास्तव में देखा जाए, तो वास्तु में चैतन्य निर्माण होना गुरुदेवजी की ही कृपा थी। दूसरे दिन अर्थात ५.२.२०१९ को नवीनीकृत वास्तु में दोपहर को सनातन पुरोहित पाठशाला के पुरोहितों ने ‘उदकशांति’ विधि की । उसके पश्चात वहां साधकों ने सनातन प्रभात की सेवा प्रारंभ की, तब अनेक साधकों को चैतन्य के स्तर की अनुभूतियां हो रही थीं। आश्रम के तथा आश्रम में कुछ अवधि के लिए आए हुए संत, साधकों को भी वास्तु में आने पर निम्नानुसार अनुभूतियां हुईं।
अ. एक संत द्वारा बताए अनुसार प्रत्यक्ष में भी कुछ साधकों को सनातन प्रभात की वास्तु में ध्यानमंदिर के समान चैतन्य प्रतीत हुआ ।
आ. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने जिस समय सनातन प्रभात कार्यालय की संपूर्ण वास्तु देखी, उस समय उन्होंने बताया कि इस वास्तु में शांति की अनुभूति हो रही है । नवीनीकरण से पूर्व वास्तु में जहां दूरदर्शन संच था, नवीनीकरण के उपरांत वहां भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा रखी गई थी । भगवान श्रीकृष्ण की यह प्रतिमा देखने के पश्चात श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने कहा, ‘‘पहले यहां से टीवी की आवाज आती थी, अब यहां से आपको सूक्ष्म से भगवान श्रीकृष्ण की आवाज सुनाई देगी ।’’ इससे उन्होंने एक प्रकार से इंगित किया था कि यदि साधक भावपूर्ण सेवा करें, तो उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के सूक्ष्म अस्तित्व की अनुभूति हो सकती है ।
इ. मंगळूरु के सनातन आश्रम से आए हुए संत पू. विनायक कर्वेजी सनातन प्रभात का कार्यालय देख रहे थे, तब उनका भाव जागृत हो गया तथा उनकी आंखों से भावाश्रु आ रहेथे । कुछ क्षण वे इसी भावावस्था में थे । ‘वास्तु के चैतन्य और सात्त्विक रचना के कारण गुरुदेवजी के प्रति उनका कृतज्ञभाव जागृत हो गया था’, ऐसा प्रतीत हुआ ।
– श्री. भूषण केरकर, सहसंपादक, सनातन प्रभात नियतकालिक समूह. (७.४.२०१९)