अमोल चीज जो दी गुरु ने । न दे सके भगवान भी ॥

अमोल चीज (टिप्‍पणी १) जो दी गुरु ने ।

न दे सके भगवान भी ॥

सुख और शांति, जिन चरणों में (टिप्‍पणी २) ।

उसकी हरदम याद दी ॥ १ ॥

दिन और रातें, कैसी बीते ।

उसकी फिक्र मुझे न दी ।

धन (टिप्‍पणी ३) जो दिया अमोल मुझको ।

खाया खुटे वो न भी । (टिप्‍पणी ४)

गृहस्‍थी की जो सारी फिक्रे ।

श्री गुरु चरणों में ली । ॥ ४ ॥

दिनादास को साईकृपा से ।

सेवा करने छूट दी (टिप्‍पणी ५) ॥ ५ ॥

टिप्‍पणी १ – अमोल चीज : नाम

टिप्‍पणी २ – चरणों में : नाम में

टिप्‍पणी ३ – धन : नाम

टिप्‍पणी ४ – खाया खुटे वो न भी : नाम रूपी धन कितना भी खाया, अर्थात कितना भी नामस्‍मरण किया, तो भी वह कम नहीं होता ।

टिप्‍पणी ५ – सेवा करने छूट दी : गृहस्‍थी की जिम्‍मेदारी श्री गुरु के निभाने से गुरुसेवा करने के लिए समय मिला ।

प.पू. भक्‍तराज महाराजजी की सीख

१. एक ही संकल्‍प करें कि विकल्‍प मन में न लाएं !

२. देह, मन और बुद्धि के द्वारा प्रारब्‍ध भोगते समय नामस्‍मरण और साधना करें ।

३. अध्‍यात्‍म में दूसरों के भले का विचार कीजिए ।

४. उन्‍नत पुरुषों का कहना सुनना, एक साधना ही है, उदा. प.पू. धांडे शास्‍त्रीजी ने प.पू. बाबा को केले का छिलका खाने को दिया एवं स्‍वयं केला खाया ।

५. संतों समान सहजता से आचरण करना आना चाहिए ।