साधकों, सामने खडे घोर आपातकाल को देखते हुए सामाजिक माध्यमों जैसे साधनों का अनावश्यक प्रयोग कर समय व्यर्थ न गंवाएं !
‘आजकल मनुष्य ‘वॉट्स एप’, ‘फेसबुक’, ‘ट्विटर’, ‘टेलीग्राम’, ‘इंस्टाग्राम’ इत्यादि सामाजिक माध्यमों कागुलाम होता जा रहा है और इसके द्वारा वह अपने जीवन का अमूल्य समय अनावश्यक और अर्थहीन बातें देखने में खर्च कर रहा है ।
१. ‘वॉट्स एप’ के संदेश निरंतर देखने से होनेवाले दुष्परिणाम
१ अ. अलग-अलग समूह बनाना : ‘वॉट्स एप’ पर सामान्य रूप से निम्नांकित संबंधित लोगों के समूह बनाए जाते हैं –
१. परिवारजनों का समूह (मायके के लोग, ससुराल के लोग, भाई-बहन इत्यादि)
२. विद्यालय के मित्र-सहेलियों का समूह
३. कॉलेज के मित्र-सहेलियों का अलग समूह
४. कार्यालय के मित्र-सहेलियों का एक और समूह
५. सहयोगियों का एक समूह
६. गृहनिर्माण संकुल के सदस्यों का एक समूह
७. पर्यटन के लिए कहीं जाने पर वहां जिनके साथ मित्रता हुई, उनका एक समूह
८. रुचि के विषय से संबंधित लोगों का, उदा. डॉक्टर, विविध विषयों के कलाकार, विक्रेता, एक गांव के, ऐसे लोगों का समूह इत्यादि ।
इस प्रकार के अनेक समूह बनाए जाते हैं । ऐसे प्रत्येक समूह में अनुमानतः १० से १०० अथवा उससे अधिक लोगों का सहभाग होता है ।
प्रत्येक समूह में सम्मिलित कोई न कोई संदेश भेजता ही रहता है । संदेश देखनेवाला भी इससे अभ्यागत हुआ होता है । वह भी थोडे-थोडे समय से कोई संदेश आया है क्या, यह देखता रहता है ।
१ आ. समूहों में निरंतर कार्यरत होना : अनेक लोग समय निकालने के लिए इन समूहों में ‘सुप्रभात’, ‘शुभ रात्रि’, ‘शुभ सोमवार’.., ‘चतुर्थी अथवा एकादशी की शुभकामनाएं’, ‘विविध प्रकार के सुवचन’, ‘विविध विषयों पर आधारित व्यंग’, ‘कविताएं’, ‘भाषण, ‘अनेक विषयों के चलचित्र’, ‘विविध कार्यक्रमों के छायाचित्र’ इत्यादि पूरे दिन भेजते रहते हैं । ‘नए-पुराने गीत’ और ‘अनेक प्रकार के अच्छे-बुरे चित्र’ आदि का आदान-प्रदान निरंतर चलता रहता है । आजकल का एक और बडा फैशन है ‘स्वयं का स्वयं के द्वारा खींचा हुआ छायाचित्र (सेल्फी)’ निरंतर सामाजिक माध्यमों पर ‘पोस्ट’ करते रहना’ । (‘इस प्रकार के छायाचित्रों के कारण अनेक लडकियों के छायाचित्रों का लाभ उठाकर, साथ ही उनसे मित्रता बढाकर उनके साथ धोखाधडी करने की अनेक घटनाएं होने के समाचार प्रतिदिन समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो रहे हैं ।’ – संकलनकर्ता)
१ इ. समूह में बढ-चढकर सहभागी होने की स्पर्धा : अनेक स्थानों पर ‘मेरा संदेश शीघ्रातिशीघ्र आगे जाना चाहिए’, इसकी स्पर्धा लगी रहती है । कुछ लोग निरंतर ‘ऑनलाइन’ होते हैं । आपने कोई संदेश भेजा, तो तुरंत ही आपका संदेश सामनेवाले व्यक्ति द्वारा देखे जाने का नीले रंग का संकेत दिखाई देता है, मानो वे आपके संदेश की प्रतीक्षा ही कर रहे हों ।
२. सामाजिक माध्यमों का अनावश्यक उपयोग, यह एक भयावह व्यसन ही है !
जिस प्रकार मदिरा अथवा अन्य व्यसन होते हैं, उसी प्रकार यह भी एक व्यसन है । छोटे बच्चे, साथ ही वयस्क भी इस व्यसन के अधीन हो रहे हैं । इसके कारण परिवार के एक-दूसरे के साथ संवाद बंद हो रहा है इसके कारण पति-पत्नी में झगडे हो रहे हैं और कहीं विवाह विच्छेद भी हो रहे हैं । इस व्यसन ने इतना भयानक रूप धारण किया है ।
इसमें सर्वत्र का मानव संसाधन व्यर्थ जा रहा है । उसके साथ समाज का अधःपतन भी हो रहा है । इस मायाजाल में फंसकर समाज को ‘जो नहीं चाहिए’ उसे देखने की इच्छा हो रही है ।
‘द्रष्टा दृश्यवशात् बद्ध: ।’ वचन के अनुसार हाथ में आए चल-दूरभाष का उपयोग लाभदायक होने की अपेक्षा हानिकारक सिद्ध हो रहा है ।
३. सामाजिक प्रसारमाध्यमों के अनावश्यक उपयोग के कारण मनुष्य पर हो रहे गंभीर परिणाम
अ. निरंतर चल-दूरभाष का उपयोग करने से मनुष्य में सिरदर्द, गर्दन और आंखों की बीमारियां और अन्य प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियां हो रही हैं ।
आ. मनुष्य अकेला होता जा रहा है ।
इ. घर में बच्चों और अन्य सदस्यों में निरंतर चल-दूरभाष का उपयोग करने से झगडे हो रहे हैं, साथ ही अभिभावक और बच्चों में दूरी उत्पन्न हो रही है ।
ई. समाचार-पत्रों में अभिभावकों ने चल-दूरभाष खरीदकर न देने से बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के समाचार भी प्रकाशित हुए हैं ।
उ. पति अथवा पत्नी के लंबे समय तक चल-दूरभाष पर होने के कारण उनका विवाद विवाह-विच्छेद तक जा पहुंचा है ।
ऊ. प्रसारमाध्यमों के निरंतर उपयोग से मनुष्य सभी ओर से घिरता जा रहा है और उससे उसकी कार्यक्षमता ही समाप्त हो रही है ।
३. साधकों को ध्यान में रखने योग्य आवश्यक सूत्र
३ अ. साधकों ‘प्रसारमाध्यमों पर बने समूहों में सम्मिलित सहयोगियों के लिए समय देना’ आवश्यक नहीं है !
१. साधक स्थूल से माया को त्यागकर साधना करते हैं; परंतु कुछ साधक मन से ऐसे समूहों में लिप्त होते दिखाई देते हैं । यहां भी ‘स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म श्रेष्ठ’ की बात ध्यान में रखनी होगी । ‘व्यंग्य, मनोरंजन, अनावश्यक लेखन, समाचार आदि पढना और देखना’ हमारे मन पर इन बातों का एक नया संस्कार हो रहा है । हम नए विचार उत्पन्न करते हैं, जिसके कारण हमारी साधना का बहुत समय व्यर्थ जाता है ।
२. ऐसे समूहों में ‘किसी का जन्मदिन होता है, तो किसी को नौकरी मिलती है, किसी को पदोन्नति मिलती है, तो किसी को पुरस्कार !’ इन माध्यमों पर इस संदर्भ में ‘पोस्ट’ होती हैं । उस समूह में होने से ‘उसे देखना और उसका प्रत्युत्तर करना’, इसमें हमारा बहुत समय व्यर्थ जाता है ! इसमें ‘कोई बीमार होता है, तो किसी का निधन होता है’, यह ज्ञात होने पर हमें उन्हें प्रत्युत्तर देना पडता है ।
३. ‘हम उस समूह में हैं’, यह देखने पर सम्मिलित अन्य लोगों के मन में कुछ न कुछ अपेक्षाएं उत्पन्न होती हैं । ‘ये अपेक्षाएं पूर्ण करना’ संभव होता ही हो’, ऐसा नहीं होता । इससे हमें कष्ट हो सकता है ।
‘साधना करते समय यह कितना आवश्यक है’ इसका प्रत्येक साधक को अध्ययन करना चाहिए व हमारा उपलब्ध समय सार्थक होना चाहिए
३ आ. रात के समय चल-दूरभाष पर आनेवाले संदेश पढने से साधकों पर होनेवाले परिणाम
१. अनेक बार रात के समय इन संदेशों को देखने में कुछ साधकों का आधे से एक घंटा, तो कुछ लोगों का उससे भी अधिक समय व्यर्थ होता है ।
२. रात में संदेश देखने से सोने तक उन्हीं विचारों में रहना होता है, तो कभी-कभी कुछ संदेशों के कारण मन पर तनाव आता है ।
३ इ. साधना के लिए अनावश्यक संदेश, चलचित्र (‘वीडियोज’) इत्यादि देखने में समय व्यर्थ होने से और उसके उपरांत आनेवाले विचारों के कारण हम पर अनिष्ट शक्तियों का आवरण आता है । इस स्थिति में सोने से पूरी रात अनिष्ट शक्तियों का कष्ट बढता है और सवेरे जागने से लेकर पूरे दिन की सेवाआें पर उसका परिणाम होता है ।’
– (सद़्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, पनवेल.(१९.४.२०२०)