परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
माया के विषय लोग शीघ्र भूल जाते हैं । इसलिए पहला और दूसरा विश्वयुद्ध ही नहीं, नोबल पुरस्कार प्राप्त करनेवाले शास्त्रों के नाम भी २५ से ५० वर्ष तक लोगों के स्मरण में नहीं रहते । इसके विपरीत, अध्यात्म का इतिहास और उसके ग्रंथ युगों-युगों तक मनुष्य के स्मरण में रहते हैं; क्योंकि वे मानव का मार्गदर्शन करते हैं !’