स्वयं को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहलानेवाले ही सर्वाधिक ‘धर्मांध’ होते हैं ! – संजय राऊत, सांसद, शिवसेना

संजय राऊत

मुंबई – हमारे देश में जो लोग स्वयं को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहते हैं, वे ही सर्वाधिक ‘धर्मांध’ होते हैं । शिवसेना के सांसद संजय राऊत ने यह मत व्यक्त किया । कुणाल पॉडकास्ट के दूसरे पर्व के पहले भाग में शिवसेना नेता तथा सांसद संजय राऊत सहभागी थे । इस कार्यक्रम में उन्होंने अनेक प्रश्नों के उत्तर में उक्त वक्तव्य दिया ।

संजय राऊत ने आगे कहा, कि

१. भारत में कोई भी धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) नहीं है । कोई धर्मनिरपेक्ष हो भी नहीं सकता । धर्मनिरपेक्षता एक प्रकार की गाली है । राजनीति में उसका अनुचित पद्धति से उपयोग किया गया है ।

२. ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द के कारण देश में हिन्दू-मुसलमान के रूप में सीधे-सीधे विभाजन हुआ । केवल हिन्दुओं को गालियां देने से आपको अधिक धर्मनिरपेक्ष बताया जाता है, जो अनुचित है ।

३. हमारा देश संविधान के आधार पर चलनेवाला है । सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए । देश में पहले से ही राजनीति के लिए मुसलमान धर्म का आधार लिया जाता है, जिसका हम विरोध करते हैं ।

४. मुसलमानों द्वारा हाथ में लेकर और हिन्दुओं का भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ लेना, उस समय शिवसेना प्रमुख बाळासाहेब ठाकरे ने बंद करने के लिए कहा था । उस समय उन्होंने ‘संविधान पर हाथ रखकर शपथ लेने कहने’, को कहा था । यह हमारी विचारधारा है और वही आगे भी रहेगी ।

५. मुसलमान इस देश के नागरिक हैं; परंतु कुछ राजनीतिक दल मतों की राजनीति करते हैं । उसके कारण देश की और उनकी भी हानि होती है । जिस दिन मतों की राजनीति बंद होगी, उसी दिन से देश आगे बढेगा’, ऐसा शिवसेनाप्रमुख बाळासाहेब ठाकरे ने कहा था । ‘केवल एक चुनाव के लिए मुसलमानों का मताधिकार हटा दीजिए’, ऐसा उन्होंने कहा था । इसका अर्थ था ‘जो मतों की राजनीति करते हैं, वे उससे भाग जाएंगे’ !