तीव्र शारीरिक कष्ट से पीडित होते हुए भी अंतिम श्वास तक गुरुकार्य की तीव्र लगन रखनेवाले ६७ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के मथुरा के स्व. विनय वर्मा !
१. बोध हुए गुण और विशेषताएं
१ अ. प्रेमभाव
विनय भैया जब आश्रम में थे, तब उन्होंने सभी साधकों से निकटता बना ली थी । साधकों की चर्चा में कभी भी विनय भैया का विषय हो, तो साधक उनके स्मरण से आनंदित होते थे ।
१ आ. स्वीकारने की वृत्ति
१. भैया को तीव्र शारीरिक कष्ट होते समय तथा अत्यधिक वेदना होते हुए भी वे कभी उस संबंध में नहीं बताते थे । उनकी आवाज से भी कभी यह प्रतीत नहीं होता था कि वे इतने बीमार हैं ।
२. भैया से सेवा में कभी चूक होने पर वे संबंधित साधकों से तुरंत क्षमा मांगते थे और चूक होने के पीछे का स्वभावदोष और उनकी विचारप्रक्रिया वे वॉट्सएप कर बताते थे ।
३. भैया को सेवा की तीव्र लगन थी; परंतु कभी यह प्रतीत नहीं हुआ कि, वे सेवा में अटके हैं । कभी बिजली न हो, इंटरनेट उपलब्ध न होने पर वे अभ्यासवर्ग में उपस्थित नहीं रह पाते थे अथवा सेवा नहीं कर पाते थे; परंतु वे दुःखी हुए हैं, ऐसा कभी प्रतीत नहीं हुआ । वे उस स्थिति को स्वीकारकर उस ओर साक्षीभाव से देखते थे, ऐसा लगा ।
१ इ. सेवा की तीव्र लगन
१ इ १. आज का दिन जीवन का अंतिम दिन है, इस भाव से सेवा करना : मुझे जनवरी २०२० से विनय भैया के साथ सेवा करने का अवसर मिला । वे निरंतर सेवारत रहते थे । वे सेवा परिपूर्ण और भावपूर्ण करने का प्रयत्न करते थे । एक बार मैंने उनसे पूछा, भैया, आप सेवा करते समय क्या भाव रखते हैं ? उस समय उन्होंने बताया, आज का दिन मेरा अंतिम दिन है, ऐसा भाव रखता हूं । इसलिए सेवा अपनेआप भावपूर्ण और परिपूर्ण करने के लिए प्रयत्न होते हैं ।
१ इ २. सेवा पूर्ण करेंगे, ऐसा विश्वास निर्माण होना : उन्हें कभी भी कोई सेवा भेजने पर वे तुरंत वह सेवा करते थे । इसलिए उनके प्रति विश्वास निर्माण हो गया था कि विनय भैया दी गई सेवा निश्चित ही दायित्व लेकर पूर्ण करेंगे ।
१ इ ३. कुछ हिन्दी धारिकाआें का अंतिम वाचन करना हो, तो वे अपनी माताजी को भी सेवा में सम्मिलित कर लेते थे ।
१ इ ४. सेवा में अडचनें आने पर रात्रि में जागकर सेवा पूर्ण करना : कभी कभी सेवा में अडचने आती थी, तब सेवा समय सीमा में पूर्ण न होने पर वे रात्रि में जागकर सेवा पूर्ण करते थे । उन्हें तीव्र शारीरिक कष्ट होने के कारण शीघ्र सोना आवश्यक था । तब उन्हें शीघ्र सोने के लिए कहना पडता था; परंतु उन्हें सेवा पूर्ण करने की लगन होती थी ।
२. विनय भैया ने विशेष पद्धति ने सेवा का ब्यौरा देने से हुए लाभ
२ अ. जालस्थल पर वार्ता अपलोड करने की नई सेवा देकर भी उनके लिए अलग समय न देना पडना : कोरोना विषाणु के प्रादुर्भाव के कारण संचार बंदी लागू होने पर दैनिक सनातन प्रभात के नियमित समाचार जालस्थल पर अपलोड करने की नई सेवा प्रारंभ हुई । प्रारंभ में मैंने यह सेवा भैया को हस्तांतरित की थी, तब उस सेवा की व्याप्ति अधिक होने के कारण प्रतिदिन मुझे इसके लिए थोडा समय देना पडेगा, ऐसा मुझे लगा था; परंतु भैया से प्रत्येक चरण का सेवा का ब्यौरा मिलने के कारण मुझ उसके लिए अलग समय नहीं देना पडा ।
२ आ. विशिष्ट पद्धति से ब्यौरा देने से सेवा समय सीमा में पूर्ण होना : भैया के ब्यौरा देने की विशेष पद्धति के प्रयत्नों के कारण हमें उस सेवा में अधिक अच्छा क्या कर सकते हैं ?, यह विचार करने का समय मिलता था तथा सेवा प्रलंबित न रहकर उचित समयसीमा में पूर्ण होती थी ।
२ इ. विनय वर्मा द्वारा लिए गए व्यष्टि साधना के ब्यौरे कारण दिशा मिलकर प्रयत्नों की गंभीरता बढना : वे कुछ दिनों तक हमारा व्यष्टि साधना का ब्यौरा लेते थे । उनके द्वारा लिए गए ब्यौरे के कारण मुझ प्रयत्नों की दिशा मिलती थी । वे हमें हमारी चूकें तत्त्वनिष्ठता से बताते थे और व्यष्टि साधना के प्रयत्न होने के लिए हममें गंभीरता निर्माण होने के लिए मार्गदर्शन करते थे ।
मैं जब घर में रहती थी, तब मेरे व्यष्टि साधना के प्रयत्न अल्प मात्रा में होते थे । उस समय घर में व्यष्टि साधना कैसे कर सकते हैं, दिन भर नामजप होने के लिए कैसे प्रयत्न करने चाहिए, सत्र, उपाय और छोटे भावप्रयोग कैसे कर सकते हैं, इस संबंध में भैया ने मुझे बताया था । अब मैं जब भी घर जाती हूं, तब प्रथम ध्येय रखकर क्या प्रयत्न करने चाहिए ?, इस संबंध में चिंतन होकर कुछ मात्रा में मेरे प्रयत्न होने लगे हैं ।
३. विनय वर्माजी के निधन से एक दिन पूर्व भान हुए सूत्र और उनकी मृत्यु के संबंध में मिली हुई पूर्वसूचना
३ अ. शारीरिक स्थिति नाजुक होते हुए भी सेवा करना : भैया जालस्थल पर नियमित रूप से समाचार अपलोड करते थे और उससे संबंधित समन्वय देखते थे । समाचार भेजनेवाले साधकों ने सदैव की भांति भैया को समाचार भेजे । उस समय भैया की शारीरिक स्थिति अत्यंत नाजुक थी, तब भी उन्होंने वे समाचार तुरंत मेरे भ्रमणभाष पर भेजे और उस संबंध में मुझे सूचित किया । तत्पश्चात मुझे वॉट्सएप पर सूचित किया कि मैं चिकित्सालय में हूं । तब उनका रक्तचाप ८०/६० तक कम हो गया था । (सामान्य व्यक्ति का रक्तचाप १२०/८० होता है ।)
३ आ. विनय भैया की मृत्यु होगी, ऐसा विचार आना : मैंने उन्हें भ्रमणभाष किया, तब उनकी आवाज से उनकी शारीरिक स्थिति इतनी गंभीर है, ऐसा मुझे नहीं लगा; परंतु मेरे मन में विचार आया कि, विनय भैया चले जाएंगे । वे बता रहे थे, आधुनिक चिकित्सक मुझे शाम तक चिकित्सालय से छोडनेवाले हैं । तब तक मैं यहां जो सेवा कर सकता हूं, ऐसी सेवा हो तो मुझे बताइए ।
३ इ. अनुभूति
३ इ १. विनय भैया का निधन होने की सूचना मिलने पर रात को मुझे दिखाई दिया कि वे प्रकाशरूपी एक गोला बनकर परात्पर गुरुदेवजी के हृदय में समा गए हैं ।
३ इ २. रात को सोते समय हृदय में परात्पर गुरु डॉक्टरजी अस्तित्व अनुभव कर रही थी, तब विनय भैया के गले में फूलों का हार दिखाई देना : २१.७.२०२० को रात को सोते समय मैं मेरे हृदय में परात्पर गुरु डॉक्टरजी के अस्तित्व का अनुभव कर रही थी, तब वे बोले, यहां देखो कौन है । मुझे लगा कि प.पू. बाबा होंेगे । तब वे बोलेे, वे तो हैं ही और कौन है देखो ।
उस समय मुझे श्रीविष्णु दिखाई दिए और उनके पास विनय भैया विष्णु के समान वेष में दिखाई दिए । उनके गले में फूलों का हार था । कोई व्यक्ति संतपद पर विराजमान होने पर सत्कार करते हैं, वैसा ही उनका सत्कार हुआ था । इसलिए श्रीविष्णु और विनयदादा के मुखमंडल का हास्य और आनंद अलग ही था । उस समय मुझे लगा कि विनय भैया का स्तर बढकर वे संतपद पर विराजमान तो नहीं हो गए हैं ?
४. प्रार्थना
परात्पर गुरुदेव, विनय भैया के समान मैं भी लगनपूर्वक सेवा कर पाऊं, यह आपके कोमल चरणों में प्रार्थना है ।
– कु. वर्षा जबडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.