जमशेदपुर (झारखंड) के महर्लोक से पृथ्वी पर जन्मे कु. बी. चैतन्य (आयु ६ वर्ष) का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित !
हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी ने ऑनलाइन सत्संग में दिया शुभसमाचार !
जमशेदपुर (झारखंड) – यहां संपन्न एक ऑनलाइन सत्संग में हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळजी ने कु. चैतन्य की विविध गुणविशेषताएं बताते हुए उसके महर्लोक से पृथ्वी पर जन्म लेने और उसका आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत होने की घोषणा की । यह शुभसमाचार सुनते ही इस सत्संग में जुडे साधकों का भाव जागृत हुआ ।
इस सत्संग में चैतन्य के पिता श्री. बी.वी. कृष्णा, माता श्रीमती बी. अश्विनी, दादाजी श्री. गोपालराव और दादी श्रीमती विजया उपस्थित थे । सभी ने यह शुभसमाचार मिलने पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त की । इस अवसर पर साधिका कु. मधुलिका शर्मा ने भी चैतन्य के दैवी गुणों का वर्णन किया ।
कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कु. चैतन्य ने ‘अब मैं उत्तीर्ण हुआ’ बोलकर आनंद व्यक्त किया । इस अवसर पर चैतन्य की माता श्रीमती अश्विनी ने चैतन्य को मिठाई खिलाई ।
कु. बी. चैतन्य के परिवार और साधिकाआें को प्रतीत उसकी गुणविशेषताएं !
१. गर्भधारण होने के उपरांत
१ अ. गर्भावस्था के समय पू. होनपजी द्वारा गर्भ में चैतन्य होने की बात बताकर उसके लिए नामजप करने तथा संत भक्तराज महाराजजी के भजन सुनने के लिए कहना : ‘जब मैं गर्भवती थी, तब पू. पद्माकर होनपजी जमशेदपुर आए थे । उन्होंने मुझे नामजप करने और भजन सुनने के लिए कहा । भजन सुनने और नामजप करने के कारण मेरा मन प्रसन्न रहता था । ‘उसके कारण गर्भ भी प्रसन्न हो रहा है’, ऐसा मुझे प्रतीत होता था । पू. होनपजी ने शिशु के जन्म के पूर्व मुझे बताया था, ‘‘गर्भ में चैतन्य है; आप उसके लिए नामजप करें ।’’ (शिशु के जन्म के उपरांत हमने शिशु का नाम ‘चैतन्य’ रखा ।)
२. जन्म से १ वर्षतक
२ अ. सात्त्विकता की ओर झुकाव
१. चैतन्य के जन्म के कुछ माह उपरांत मैं उसे लेकर मेरी मां के पास गई थी । वहां प्रतिदिन एक तितली चैतन्य के पास आती थी । चैतन्य उसके साथ खेलता था । उनके घर में एक कोयल और एक गाय भी प्रतिदिन आती थी ।’
– श्रीमती बी. अश्विनी (कु. चैतन्य की मां), जमशेदपुर
२. ‘चैतन्य जब ५-६ महीने का था, तब वह ‘सनातन पंचांग’ की ओर देखकर हंसता था ।
३. वह श्रीकृष्ण के चित्र की ओर देखकर बहुत आनंदित होता था । उसे श्रीकृष्ण के चित्र के पास ले जाने पर मानो वह श्रीकृष्ण के साथ ही बोल रहा है, इस प्रकार प्रसन्न मुद्रा के साथ अलग-अलग आवाजें निकालता था ।
४. उस अवधि में पू. होनपजी उधर आए थे । उन्हें देखकर चैतन्य आनंदित होता था । वह साधकों की ओर देखकर भी हंसता था । साधकों के सान्निध्य में रहना उसे अच्छा लगता था ।
३. आयु २ से ३ वर्ष
३ अ. उत्साही : चैतन्य सुबह से लेकर राततक उत्साहित रहता था । वह कभी थकता नहीं था ।’
– श्री. बी. वी. कृष्णा (कु. चैतन्य के पिता), जमशेदपुर
३ आ. अल्प आहार : ‘चैतन्य का भोजन अल्प है; परंतु उसमें भी वह संतुष्ट और तृप्त रहता है ।
३ इ. सात्त्विक रंग अच्छे लगना : चैतन्य को सात्त्विक रंग बहुत प्रिय हैं । उसमें भी उसे नीला रंग बहुत प्रिय है । उसके पास उसके पेंसिल की पेटी, विद्यालय के भोजन का डिब्बा, पानी की बोतल और खिलौनों का रंग नीला है ।
३ ई. बडों के प्रति आदर : वह प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत माता-पिता और दादा-दादी को नमस्कार करता है ।
४. आयु ४ से ५ वर्ष
४ अ. सादगी : चैतन्य को स्वयं का छायाचित्र खींचने में रुचि नहीं है । उसके सभी मित्र अलग-अलग प्रकार से हावभाव कर अपने छायाचित्र खींचते हैं; परंतु चैतन्य उससे अलिप्त रहता है । उसे सौंदर्य प्रसाधन लगाने में भी रुचि नहीं है ।
४ आ. जिज्ञासा : चैतन्य को प्राणी और पक्षियों के प्रति प्रेम और रुचि है । नए-नए प्राणी-पक्षी देखकर ‘उन्हें क्या कहते हैं, वे कहां रहते हैं, वे क्या खाते हैं, उन्हें क्या प्रिय है ?’, यह सब जानने की जिज्ञासा होती है । उसे हाथी और घोडे विशेषरूप से प्रिय हैं । खिलौने लाने जाने पर वह जंगलसेट अथवा ‘प्राणी अथवा पशुआें के खिलौने लेने को प्रधानता देता है ।
४ इ. प्रार्थना और श्लोक बोलना : चैतन्य सवेरे जागने पर ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी…’ श्लोक बोलकर ही बिस्तर से उठता है । भोजन के समय प्रत्येक बार प्रार्थना और श्लोक बोलता है और अध्ययन करने से पूर्व बिना भूले श्री सरस्वतीदेवी का श्लोक बोलता है ।’
– श्रीमती बी. अश्विनी
४ ई. सत्यवचनी : ‘चैतन्य सदैव सत्य बोलता है ।
४ उ. सभी के साथ घुल-मिलकर रहना : वह सभी में तुरंत घुल-मिल जाता है । उसकी बातों से लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं ।’
– श्री. बी. व्ही. कृष्णा
५. आयु ५ से ६ वर्ष
५ अ. निर्भयता : ‘झारखंड के ‘कीनन स्टेडियम’ में अलग-अलग प्रकार के अनेक खेल सिखाए जाते हैं । मैंने ‘चैतन्य को कुछ खेल सिखाने के उद्देश्य से उसे वहां सिखाए जानेवाले सभी खेल दिखाए । अनेक प्रकार के खेल देखने के पश्चात उसने घुडसवारी (हॉर्स राइडिंग) सीखना सुनिश्चित किया । यह खेल सिखानेवाले प्रशिक्षक से बात करने पर उन्होंने कहा, ‘‘पहले हम चैतन्य की परीक्षा लेंगे और यदि वह बिना किसी भय के घोडे पर बैठा, तो हम उसे सिखाएंगे,’’ तब वह निर्भयता के घोडे पर बैठा । उसके कारण उसे घुडसवारी सीखने के लिए प्रवेश मिला । आजकल चैतन्य जमशेदपुर के ‘हॉर्स राइडिंग’ विद्यालय में सबसे छोटी आयु का छात्र है ।’ – श्री. बी. वी. कृष्णा
५ आ. स्वीकारने की वृत्ति : ‘वह प्रामाणिकता के साथ स्वयं की चूक स्वीकार करता है और बिना किसी शिकायत के उसके लिए दिया दंड भी स्वीकार करता है । पिछले २ महीने से प्रतिदिन सोने के पूर्व वह अपनी चूकें लिखकर रखता है । रात को सोने से पूर्व वह क्षमायाचना करके ही सोता है ।
५ इ. सात्त्विक पद्धति से जन्मदिन मनाना : हम सनातन संस्था द्वारा बताए गए पद्धति से अर्थात शास्त्र के अनुसार चैतन्य का जन्मदिन मनाते हैं । उसके जन्मदिन पर केक काटना अथवा गुब्बारे लगाना जैसा कुछ नहीं करते । वह उसके मित्रों के जन्मदिन पर उनके घर जाता है, तब वह वहां की जानेवाली सजावट और केक देखकर उस प्रकार से अपना जन्मदिन मनाने का आग्रह कभी नहीं करता । ‘इस प्रकार केक काटने अथवा गुब्बारे लगाने से वहां अनिष्ट शक्तियां आती हैं’, ऐसा वह कहता है ।
५ ई. भाव : चैतन्य श्रीकृष्ण को ‘मामा’ बोलता है ।
वह गुरुदेवजी को ‘गोवा के दादाजी’ बोलता है । साधकों से मिलने पर वह उन्हें ‘गोवा के दादाजी ने मुझे चॉकलेट दिया था’, ऐसा बताता है ।’
– श्री. बी.वी. कृष्णा और श्रीमती बी. अश्विनी
६. सेवा की लगन
६ अ. साधकों की भांति सत्संग में बताए जानेवाले सूत्र लिखकर लेने हेतु सत्संग में जाते समय बही और पेन ले जाना : ‘जब चैतन्य को छुट्टी होती है, तब वह सत्संग में जाता है । वहां साधकों को सत्संग में बताए जानेवाले सूत्र लिखकर लेते हुए देखकर उसने अपने दादाजी से एक बही मांगकर ली है । वह शिशुसमूह में शिक्षा ले रहा है; इसलिए अभी उसे पूरा वाक्य लिखना नहीं आता; परंतु तब भी वह सत्संग में जाते समय बही और पेन लेकर जाता है और साधकों को ‘मेरे पास भी आपके जैसी बही है’, ऐसा बताता है ।
६ आ. चैतन्य अपने माता-पिता के साथ गुरुपूर्णिमा के सामूहिक प्रसारसेवा के लिए जाकर उत्साह के साथ सेवा करता है ।
६ इ. ग्रंथप्रदर्शनी की सेवा के पश्चात शेष सामग्री की गिनती करने की सेवा करना अच्छी लगना : ‘सात्त्विक वस्तुआें को व्यवस्थित रखना और उनकी गिनती करना’ चैतन्य की प्रिय सेवाएं हैं । वह ग्रंथों और सात्त्विक उत्पादों की प्रदर्शनी की सेवा के पश्चात ‘वितरण कितना हुआ है ?’, यह देखकर शेष सामग्री की गिनती करने की सेवा मिलने की प्रतीक्षा करता है ।
६ ई. भीतिपत्रकों की (फ्लेक्स की) स्वच्छता की सेवा रुचि के साथ करना : चैतन्य के घर में प्रसार के भीतिपत्र (फ्लेक्स) रखे गए हैं । वह इन भीतिपत्रकों की स्वच्छता की सेवा में मन से सम्मिलित होता है । उसने स्वच्छता करने हेतु एक छोटी बाल्टी भी ले रखी है । इस सेवा में उसे आनंद मिलता है और उसे देखकर अन्य साधक भी उत्साहित और आनंदित होते हैं ।
७. कार्यपद्धति का पालन करना
उसे कोई कार्यपद्धति बतानेपर वह उसका स्मरण रखकर उसका अचूकता से पालन करना है । हमने भी कुछ भूला, तो वह हमें उसका स्मरण करा देता है ।’
– कु. मधुलिका शर्मा, झारखंड (२०.६.२०२०)