कर्करोग जैसी असाध्य बिमारी होते हुए भी दृढ श्रद्धा के साथ भावपूर्ण पद्धति से साधना का प्रयास करनेवाली उत्तर प्रदेश की श्रीमती माधुरी चौहान (आयु ६० वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर
फरीदाबाद (हरियाणा) – ‘२२.९.२०२० को फरीदाबाद, मथुरा और बदायूं के साधकों के लिए ‘ऑनलाइन’ भावसत्संग का आयोजन किया गया था । उसमें सद़्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने साधकों को आपातकालीन स्थिति में उन्होंने साधना के कौन से प्रयास किए और उससे उन्हें क्या अनुभव मिले, यह बताने के लिए कहा । उसके पश्चात कुछ साधकों ने स्वयं में हुए परिवर्तन और अन्य अनुभव बताए । तत्पश्चात श्रीमती माधुरी चौहान को भी अपने अनुभव बताने के लिए कहा गया । इस सत्संग में पू. भगवंतकुमार मेनरायजी की वंदनीय उपस्थिति थी । इस सत्संग में सद़्गुरु पिंगळेजी ने श्रीमती माधुरी चौहान द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर उनके जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की घोषणा की । यह शुभ समाचार सुनकर सभी साधकों की भावजागृति हुई ।
इस अवसर पर अपना मनोगत व्यक्त करते हुए श्रीमती माधुरी चौहान ने बताया कि ‘‘जब मुझे कर्करोग होने की बात पता चली, तब मुझे ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मुझे अपने हाथों में उठा लिया है’, इसकी अनुभूति हुई । साधना करने के लिए पहले मेरे पति का विरोध था । रात के २ बजे मैं नींद से जाग जाती थी, तब मेरे कारण पति की नींद न टूटे; इसके लिए मैं घर की छत पर जाकर नामजप करती थी । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति कृतज्ञता लगने के कारण ही साधना के प्रयास हो सके ।’’ इसके लिए श्रीमती चौहान ने सभी साधक और परिवार के सभी सदस्यों के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की । इस शुभ समाचार के पश्चात उनके परिवार के सदस्यों ने भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त की । तत्पश्चात उनके परिवार के सदस्यों और अन्य साधकों ने उनकी गुणविशेषताएं बताईं ।
१. श्री. दिनेश चौहान (पति) : हमारे पूरे परिवार पर परात्पर गुरु डॉक्टरजी की बहुत कृपा है । एक साधक से बात करते हुए उन्होंने बताया कि ‘‘माधुरी की साधना के प्रयास देखकर ऐसा लगता है कि उसे ले जाने के लिए स्वयं ईश्वर ही विमान लेकर आएंगे । आज यह शुभ समाचार सच हुआ, ऐसा लगता है ।’’ यह बताते हुए श्री. दिनेश चौहान का भाव जागृत हो गया था ।
२. श्री. निखिल चौहान (पुत्र) : दिसंबर २०१९ में जब मैं मेरे काम से छुट्टी लेकर घर आया, तब यह ध्यान में आया कि मेरी मां की साधना की लगन, भाव और श्रद्धा बहुत बढ गई है और उससे उसमें निहित कष्टदायक आवरण भी दूर हुए हैं । उसके मुख पर तेज भी दिखाई दे रहा था । अब वह अंदर से बहुत शांत हो गई है, यह बात ध्यान में आई ।
३. श्रीमती नम्रता गौतम (पुत्री) : पहले जब मैं मार्यके जाती थी, तब मां के साथ मेरा विवाद होता था; परंतु इस बार वहां जाने पर मां के साथ कभी भी विवाद नहीं हुआ । पहले मैं साधना करती थी; परंतु मध्य में ही सबकुछ छूट गया था । अब मां की लगन के कारण मैं साधना से पुनः जुड पाई हूं । पिछले ३-४ महीने से मां के प्रोत्साहन के कारण ही मैं सेवा कर पा रही हूं । मां में सहनशीलता और परिस्थितियों को स्वीकारने की वृत्ति बहुत है । अब उसकी देहबुद्धि ही समाप्त हो गई है । कर्करोग के लिए उसे केमोथेरपी दी जाती थी, जिससे उसके सिर के केश झड गए थे; परंतु उसे उसका कुछ नहीं लगता था । मुझे पिछले सप्ताह से बहुत शीतलता और चैतन्य प्रतीत हो रहा था । ‘ऐसा क्यों हो रहा है ?’, मन में ये प्रश्न उठ रहा था । आज उसका कारण ध्यान में आया । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कारण ही हमसे साधना के प्रयास हो रहे हैं ।
४. श्री. शशांक सिंह (भांजा), वाराणसी : माधुरी मौसी में साधना की बहुत लगन है । ‘बहुत शीघ्र उसका आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत हो जाएगा’, ऐसा लग रहा था । मौसी में उसके बच्चे भी साधना करें, यह बहुत लगन है । साधना का बल कैसे होता है, इसका वह एक अच्छा उदाहरण है । ‘वर्ष २००८ में परात्पर गुरुदेवजी ने उसके निरंतर संपर्क में रहने के लिए कहा था । तब गुरुदेवजी ने मुझे ऐसा क्यों कहा था, यह बात आज ध्यान में आई ।’
५. डॉ. अरुणा सिंह, गोवा आश्रम (छोटी बहन) : परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ही हमारे जीवन को सार्थक किया है । ‘वह और आगे बढती रहे’, ऐसा लगता है । यह शुभसमाचार सुनकर बहुत कृृतज्ञता व्यक्त हो रही है ।
सत्संग में अन्य साधकों द्वारा बताई गई गुणविशेषताएं
१. श्रीमती बीना पंत (चंदौसी ) : उनके साथ सेवा करते समय बहुत अच्छा लग रहा था ।
२. ममता अरोरा : दीदी में ‘तत्परता’ गुण बहुत मात्रा में है । उनसे कोई जानकारी चाहिए हो, तो उन्हें बताने पर वे तुरंत पूछकर बताती हैं । जो रसीदें नहीं मिली हैं, उनके संदर्भ में वे समय-समय पर संदेश भेजकर तत्परता से जानकारी लेती हैं । उनसे बात करते समय मन को स्थिरता प्रतीत होती है । उनकी बातों से उन्हें कोई बीमारी हो सकती है, यह कभी भी ध्यान में नहीं आता था । दीदी से यदि कोई सूत्र रह गया हो, तो वे उसके लिए तुरंत ही क्षमायाचना करती हैं । इसमें उनमें विद्यमान ‘विनम्रता’ गुण दिखाई देता है । इन २ महीने की सेवा से दीदी से बहुत कुछ सीखने को मिला । उनमें परात्पर गुर डॉक्टरजी के प्रति बहुत श्रद्धा है और इस कठिन स्थिति में भी उनके मन की सकारात्मकता परात्पर गुरुदेवजी की ही कृपा है, यह बात ध्यान में आती है ।
३. श्रीमती सीमा शर्मा : पंचांग की सेवा के कारण मेरा माधुरीदीदी से संपर्क होता था । पंचांग वितरण का उनका ब्यौरा समय पर मिलता है । इससे उनमें विद्यमान समय के प्रति गंभीरता का गुण ध्यान में आता है ।
४. श्रीमती उषा रखेजा : उनमें सेवा की बहुत लगन है ।
५. श्रीमती वंदना सचदेवा : उनकी साधना के प्रयास बहुत अच्छे होते हैं । उन्हें कोई सूत्र बताया गया, तो वे उसका तुरंत क्रियान्वयन करने के लिए प्रधानता देती हैं ।
६. कु. पूनम किंगर : मध्य में उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था; परंतु वे इस बात को घर में नहीं बताती थीं; क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि ‘स्वास्थ्य ठीक नहीं है’, घर में यह ज्ञात हुआ, तो घर के सदस्य उन्हें सेवा के लिए जाने नहीं देंगे । अब उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है । उन्हें कर्करोग है । इतनी कठिन स्थिति में भी वे केमोथेरपी के लिए देहली आती हैं, तब उनमें वहां के सत्संग में जाने की बहुत लगन होती है । केमोथेरपी के लिए वे बदायूं (उत्तर प्रदेश) से देहली के चिकित्सालय आती है और निवास हेतु फरिदाबाद आती हैं । तब भी वे चलितभाष कर ‘अगला सत्संग कब है और क्या मैं उसमें आ सकती हूं ?’, यह पूछती थीं ।’
दीदी अब बहुत शांत हैं; परंतु उन्हें देखकर ‘उन्हें कोई बीमारी है’, ऐसा नहीं लगता । उनके मुख पर एक अलग ही तेज दिखाई देता है । उनमें बहुत स्थिरता दिखाई देती है । ‘ऐसी कठिन स्थिति में भी कोई व्यक्ति इतना स्थिर कैसे रह सकता है ?’, यह देखकर उनके परिवार के सदस्य भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं । उनके परिवार के सदस्यों को परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति बहुत कृतज्ञता लगती है और दीदी को देखकर साधना करने की प्रेरणा भी मिलती है । इसके फलस्वरूप उनके परिवार के सभी सदस्य भी अब बहुत लगन के साथ साधना करने लगे हैं ।’