आपातकाल की दृष्टिम से करने योग्य आवश्यक तैयारी के संदर्भ में कुछ सामूहिक सूचनाएं
१. घर के उपकरण (रसोईघर में उपयोग में लाए जानेवाले उपकरण, बिजली के उपकरण इत्यादि), साईकिल, बैलगाडी आदि को दुरुस्त करने के लिए पुर्जे पहले ही खरीदकर रखें !
२. घर के उपकरण, नल, साइकिल, बैलगाडी आदि को दुरुस्त करना सीख लें !
३. कुछ वस्तुआें की (उदा. अनाज पीसने हेतु ‘चक्की) की खरीद अभी से करके रखें, तथा कुछ वस्तुआें की (उदा. औषधियों की) चरणबद्ध पद्धति से / उनके टिके रहने की अवधि / सरकारी नियम और बंधनों को ध्यान में लेकर करें !
४. दूरदर्शन का (‘टीवी’ का) प्रसारण बंद होने पर आकाशवाणी से दी जानेवाली सूचनाएं, समाचार आदि सुनने हेतु ‘रेडियो’ खरीदें ! चल-दूरभाष में भी ‘रेडियो’ होता है, वह भी चल सकता है ।
५. गृहनिर्माण संस्थाआें (हाउसिंग सोसाइटी), अपार्टमेंट आदि स्थानों पर रहनेवाले एकत्रित रूप से निम्नांकित सुविधाएं उपलब्ध करें !
इसमें ‘बायो-गैस’ संयंत्र खडा करना, सौरऊर्जा की व्यवस्था करना, कुआं खोदना जैसी सुविधाआें की व्यवस्था हो ।
६. स्वयं पर ईश्वर की कृपादृष्टि बनी रहे तथा अपने चारों ओर सुरक्षा-कवच बनने हेतु प्रतिदिन निम्नांकित कृत्य करें !
इसमें देवतापूजन करना, सायंकाल देवता एवं तुलसी के सामने दीप जलाकर दीप को नमस्कार करना, घर में दीप जलाने के पश्चात घर के सभी सदस्य एकत्रित बैठकर स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कवच प्रदान करनेवाले श्लोक / स्तोत्र बोलना (उदा. ‘शुभं करोति’, रामरक्षास्तोत्र, हनुमानचालीसा, देवीकवच आदि), रात को सोते समय बिछौने के चारों ओर देवताआें के सात्त्विक नामजप-पट्टियों का मंडल बनाना और स्वयं की रक्षा हेतु इष्टदेवता से प्रार्थना करना आदि कृत्यों का अंतर्भाव होना चाहिए ।
आपातकाल की गंभीरता ध्यान में लेकर उस दृष्टि से अभी से प्रयत्न प्रारंभ करें !
‘तीसरे विश्वयुद्ध के काल में वाहनों के लिए पेट्रोल और डीजल नहीं होगा । सुधारने के लिए खुले भाग (स्पेयर पार्ट्स) न मिलने के कारण वाहन होकर भी न होने के समान होंगे । तब किसी रोगी को चिकित्सक के पास ले जाना भी असंभव होगा । उसकी वेदना हम नहीं देख पाएंगे । इस कठिन परिस्थिति पर उपायस्वरूप स्वयं के पास ठेला, बैलगाडी, साइकिल आदि होना तथा वे बिगडने पर उनमें सुधार करना आना तथा उसके खुले भाग भी अपने पास होना आवश्यक है ।’
आपातकाल में कष्ट भुगतना साधना है !
‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ सनातन का व्यापक ध्येय होने के कारण उसमें आनेवाली बाधाएं भी बडी हैं । वर्तमान आपातकाल में साधक समष्टि प्रारब्ध स्वरूप विविध कष्ट भुगत रहे हैं; परंतु तब भी वे निःस्वार्थ रहकर साधनारत हैं । ‘आपातकाल में कष्ट भुगतना’, यह उनकी साधना ही सिद्ध हो रही है ।’