साधको, ‘ईश्वर द्वारा ली जानेवाली साधना की प्रत्येक परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही वास्तविक आध्यात्मिक प्रगति है’, इसे ध्यान में लें !
‘अधिकांश साधकों को ‘६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना ही प्रगति है’, ऐसा लगता है । साधक आगे आनेवाले किसी विशिष्ट दिन तक (उदा. गुरुपूर्णिमा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिनों तक) अथवा स्वयं के जन्मदिवस तक ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने का लक्ष्य सुनिश्चित करते हैं और उससे पहले कुछ अवधि में साधना के प्रयास आरंभ करते हैं । ‘सुनिश्चित समयसीमा में लक्ष्य की आपूर्ति होनी ही चाहिए’, यह कुछ साधकों में अपेक्षा होती है और वैसा नहीं हुआ, तो उन्हें दुःख होता है । साधकों को ऐसा लक्ष्य अवश्य रखना चाहिए; परंतु लक्ष्यप्राप्ति कर अपेक्षा रखकर उन विचारों में संलिप्त होने से बचना चाहिए ।
६० प्रतिशत अथवा उसके आगे का स्तर प्राप्त करना आध्यात्मिक उन्नति का केवल दृश्य स्वरूप है; किंतु वास्तविक प्रगति होती है ईश्वर द्वारा ली जानेवाली साधना की प्रत्येक परीक्षा में उत्तीर्ण होना ! प्रतिक्षण अपने अंतर्मन का निरीक्षण करना, मन में व्याप्त अनुचित विचार, निराशा आदि न्यून होने हेतु, साथ ही अनुचित कृत्यों में सुधार लाने हेतु स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया अपनाना और भाववृद्धि हेतु प्रयास करना, प्रतिदिन की जानेवाली प्रगति ही है ।
६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना हमारे हाथ में नहीं है; परंतु प्रतिदिन निरपेक्षता के साथ तथा निरंतर साधना के प्रयास करना हमारे हाथ में है । इसलिए लगन के साथ प्रयास करने से गुरुकृपा से ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया जा सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं है !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२१.७.२०२०)
‘फल की अपेक्षा न रखते हुए कर्म करते रहने से आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र होती है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी |