कोरोना संकटकाल में गणेशोत्‍सव कैसे मनाना चाहिए ?

१. संकटकालीन परिस्‍थिति के परिप्रेक्ष्य में हिन्‍दू धर्मशास्‍त्र में बताया हुआ विकल्‍प है ‘आपद्‍धर्म’ !

‘आजकल पूरे विश्‍व में कोरोना महामारी के कारण सर्वत्र ही लोगों के बाहर निकलने पर अनेक बंधन लगे हुए हैं । भारत के विविध राज्‍यों में भी यातायात बंदी (लॉकडाउन) लागू है । कुछ स्‍थानों पर कोरोना का प्रकोप भले ही अल्‍प हो; परंतु वहां भी लोगों के घर से बाहर निकलने पर अनेक बंधन हैं । इसके कारण हिन्‍दुआें के विविध त्‍योहारों, उत्‍सवों एवं व्रतों को सदा की भांति सामूहिक रूप से मनाने पर बंधन लगाए गए हैं । कोरोना जैसे संकटकाल की पृष्‍ठभूमि पर हिन्‍दू धर्म में धर्माचरण के शास्‍त्र में कुछ विकल्‍प बताए हैं, जिन्‍हें ‘आपद़्‍धर्म’ कहा जाता है । ‘आपद़्‍धर्म’ का अर्थ ‘आपदि कर्तव्‍यो धर्मः ।’ अर्थात ‘संकटकाल में धर्मशास्‍त्रसम्‍मत कृत्‍य’ ।

इसी अवधि में श्री गणेश चतुर्थी का व्रत तथा गणेशोत्‍सव के आने से संपतकाल में बताई गई पद्धति के अनुसार अर्थात सामूहिक स्‍वरूप में इस उत्‍सव को मनाने के लिए मर्यादाएं हैं । इस दृष्‍टि से प्रस्‍तुत लेख में ‘वर्तमान दृष्‍टि से धर्माचरण के रूप में गणेशोत्‍सव किस प्रकार मनाया जा सकता है ?’, इसका विचार किया गया है । यहां महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि इसमें ‘हिन्‍दू धर्म ने किस स्‍तर तक जाकर मनुष्‍य का विचार किया है’, यह सीखने को मिलता है तथा हिन्‍दू धर्म की व्‍यापकता ध्‍यान में आती है ।

२. गणेश चतुर्थी का व्रत किस प्रकार करना चाहिए ?

गणेशोत्‍सव हिन्‍दुआें का बहुत बडा त्‍योहार है । श्री गणेश चतुर्थी के दिन, साथ ही गणेशोत्‍सव के दिनों में पृथ्‍वी पर गणेशतत्त्व सामान्‍य दिनों की तुलना में सहस्र गुना कार्यरत रहता है । आजकल कोरोना महामारी का प्रकोप प्रतिदिन बढ रहा है; इसके कारण कुछ स्‍थानों पर घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध हैं । इस दृष्‍टि से आपद़्‍धर्म और धर्मशास्‍त्र का मेल कर जीवंत दृश्‍य, सजावट आदि न कर सादगीयुक्‍त पद्धति से पार्थिव सिद्धिविनायक का व्रत किया जा सकता है ।

प्रतिवर्ष कई घरों में खडिया मिट्टी, प्‍लास्‍टर ऑफ पैरिस आदि से बनाई जानेवाली मूर्ति की पूजा की जाती है । इस वर्ष जिन क्षेत्रों में कोरोना विषाणु का प्रकोप अल्‍प है अर्थात जिस क्षेत्र में यातायात बंदी नहीं है, ऐसे स्‍थानों पर सदा की भांति गणेशमूर्ति लाकर उसकी पूजा करें । (‘धर्मशास्‍त्र के अनुसार गणेशमूर्ति खडिया मिट्टी की क्‍यों होनी चाहिए ?’, इस लेख के अंतिम परिच्‍छेद में इसका विवरण दिया गया है ।)

जिन लोगों को किसी कारणवाश घर से बाहर निकलना भी संभव नहीं है, उदा. कोरोना प्रकोप के कारण आसपास का परिसर अथवा इमारत को ‘प्रतिबंधजन्‍य क्षेत्र’ घोषित किया गया है, वहां के लोग ‘गणेशतत्त्व का लाभ मिले’, इसके लिए घर में स्‍थित गणेशमूर्ति की पूजा अथवा गणेशजी के चित्र का षोडशोपचार पूजन कर सकते हैं । यह पूजन करते समय पूजा में समाहित ‘प्राणप्रतिष्‍ठा विधि’ नहीं करनी है, यह ध्‍यान में लेनेयोग्‍य महत्त्वपूर्ण सूत्र है ।

३. ज्‍येष्‍ठा गौरी व्रत किस प्रकार करें ?

कुछ घरों में भाद्रपद शुक्‍ल पक्ष अष्‍टमी के दिन ज्‍येष्‍ठा गौरी का पूजन किया जाता है । इसे कुछ घरों में खडियों के स्‍वरूप में, तो कुछ घरों में मुखौटे बनाकर उनकी पूजा की जाती है । जिन्‍हें प्रतिवर्ष की भांति खडिया मिट्टी अथवा मुखौटों के स्‍वरूप में उनकी पूजा करना संभव नहीं है, वे अपने घर में स्‍थित देवी की किसी मूर्ति अथवा चित्र की पूजा कर सकते हैं ।
विशेष सूचना ः गणेशमूर्ति लाते समय, साथ ही उसका विसर्जन करते समय घर के कुछ लोग ही जाएं । मूर्ति विसर्जन अपने घर के निकट के तालाब अथवा कुएं में करें । इस काल में भीड होने की संभावना होने से शासन द्वारा कोरोना के संदर्भ में दिए गए दिशानिर्देशों का अचूकता से पालन करना हम सभी का आद्यकर्तव्‍य है ।
– श्री. दामोदर वझे, संचालक, सनातन पुरोहित पाठशाला, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१३.७.२०२०)

४. ‘गणेशमूर्ति खडिया मिट्टी की ही क्‍यों होनी चाहिए ?’, इसके संबंध में धर्मशास्‍त्रीय संदर्भ !

‘धर्मशास्‍त्र के अनुसार खडिया मिट्टी की मूर्ति का पूजन करने पर आध्‍यात्मिक स्‍तर पर उसका अत्‍यधिक लाभ मिलता है’, ऐसा हिन्‍दू धर्मशास्‍त्रीय ग्रंथ में बताया गया है ।

‘धर्मसिन्‍धु’ ग्रंथ में ‘गणेश चतुर्थी के लिए गणेशजी की मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?’, इसके संबंध में निम्‍नांकित नियम दिए गए हैं ।

तत्र मृन्‍मयादिमूर्तौ प्राणप्रतिष्‍ठापूर्वकं विनायकं षोडशोपचारैः सम्‍पूज्‍य…। – धर्मसिन्‍धु, परिच्‍छेद २

अर्थ : इस दिन (भाद्रपद शुक्‍ल पक्ष चतुर्थी को) मिट्टी आदि से बनाई गई श्री गणेश मूर्ति की प्राणप्रतिष्‍ठापूर्वक स्‍थापना कर उसकी षोडशोपचार पूजा कर…

दूसरे एक संदर्भ के अनुसार ‘स्‍मृतिकौस्‍तुभ’ नामक धर्मग्रंथ में श्रीकृष्‍णजी द्वारा धर्मराज युधिष्‍ठिर को सिद्धिविनायक व्रत करने के संबंध में बताने का उल्लेख है । इसमें ‘मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?’, इसका विस्‍तृत वर्णन आया है ।

स्‍वशक्‍त्‍या गणनाथस्‍य स्‍वर्णरौप्‍यमयाकृतिम् । अथवा मृन्‍मयी कार्या वित्तशाठ्यंं न कारयेत् ॥ – स्‍मृतिकौस्‍तुभ

अर्थ : इस (सिद्धिविनायक की) पूजा हेतु अपनी क्षमता के अनुसार सोना, रूपा (चांदी) अथवा मिट्टी की मूर्ति बनाएं । इसमें कंजूसी न करें ।
‘इसमें सोना, चांदी अथवा मिट्टी से ही मूर्ति बनाएं’ ऐसा स्‍पष्‍टता से उल्लेख होने से इन्‍हें छोडकर अन्‍य वस्‍तुआें से मूर्ति बनाना शास्‍त्र के अनुसार अनुचित है ।’

सौजन्‍य : सनातन संस्‍था

टिप्‍पणी : ‘श्री गणेश की पूजा कैसे करनी चाहिए, उसके लिए क्‍या सामग्री आवश्‍यक है ?’ आदि के संदर्भ में जिन्‍हें अधिक जानकारी चाहिए, वे सनातन द्वारा निर्मित ‘गणेशपूजा एवं आरती’ एप डाउनलोड करें अथवा ‘सनातन संस्‍था’ के www.Sanatan.org जालस्‍थल पर जाएं ।

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