आज की स्थिति में ‘कोरोना विषाणु’ संक्रमण के कारण मृतक के शरीर पर अग्निसंस्कार करना संभव न हो, तो ऐसी स्थिति में धर्मशास्त्र के अनुसार की जानेवाली ‘पलाशविधि’ !
‘देश में सर्वत्र ‘कोरोना’ विषाणु संक्रमण का प्रकोप बढता ही जा रहा है और उसके कारण अनेक लोगों की मृत्यु भी हो रही है । इस संक्रमण के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके परिवारजनों को उस व्यक्ति का मृत शरीर नहीं सौंपा जाता । सरकारी कर्मचारियों द्वारा ही उसका दहन किया जाता है । उसके कारण मृत शरीर की अस्थियां भी नहीं मिल पातीं । ऐसी स्थिति में समाज के सामने, ‘अंतिमसंस्कार कैसे करने चाहिए’, यह प्रश्न उठता है ।
१. मृत व्यक्ति का शरीर न मिलता हो, तो ऐसे व्यक्ति
के अंतिमसंस्कार हेतु धर्मशास्त्र में ‘पलाशविधि’ करने के लिए बताना
‘कोई व्यक्ति लापता हो और कुछ अवधि पश्चात उस व्यक्ति की मृत्यु का समाचार मिलता है, तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति का मृत शरीर अंतिमसंस्कार हेतु नहीं मिलता । ऐसे समय में धर्मशास्त्र ने ‘पलाशविधि’ करने के लिए कहा है । कोरोना विषाणु संक्रमण के कारण मृतक व्यक्ति का शरीर अथवा उसकी अस्थियां उसके परिवारजनों को नहीं सौंपी जातीं । ऐसी स्थिति में भी धर्मशास्त्र के अनुसार ‘पलाशविधि’ करना उचित होगा ।
२. व्यक्ति के मृत होने का समाचार मिलने पर क्या करना चाहिए ?
अ. परिवार के सदस्य की मृत्यु होने पर सामान्य की भांति पहले १० दिनतक सूतक का पालन करें, साथ ही १० दिनतक दीप का मुख दक्षिण की ओर कर तेल का दीप जलाकर रखें ।
आ. पहले १० दिन अपने कुल की परंपरा के अनुसार जो कृत्य करना सहजता से संभव हैं, उन्हें करें ।
इ. आजकल देश में यातायात बंदी तो है ही और कुछ स्थानों पर बडी मात्रा में कोरोना का प्रकोप होने के कारण उस क्षेत्र को ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ के रूप में घोषित किया गया है । इसलिए कोरोना का प्रकोप अल्प होने पर अथवा स्थिति सामान्य होने पर शीघ्रातिशीघ्र ‘पलाशविधि’ करें । इसके लिए अपने निकटतम स्थानीय पुरोहित से संपर्क करें । किसी धार्मिक विधि करते समय हम ‘दिनशुद्धी’ अर्थात ‘क्या उस कर्म के लिए वह दिन उचित है ?’, यह देखते हैं, उसी प्रकार से इस विधि के लिए भी पुरोहित से योग्य दिन निश्चित करवाएं । उसके पश्चात पुरोहित के मार्गदर्शन में यह विधि संपन्न कराएं ।
३. ‘पलाशविधि’ कैसे और कहां करें ?
अ. मृत्यु होने पर वह व्यक्ति प्रेतयोनि में जाता है । उसके लिए पलाश के पत्ते, दर्भ, पुरोहित के मार्गदर्शन के अनुसार विशिष्ट प्रकार के फल और पत्तों को विशिष्ट संख्या में लेकर उस व्यक्ति की मूर्ति तैयार करें ।
आ. उस मूर्ति पर सत्तू का (५ अथवा ७ प्रकार के अनाजों को एकत्रितरूप से भूनकर बनाए जानेवाले आटे का) लेपन करें । तत्पश्चात प्रत्यक्ष मृत शरीर पर अंतिमसंस्कार करते समय जिस प्रकार मृतशरीर को मंत्राग्नि दी जाती है, उस प्रकार उस मूर्ति को मंत्राग्नि दें ।
इ. उसके अगले दिन की विधि भी क्रमशः सामान्य की भांति करें ।
ई. उस व्यक्ति की मृत्यु के समय ‘त्रिपाद शांत’ या ‘पंचक (अशुभ नक्षत्र)’ लगा हो, तो उसके लिए बताई गई विधियां भी सामान्य की भांति ही करें ।
उ. किसी तीर्थक्षेत्र अथवा जिस स्थान पर दशक्रियाविधि आदि मृत्योत्तर कर्म किए जाते हैं, ऐसे स्थान पर यह विधि करें ।
ऊ. ये विधि करते समय घर के आवश्यक एवं चुनिंदा व्यक्ति ही उपस्थित
रहें । ‘वहां भीड न हो’, इसकी ओर ध्यान दें और सामाजिक दूरी भी बनाए रखें । कोरोना के संदर्भ में सरकार के सभी निर्देशों का कठोरता से पालन करें ।
ए. सभी मृत्त्योत्तर कर्म पूरे होने के पश्चात घर में ‘निधनशांत’ अथवा ‘उदकशांत’ विधि करें ।’
– श्री. सिद्धेश करंदीकर, सनातन पुरोहित पाठशाला, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२५.६.२०२०)