राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने वायु प्रदूषण अल्प करने के लिए शवों पर अग्निसंस्कार करने की पद्धति परिवर्तित करने की मांग रद्द की
वायु प्रदूषण करनेवाले अनेक घटक आज देश में कार्यरत हैं । उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करना छोडकर हिन्दुआें की धार्मिक परंपराआें पर प्रतिबंध लगाने की मांग संतापजनक है !
नई देहली – वायु प्रदूषण तथा कोरोना विषाणु का प्रसार अल्प करने के लिए शवों का अग्निसंस्कार करने की पद्धति के स्थान पर अन्य वैकल्पिक पद्धति अपनाने का निर्देश देने की मांग करनेवाली याचिका राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने रद्द कर दी है । प्राधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में कार्यरत खंडपीठ ने यह याचिका रद्द की है । इस याचिका में मांग की गई थी कि देहली की सर्व श्मशानभूमि में न्यूनतम एक तिहाई शवों के अंतिम संस्कार का रूपांतर वैकल्पिक पद्धति में किया जाए ।
१. खंडपीठ ने कहा है कि, ‘पर्यावरण का सूत्र उपस्थित करने का यह प्रश्न ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधीकरण अधिनियम २०१०’ की धारा १४ और १५ के अंतर्गत उपस्थित नहीं किया जा सकता । उसके लिए याचिकाकर्ता अन्य वैकल्पिक मार्गों पर विचार करें ।
२. देहली के प्रमोद कुमार भाटिया और अन्यों ने अधिवक्ता राहुल चौधरी के माध्यम से यह याचिका प्रविष्ट की थी । इसमें कहा था कि, अनेक वर्षों में ऐसे अनेक ब्यौरे जारी हुए हैं, जिससे दिखाई देता है कि, लकडी पर आधारित अग्निसंस्कार करने से वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है ।’