ढलती आयु में भी नई बातें सीखने की लगन और प्रत्येक बात का श्रेय गुरुदेवजी को देनेवाले पू. भगवंत कुमार मेनरायजी !
१. जन्म दिनांक : श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी (१.८.१९३८)
२. संत पद पर विराजमान : १०.३.२०१५ को संत बने
सनातन के ४६ वें संत पू. भगवंत कुमार मेनरायजी का जन्मदिन श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात इस वर्ष २५ जुलाई को है । इस अवसर साधकों को ध्यान में आई उनकी विशेषताएं यहां दे रहे हैं ।
१. सीखने की वृत्ति
रामनाथी आश्रम में कुछ साधकों को एरोमाथेरेपी सिखाई जा रही थी । पू. मेनरायजी उस विषय में जिज्ञासा से प्रश्न पूछते हैं और मुझे भी यह थेरेपी सीखनी है, ऐसा कहते हैं । वे हिन्दी भाषी हैं तथा उन्हें मराठी नहीं आती । अधिकतर साधक मराठी भाषी हैं; इसलिए उनके साथ मराठी मेें बात करने के लिए वे मराठी सीख रहे हैं ।
२. पंचकर्म उपचार-पद्धति अधिक प्रभावी होने की दृष्टि से स्वयं प्रयोग कर अन्यों को भी करने के लिए कहना
पंचकर्म में अभ्यंग (तेल मालिश) अच्छा और प्रभावी होने के लिए पू. मेनरायजी उससे संबंधित सूत्र बताकर उसके अनुसार क्रिया कर दिखाते हैं । जिस प्रकार किवाड के कब्जे में तेल डालने के पश्चात हम उसे बंद कर एवं खोलकर देखते हैं कि उससे आवाज आनी बंद हुई या नहीं, उसी प्रकार पू. मेनरायजी पंचकर्म के पश्चात व्यायाम कर स्वयं अनुभव करते हैं, पश्चात पंचकर्म किए हुए साधकों को भी ऐसा करने के लिए कहते हैं । पू. मेनरायजी इस व्यायाम के लाभ भी बताते हैं ।
३. गुरुदेव के प्रति भाव
पू. मेनरायजी को तीव्र शारीरिक कष्ट हैं; किंतु वे इसका विचार न कर, गुरुदेव मेरा ध्यान रख रहे हैं और उन्हीं की कृपा से सब हो रहा है, ऐसे भाव में वे रहते हैं ।
४. अनुभूति
४ अ. २.८.२०१६ को पू. मेनरायजी पर पंचकर्म उपचार आरंभ करने से पहले मेरा सिर बहुत दुख रहा था; परंतु उनका पंचकर्म करने पर मुझे बहुत चैतन्य मिला, जिससे मेरे सिर की पीडा दूर हो गई ।
– श्रीमती गौरी चौधरी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (३.८.२०१६)
४ आ. पू. मेनरायजी जिस कक्ष में नामजप करते हैं, उसका आकार बडे ॐ जैसा दिखाई पडना और उसमें बैठनेवाला प्रत्येक साधक उस ॐ की रूपहली ज्योति के समान चमकता दिखाई देना : एक बार मैं पू. भगवंत मेनरायजी के नामजपवाले कक्ष में नामजप के लिए बैठी थी । उस समय मुझे उनके स्थान पर बिंदु के आकार का ॐ दिखाई दिया । पश्चात, मुझे वह पूरा कक्ष ही ॐ के आकार का दिखाई देने लगा और उसमें आने-जानेवाला प्रत्येक साधक उस ॐ की रूपहली ज्योति के समान चमकने लगा ।
– श्रीमती शिरीन चाइना, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३.८.२०१६)
५. भगवान शिव के प्रिय मास में जन्म होना
हिन्दू धर्म में श्रावण (सावन) महीने का विशेष महत्त्व है । यह महीना भगवान शिव को प्रिय है । इसी महीने की नागपंचमी तिथि पर शिवभक्त पू. भगवंत मेनरायजी का जन्म हुआ । इस महीने में सबसे अधिक त्योहार होते हैं, उदा. नागपंचमी, रक्षाबंधन, शीतला सप्तमी, मनसा पूजा (बंगाल), कजरी तीज, रांधण छठ इत्यादि ।
अधिकतर संतों का जन्म भी इसी महीने में हुआ है, उदा. गोस्वामी तुलसीदास, संत नरहरि सोनार, महर्षि अरविंद, धर्मसम्राट करपात्री स्वामी, गुरुदेव डॉ. काटेस्वामी ।
६. उन्होंने पहले वायुसेना में रहकर देशसेवा की, पश्चात अध्यात्मप्रचार तथा सत्सेवा के लिए तन-मन-धन अर्पित किया ।
७. पू. मेनरायजी होमियोपैथी उपचार के जानकार हैं । वे साधकों को कभी भी आवश्यकता पडने पर औषधि देते हैं ।
– श्रीमती नीलिमा सप्तर्षि, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (२.८.२०१६)
श्वास से नामजप जोडने के विषय में पू. भगवंत कुमार मेनरायजी का मार्गदर्शन
साधक अखंड नामजप करने का ध्येय साध्य कर सकें, इसके लिए उन्हें नामजप को कार्य से जोडना चाहिए । अपने शरीर में श्वास अखंड चलती रहती है । हमारा नामजप भी निरंतर होता रहे, इसके लिए उसे श्वासोच्छ्वास क्रिया से आगे दिए अनुसार जोड सकते हैं ।
१. नामजप श्वास से जोडने की प्रक्रिया
१ अ. कुछ भी न कर, आंखें खुली रखकर शांत बैठें ।
१ आ. आंखे बंद कर अपनी श्वास की ओर ध्यान दें ।
१ इ. अपनी श्वास की गति का निरीक्षण कर, नामजप श्वास की गति के साथ जोडें, उदा. ॐ नम: शिवाय यह नामजप श्वास के साथ जोडते समय श्वास लेते हुए ॐ नम: कहें और श्वास छोडते समय शिवाय कहें । इस प्रकार श्वास के साथ नामजप जोडने से वह निरंतर जारी रहता है ।
२. श्वास के साथ नामजप जोडते समय ये सूत्र ध्यान में रखें ।
साधकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उन्हें नामजप श्वास से जोडना है, न कि श्वास को नामजप से ! इसका अर्थ यह है कि नामजप की गति से श्वासोच्छ्वास नहीं करना है, श्वास की गति से नामजप करना है ।
३. श्वास से नामजप जोडने से होनेवाले लाभ
३ अ. श्वास से संबंधित कष्ट दूर होना : अनिष्ट शक्तियों के कारण साधकों को श्वास लेने में कठिनाई होती है अथवा वे पूरी श्वास नहीं ले पाते । श्वास सहित नामजप करने से अनिष्ट शक्तियां साधकों के श्वास पर नियंत्रण नहीं पा सकतीं । इससे साधकों को होनेवाले श्वास संबंधी कष्ट दूर होते हैं ।
३ आ. मन के अनावश्यक एवं नकारात्मक विचार दूर होना : श्वास से नाम जोडने पर साधकों के मन में प्रत्येक श्वास के साथ केवल भगवान का विचार आता है । इसलिए उनके मन में आनेवाले अनावश्यक एवं नकारात्मक विचार घट जाते हैं ।
३ इ. नींद में भी नामजप जारी रहना : श्वास से नामजप जोडने पर, नामजप निरंतर होता रहता है । इससे, न केवल जागृतावस्था में, अपितु नींद में भी नामजप होता रहता है ।
३ ई. सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होना : भगवान के नामजप में उनकी शक्ति और चैतन्य कार्यरत रहता है । अखंड नामजप करने से साधक के सर्व ओर भगवान की शक्ति एवं चैतन्य का अभेद्य सुरक्षा-कवच बन जाता है । इससे उसे सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे पातीं ।
३ उ. अनिष्ट शक्तियों से होनेवाले विविध कष्ट दूर होना : भगवान के नाम से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो कष्टदायक शक्ति को नष्ट करती है । साधकों से अखंड नामजप होगा, तो अनिष्ट शक्तियां उनके पास नहीं जा सकेंगी । इससे साधकों को अनिष्ट शक्तियों से होनेवाले कष्ट नहीं होते ।
३ ऊ. शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांति की अनुभूति होना : भगवान के नाम के साथ उनके गुण भी होते हैं । इसलिए साधक को भगवान के नाम का जप निरंतर करने पर शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद और शांति की अनुभूति हो सकती है ।
३ ए. विविध वाणी में नामजप अनुभव होना : इससे साधकों को वैखरी, मध्यमा, पश्यंती एवं परा, इन वाणियों में नामजप का अनुभव होगा ।
– (पू.) श्री. भगवंत कुमार मेनराय, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१.९.२०१७)