परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
- ‘१९७१ के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की सहायता हेतु अपनी नौसेना भेजने को इच्छुक चीन के कपटी चाल को ध्यान में रखकर आर्थिक कदम उठाने पर ही भारत महासत्ता बन सकता है !’
- ‘वर्ष १९६२ के युद्ध में भारत की भूमि चीन ने हथिया ली, यह राष्ट्रीय अपमान है । यह भूल जानेवालों को देश में रहने का अधिकार है क्या ?’
- ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’, ऐसे कहनेवालों को भारत-चीन सीमारेखा पर लडने के लिए भेज देना चाहिए ।
चिरंतन आनंदप्राप्ति के लिए साधना का विकल्प नहीं !
‘ईश्वर तथा साधना पर यदि विश्वास न भी हो, तब भी चिरंतन आनंद प्रत्येक को चाहिए । और वह केवल साधना से ही मिलता है । जब यह समझ में आता है कि साधना का अन्य कोई विकल्प नहीं । तब मनुष्य साधना की ओर मुडता है ।’
युवावस्था में ही साधना करने का महत्त्व !
‘बुढापा आने पर ही, बुढापा क्या होता है ? यह समझ मे आता है । उसका अनुभव होने पर बुढापा देनेवाला पुनर्जन्म नहीं चाहिए, ऐसे लगने लगता है; किन्तु तब तक साधना कर पुनर्जन्म टालने का समय चला गया होता है । ऐसे न हो इसके लिए युवावस्था से ही साधना कीजिए !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले