माकपा के पूर्व सांसद ने रेल टिकटों के माध्यम से लूट सरकारी पैसे

  • ऐसे पूर्व सांसदों से टिकटों के पूरे पैसे वसूल करने का कानून बनाकर उन्हें दी जानेवाली यह सुविधा संपूर्णतः वापस ली जाए !
  • लोगों को समाजवाद सिखाने का प्रयास करनेवाले वामपंथी दल के नेता कितने दायित्वशून्य है और वे किस प्रकार सरकारी पैसा उडाते हैं, यह ध्यान में आता है !

नई देहली – वर्तमान एवं पूर्व सांसदों को निःशुल्क रेल टिकटों की सुविधा दी जाती है; परंतु इस सुविधा के माध्यम से किस प्रकार से सरकारी पैसे उडाए जाते हैं, इसका एक उदाहरण सामने आया है । बंगाल के मार्क्सवादी कम्युनिस्ट दल के राज्यसभा के एक पूर्व सांसद द्वारा इस प्रकार सरकारी पैसों को उडाए जाने की जानकारी दी गई है; परंतु इसमें इस पूर्व सांसद का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है ।

१. इस पूर्व सांसद ने जनवरी २०१९ में रेल के ६३ टिकट आरक्षित किए; परंतु उन्होंने उनमें से केवल ७ टिकटों का ही प्रत्यक्ष उपयोग किया और शेष टिकटें रद्द नहीं की । अतः संसद के राज्यसभा सचिवालय को इन टिकटों के लिए रेल विभाग को १ लाख ४६ सहस्र ९२० रुपए का भुगतान करना पडा । उन्होंने जिन ७ टिकटों का उपयोग किया, जिनका मूल्य केवल २२ सहस्र ८५ रुपए ही होता है । शेष टिकटों कोर रद्द न करने से सरकार को उसका भुगतान करना पडा ।

२. नियम के अनुसार प्रत्येक सांसद को अपनी पत्नी के साथ प्रथम श्रेणी वातानुकूलित डिब्बे से निःशुल्य यात्रा करने की सुविधा दी गई है, इसके अतरिक्त उसके साथ किसी एक व्यक्ति को द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित डिब्ब में यात्रा करने की सुविधा है ।

३. वर्ष २०१९-२० में राज्यसभा के वर्तमान-पूर्व सांसदों ने टिकट तो आरक्षित किए; परंतु उससे यात्रा नहीं की अथवा उन्हें रद्द भी नहीं किया । उसके कारण सरकार को रेल विभाग को ७ करोड ८० लाख रुपए का भुगतान करना पडा ।

४. साथ ही वर्तमान में राज्यसभा के सांसदों ने जितने टिकटों का आरक्षण किया था, उनमें से केवल १५ प्रतिशत टिकटोंपर ही यात्रा की गई और शेष ८५ प्रतिशत टिकट व्यर्थ हुए हैं । इन सभी टिकटों का सरकार को ही भुगतान करना पडेगा ।

५. इस घटना के पश्‍चात राज्यसभा सचिवालय के महासचिव दीपक वर्मा ने सभी सांसदों को यह सूचना की है कि यदि टिकट आरक्षित किए गए हों और उन्हें यात्रा नहीं करनी हो, तो वे उन्हें रद्द करें , अन्यथा उनके पैसों का उन्हें स्वयं भुगतान करना पडेगा ।

६. रेल विभाग द्वारा भेजे हुए गए देयक (बिल) से ऐसा पता चलता है कि कुछ सांसदों ने एक ही दिन और एक ही समयपर विभिन्न स्टेशनों से प्रस्थान करनेवाले गाडियों के टिकट आरक्षित किए थे ।

७. राज्यसभा सचिवालय ने इन टिकटों के पैसों का भुगतान करना अस्वीकार किया है, साथ ही रेल विभाग से यह आग्रह किया है कि रेल विभाग उन्हीं टिकटों का देयक भेजे, जिन टिकटोंपर यात्रा की गई हो; परंतु रेल विभाग ने अपने नियमों का सन्दर्भ देते हुए ऐसा कहा है कि ‘रद्द न किए गए टिकटों के पैसों का भुगतान करना ही पडेगा’ ।