आनंदित एवं सात्त्विकता में रुचि रखनेवाली कु. श्रीराधा नीरज आवदे (आयु १ वर्ष) का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित !
ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) – ग्रेटर नोएडा के साधक श्री. नीरज आवदे ने उनके परिजन और मित्रों के लिए एक ‘ऑनलाइन’ सत्संग का आयोजन किया था । स्वयं साधना का महत्त्व अनुभव करने पर अपने परिजनों को भी साधना से परिचित कराने हेतु उन्होंने अपने परिचितों से संपर्क कर संगणकीय प्रणाली के माध्यम से सभी को जोडा था । सनातन संस्था की साधिका श्रीमती केतकी येळेगावकर ने ‘जीवन में साधना का महत्त्व’ विषय की जानकारी दी । श्रीमती केतकी येळेगावकर ने इस सत्संग के समापन के समय ध्यान में आई श्री. नीरज आवदे की पुत्री कु. श्रीराधा की गुणविशेषताएं बताईं । उसके पश्चात सदगुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने घोषणा की ‘‘कु. श्रीराधा का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत है । अतः कु. श्रीराधा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गई है ।’’ यह सुनकर श्री. नीरज एवं उनकी पत्नी श्रीमती वर्षा के भावाश्रु आ गए ।
कु. श्रीराधा आवदे की गुणविशेषताएं
१. मुद्रा करना : कु. श्रीराधा जन्म से ही, विशेष रूप से सोते समय एक अथवा दोनों हाथों की उंगलियों से मुद्रा करती है ।
२. सात्त्विकता में रुचि : परात्पर गुरु डॉक्टरजी का छायाचित्र, देवता के चित्र, सनातन पंचांग और सनातन के ग्रंथों की ओर देखकर वह तुरंत हंसकर प्रत्युत्तर करती है । साथ ही ‘जय श्रीराम’, ‘हर हर महादेव’, ‘जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम्’ जयघोष करते समय श्रीराधा भर-भरकर प्रत्युत्तर करती है ।
– श्रीमती वर्षा नीरज आवदे, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश.
आनंदित एवं सात्त्विकता में रूचि रखनेवाली कु. श्रीराधा नीरज आवदे !
वैशाख कृष्ण पक्ष नवमी (१६.५.२०२०) को श्रीराधा का जन्मदिवस था । उसकी मां तथा देहली सेवाकेंद्र की साधिकाओं को उसकी प्रतीत गुणविशेषताएं आगे दे रहे हैं –
१. जन्म से पूर्व
१ अ. विवाह के पश्चात २ बार गर्भपात होना, तीसरी बार ९वे महीने में शिशु की धडकनें रूकने से गर्भ निकालना पडना और सद्गुरु पिंगळेजी का मार्गदर्शन मिलने से उस स्थिति में भी स्थिर रहना संभव होना : वर्ष २००९ में हमारा विवाह हुआ । पति विवाह के पूर्व से ही सनातन संस्था के मार्गदर्शन के अनुसार साधना और प्रासंगिक सेवा करते थे । विवाह के पश्चात वर्धा जानेपर मेरी साधना का आरंभ हुआ । विवाह के पश्चात पहले ३ वर्ष में मेरा २ बार गर्भपात हुआ । आगे जाकर वर्ष २०१६ में नौकरी के कारण हम नोएडा में रहने आए । वर्ष २०१८ में मुझे तीसरी बार गर्भधारणा हुई; परंतु ९वें महीने में शिशु की धडकनें रूक जाने से चिकित्सालय में भर्ती होकर गर्भ को निकालना पडा । तब हमें सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का मार्गदर्शन मिला और उससे बहुत धीरज मिला । मानसिक एवं चिकित्सकीय दृष्टि से बहुत कठिन प्रसंग होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से हम इस प्रसंग से बाहर निकले ।
१ आ. पुन्हा गर्भ धारण होनेपर सद्गुरु पिंगळेजी द्वारा बताए अनुसार प्रार्थना एवं नामजप करना और उसके पश्चात बिना किसी कष्ट के बालक का सुरक्षित जन्म होना : वर्ष २०१८ में मुझे चौथी बार गर्भधारणा हुई । उस समय मुझे पहले जैसा किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ । मैं जब नामजप करती थी, तब गर्भ हलचल कर प्रत्युत्तर करता था । इस अवधि में मेरी और मेरे पति की व्यष्टि साधना अच्छी होने लगी । ८ महीने पूरे होनेपर २८.५.२०१९ मुझे लडकी हुई ।
२. जन्म के पश्चात
२ अ. जन्म से २ महीने
२ अ १. शिशु के रोते समय पति ने उसके पास जाकर ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करनेपर रोना बंद कर शिशु का नामजप की ध्वनि की दिशा में देखना : मेरे गर्भवती होने की अवधि में हम ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करते थे । बच्चे का जन्म होनेपर मेरे पति शिशु को देखने चिकित्सालय आए । वहां शिशु को रखा गया था और तब वह रो रहा था । मेरे पति उसके पास गए और उन्होंने धीमे स्वर में ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप किया । नामजप सुनते ही शिशु शांत हुआ और वह ‘आवाज कहां से आ रही है’, यह देखने लगा ।
२ अ २. बच्ची का नाम ३ अक्षरीय होना चाहिए, ऐसा बताते समय सद्गुरु पिंगळेजी के मुख से ‘श्रीराधा’ नाम आना और बच्ची का नामकरण कर वही नाम रखना : हम दोनों को बच्ची का नाम ‘राधा’ रखना चाहिए, ऐसा लगा । उससे हमें निरंतर ‘श्रीकृष्णजी की कृपा का भान होगा’, ऐसा हमें लग रहा था । मेरे पति जन्म प्रमाणपत्रपर (बर्थ सटिर्र्फिकेट पर) ‘राधा’ नाम डालकर भी आ गए । राधा जब २ महीने की थी, तब हम उसे लेकर सद्गुुरु पिंगळेजी से मिलने गए थे । तब उन्होंने कहा, यदि ”आप में भाव है, तो हम उसका नाम ‘राधा’ रख सकते हैं; परंतु ‘लडकी का नाम ३ अक्षरीय रखना चाहिए’, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है, उदा. ‘श्रीराधा”. हमें ‘श्रीराधा’ नाम बहुत अच्छा लगा । हमें सरकारी कार्यालय में जन्म प्रमाणपत्रपर अंकित ‘राधा’ के स्थानपर ‘श्रीराधा’ नाम बदलकर भी मिला ।
२ आ. ३ से ५ महीने
२ आ १. हंसमुख और आनंदी : श्रीराधा बहुत हंसमुख है । वह सदैव आनंदी रहती है और उसके साथ रहनेवाले सभी को भी आनंद देती है । उसे कभी किसी प्रसंग से कष्ट हुआ, तभी वह रोती है । श्रीराधा को देखकर साधकों को, परिवारवालों को और परिचित व्यक्तियों को बहुत आनंद होता है । उसका मुख और उसका हंसना बहुत मोहक है ।
२. आ २. मुद्रा करना : श्रीराधा जन्म से ही विशेषः जब वह सो रही होती है, तब वह हाथों की उंगलियों से मुद्रा करती है ।
२ इ. ६ से ८ महीने
२ इ १. मोरपंख से तुरंत कुदृष्टि दूर होना : श्रीराधा जब रोती है अथवा उसे कोई कष्ट होता है, तब सद्गुुरु पिंगळेजी द्वारा दिए गए मोरपंख से उसकी कुदृष्टि निकालनेपर तुरंत परिणाम मिलता है ।
२ इ २. सात्त्विक पदार्थ प्रिय होना : मैं नामजप करते हुए श्रीराधा को खाना खिलाती हूं । भोजन करते समय श्रीराधा बहुत आनंदित होती है । उसे सात्त्विक पदार्थ और फल बहुत प्रिय हैं ।
२ इ ३. तनिक भी कष्ट न होना : हम घर में दोनों ही होते हैं; इसलिए मुझे श्रीराधा को साथ लेकर ही काम करने पडते हैं । श्रीराधा भोजन करते समय अथवा अन्य समयपर तनिक भी कष्ट नहीं देती ।
२ इ ४. सात्त्विकता में रूचि
अ. सवेरे जागनेपर श्रीराधा नहीं रोती है । हम ‘कराग्रे..’ एवं श्रीकृष्णजी का श्लोक बोलकर उसके दिन का आरंभ करते हैं । उसकी हंसी बहुत मनोहर होती है । नित्य पूजा, होमहवन आदि प्रसंगों में वह आनंदित होती है ।
आ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी का छायाचित्र, श्रीकृष्णजी एवं दत्तजी के चित्र देखकर श्रीराधा तुरंत प्रत्युत्तर करती है । सनातन पंचांग और सनातन के ग्रंथों की ओर देखकर वह अच्छे से हंसकर प्रत्युत्तर करती है ।
२ ई. ९ से ११ महिने
१. ‘जय श्रीराम’, ‘हर हर महादेव’, ‘जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम्’ का जयघोष करते समय श्रीराधा प्रचुर मात्रा में प्रत्युत्तर करती है । उसे गाडी में बिठानेपर जयघोष करना बहुत प्रिय है । हम यदि जयघोष करना भूल गए, तो वह हमारी ओर मुडकर देखती है और हमें जयघोष करने का भान करा देती है । जयघोष करनेपर श्रीराधा को होनेवाला आनंद देखने जैसा होता है ।
२. उसे शंखनाद बहुत प्रिय है ।
३. हम जब नामजप करने बैठते हैं, तब ‘श्रीराधा बहुत आनंदित होती है ।’
– श्रीमती वर्षा नीरज आवदे (मां), ग्रेटर नोएडा, उत्तरप्रदेश. (८.२.२०२०)
श्रीकृष्ण की चित्र की ओर जाने का तथा उनके साथ बातें करने का प्रयास करनेवाली श्रीराधा !
‘सद्गुरु पिंगळेजी की यात्रा के समय मुझे श्री. नीरज अवधे के घर जाने का अवसर मिला । हम जब उनके घर गए, तब आरंभ में श्रीराधा सब में नहीं घुल-मिल रही थी और रो भी रही थी । जब मैने उसे चल-दूरभाषपर स्थित श्रीकृष्णजी का और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र दिखाया, तब वह आनंदित एवं उत्साहित हो गई । श्रीकृष्णजी का चित्र देखकर वह उनसे प्रेम कर रही थी । तब वह श्रीकृष्णजी के साथ बोल रही है, ऐसा मुझे लगा । तब उसकी आवाज भी बदल गई थी ।’ – कु. मनीषा माहुर, देहली (८.२.२०२०)