परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
- ‘हिन्दुओं, संपूर्ण विश्व में ही नहीं, अपितु हिन्दू बहुसंख्यक भारत में भी हिन्दुओं के लिए दुःखदायक समाचार, मृतवत हिन्दुओं के कारण बढ रहे हैं । इससे निराश न होकर साधना करते रहें । वर्ष २०२३ से हिन्दुओं के लिए काल पूरक होगा और वह १००० वर्ष तक रहेगा, ऐसा अनेक संतों ने और नाडी भविष्य में बताया है ।’
- ‘बुद्धिजीवियों का यह कहना कि बुद्धि के परे ईश्वर नहीं होते, यह नर्सरी के बच्चों का डॉक्टर, अधिवक्ता आदि नहीं होते हैं’, ऐसा बोलने समान है !
- ‘शरीर में यदि कीटाणु हों, तो वे शरीर में ली गई औषधि के कारण मरते हैं । वैसे ही, वातावरण में विद्यमान नकारात्मक रज-तम यज्ञ के स्थूल एवं सूक्ष्म धुएं से नष्ट होता है ।‘
- ‘विज्ञान का अध्यात्म के सिद्धांतों के विषय में कुछ बोलना, बच्चे का बडों के विषय में कुछ बोलने समान है !’
- ‘मानव को मानवता न सिखानेवाला, इसके विपरीत विध्वंसक अस्त्र, शस्त्र देनेवाले विज्ञान का मूल्य शून्य है !’
- ‘गणित और भूगोल अनोखे विषय हैं । एक की भाषा में दूसरे विषय को नहीं समझा सकते । वैसे ही विज्ञान और अध्यात्म दोनों निराले विषय हैं, यह विज्ञान को समझना आवश्यक है ।’
- ‘राजकीय पक्ष ‘ये देंगे, वो देंगे’, ऐसे कहकर जनता को स्वार्थी और अंत में उन्हें दुःखी बना देते हैं । इसके विपरीत साधना हमें धीरे-धीरे सर्वस्व का त्याग करना सिखाकर चिरंतन आनंद की, ईश्वर की प्राप्ति कैसे करनी है, यह सिखाता है ।’
- ‘निर्गुण ईश्वरीय तत्त्व से एकरूप होने पर ही खरी शांति का अनुभव कर सकते हैं । ऐसा होने पर भी शासनकर्ता जनता को साधना न सिखाकर ऊपर-ऊपर का मानसिक स्तर का उपचार करते हैं, उदा. जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए ऊपर-ऊपर का प्रयत्न करना, मानसिक रोगों के लिए अस्पताल बनवाना इत्यादि ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले