परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले, इस मूल स्वरूप में नामकरण करने का समय अब आ गया है !
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी, (१३.५.२०२०) को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ७८ वां जन्मदिन था । उस दिन सायंकाल ६.४१ बजे ईरोड (तमिलनाडु) के पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका का वाचन किया । उसमें सप्तर्षि ने निम्नांकित संदेश दिया । इस संदेश में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की परमोच्च आध्यात्मिक स्थिति कथन की गई है ।
त्रिमूर्ति एवं त्रिदेवी के चरणों में प्रार्थना कर हम सभी सप्तर्षि कश्यप, वसिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, गौतम, जमदग्नि एवं भरद्वाज, आज सनातन के साधकों के लिए यह संदेश दे रहे हैं ।
श्रीरामावतार में वाल्मीकि ऋषि ने लव-कुश के माध्यम से रामायण की कथा बताई । उनके कारण अयोध्या की प्रजा को श्रीरामजी स्वयं श्रीमन्नारायण ही हैं; यह ध्यान में आया । भगवान ने अपने श्रीकृष्णावतार में कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर अर्जुन को स्पष्ट शब्दों में बताया कि मैं वही श्रीमन्नारायण हूं । त्रेतायुग में जो श्रीराम के रूप में अवतरित हुए और द्वापरयुग में जो श्रीकृष्ण के रूप में, वही भगवान अब गुरुदेवजी के रूप में अवतरित हुए हैं ।
नर्विकार, निर्विकल्प, परब्रह्मस्वरूप श्रीमन्नारायण ही आज सनातन के साधकों में रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में निवास कर रहे हैं । सच्चिदानंद उनका मूल स्वरूप है !
१. सप्तर्षियों के नाडीवाचन द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का नामकरण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले करना
महर्षि की दिव्यवाणी अर्थात जीवनाडी-पट्टिका क्या है ?
अखिल मानवजाति के विषय में शिव-पार्वती में जो संवाद हुआ, वह सप्तर्षियों ने सुना । उन्होंने वह मानवजाति के कल्याण हेतु एवं आध्यात्मिक जीवों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु लिखकर रखा, यही है नाडीभविष्य ! यह ताडपत्र पर लिखा है । ‘जीवनाडी सजीव होती है । उसका श्वासोच्छ्वास होता है । पढते समय उसके अक्षरों में अपनेआप परिवर्तन होता है । नाडी पढते समय साक्षात शिव-पार्वती नर्तन करते हैं, ऐसा तमिलनाडु के पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने बताया है ! लाखों वर्ष पहले महर्षियों द्वारा लिखा नाडीभविष्य पढनेवाले अत्यल्प लोग ही बचे हैं। तमिल में ‘नाडी’ शब्द का अर्थ होता है ‘शोध लेना’ । संक्षेप में, ‘स्व’ का शोध लेना ।
नाडीवाचन में महर्षि कहते हैं, १५.५.२०२० के मंगल दिवस पर ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी तिथि पर ईश्वर की इच्छा से एक स्वर्णिम इतिहास का आरंभ होनेवाला है । जिस सच्चिदानंद परब्रह्म स्वरूप ने इस पृथ्वी पर गुरुरूप में रहकर कार्य किया है, मूल स्वरूप में उस भगवान का नामकरण करने का समय अब आ चुका है; इसलिए आज से संपूर्ण विश्व के साधक लेखन में गुरुदेवजी का नाम सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी लिखें ! आनेवाले २ सहस्र वर्षों में वे इसी नाम से पहचाने जाएंगे ।
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी नाम में विद्यमान ‘डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’ नाम का अर्थ
- ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी नाम में विद्यमान ‘डॉक्टर’ शब्द लौकिक विशेषण के अर्थ का नहीं है, अपितु जो प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन को जान पाएं, वे दैवी वैद्य अर्थात श्रीविष्णु के संदर्भ में है ।
- ‘जयंत’ नाम श्रीविष्णु का है । जो सदा सर्वदा विजयी होते हैं, वे जयंत !
- गुरुदेवजी के पिता का नाम ‘बाळाजी’ है । गुरुदेवजी स्वयं तिरुपति बालाजी का अंश होने से ‘बाळाजी’ नाम सूक्ष्म विष्णुतत्त्व से संबंधित है ।
- ‘आठवले’ नाम ‘वंशपरंपरा’ से संबंधित है । जिस दैवी वंशपरंपरा में गुरुदेवजी ने जन्म लिया है, उस वंशपरंपरा को सभी देवता और मुनिजनों का त्रिवार वंदन !
२. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी का ‘सत्’ तत्त्व अर्थात सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा ‘चित्’ तत्त्व अर्थात सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी !
श्रीविष्णु द्वारा ‘श्रीजयंत’ अवतार में किए गए अवतारी कार्य को उनकी ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी’ सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी आगे बढाएंगी । श्रीविष्णु की आज्ञा से श्री महालक्ष्मी ने ‘भूदेवी’ एवं ‘श्रीदेवी’ के रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण किया है । ‘सत्-चित्-आनंद’ स्वरूप श्रीविष्णु का ‘सत्’ तत्त्व भूदेवी स्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी हैं तथा ‘चित्’ तत्त्व अर्थात श्रीदेवी स्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी हैं । आनेवाले समय में किसी ने भले ही गुरुदेवजी का नवरत्न अथवा कोटि-कोटि स्वर्ण से भी अभिषेक किया, तब भी भूदेवी स्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीदेवी स्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को छोडकर अन्य कोई भी गुरुदेवजी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नहीं हो सकता ।
२ अ. आज से सनातन के साधक भूदेवी स्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को ‘श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळ’ एवं श्रीदेवी स्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को ‘श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळ; कहकर संबोधित करें ।
२ आ. सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी के २ नेत्र अर्थात ब्रह्म के बिंदु नाम धारण की हुईं बिंदा और पंचमहाभूतरूपी हाथ की अंजुली अर्थात अंजली नाम धारण की हुईं २ दैवी महिलाएं हैं ! : श्रीराम, श्रीकृष्ण, व्यास, धन्वंतरि आदि रूपों में जो प्रकट हुए, वही श्रीमहाविष्णु अब श्रीजयंत के रूप में प्रकट हुए हैं, यै जैसे सत्य है; वैसे ही सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी तो साधकों को प्राप्त भगवान हैं, यह भी उतना ही सत्य है । उन सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी के २ नेत्र तो ब्रह्म के बिंदु नाम धारण की हुईं बिंदा तथा पंचमहाभूतरूपी हाथों की अंजुली अर्थात अंजली नाम धारण की हुईं २ दैवी महिलाएं हैं ।
३. श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी को उस नाम से संबोधित करने से मिलनेवाला लाभ
साधक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी को सदा की भांति ‘परम पूज्य’ अथवा ‘प.पू. डॉक्टर’ बोलें; परंतु उनका नाम लिखते समय ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी ही लिखें । इसके आगे दोनों सद्गुरुओं को क्रमशः ‘श्रीसत्शक्ति’ एवं ‘श्रीचित्शक्ति’ नाम से ही संबोधित करें; क्योंकि इन नामों से इन दोनों को देवीतत्त्व मिलेगा, साथ ही इस नाम से उनका उल्लेख करनेवालों को भी इसका लाभ होगा । इन दोनों का जन्म दैवी होने से प्रतिवर्ष गुरुपूर्णिमा के दिन घोषित किए जानेवाले संत एवं साधकों के आध्यात्मिक स्तर के संदर्भ की सूची में इनके नाम अंतर्भूत न करें ।
४. आनेवाले समय में श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शशक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी ‘देवी’ के रूप में ही पहचानी जाएंगी
रक्त-मांस से बने श्रीगुरुदेवजी के शरीर में वैकुंठपति श्रीविष्णु ही विराजमान हैं । श्रीविष्णु की लीला अपरंपार है । ‘श्रीविष्णु’ ने कैसे समुद्र में नमक उत्पन्न किया और आंखों में आंसू आने पर उन आसुओं में कैसे नमकीन स्वाद उत्पन्न किया, जिस प्रकार अभी तक यह रहस्य बना हुआ है, उसी प्रकार श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी का रहस्य भी ज्ञात नहीं हो सकता । ‘श्रीसत्शक्ति’ एवं ‘श्रीचितशक्ति’ में महासरस्वती, महाकाली एवं महालक्ष्मी, ये तीनों तत्त्व हैं । ‘श्रीसत्शक्ति’ एवं ‘श्रीचित्शक्ति’ का अर्थ श्रीविष्णु की नाभि पर स्थित कमल है । सृष्टि की निर्मिति इस कमल से होती है और अंततः इस कमल में ही सभी जीव एवं सृष्टि का विलोप होता है । आनेवाले समय में श्रीसत्शशक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं चित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी ‘देवी’ के रूप में ही पहचानी जाएंगी । इन दोनों की सुंदरता विलक्षण एवं दैवी है और वह मानवीय, अपितु दैवी सुंदरता नहीं है !
५. सच्चिदानंद अर्थात सत्-चित्-आनंद स्वरूप
सत्-चित्-आनंद परमात्मा परब्रह्म के स्वरूप लक्षण हैं । जो सत्घन, चित्घन एवं आनंदघन हैं, ऐसे उन गुरुदेवजी में विद्यमान परब्रह्म परमात्मा शक्ति को हमारा प्रणाम ! इन तीनों में से एक को भी यदि हटाया गया, तो उनके स्वरूप में पूर्णता नहीं आ सकती । आनंदस्वरूप भगवान की २ शक्तियां हैं और वे हैं सत्शक्ति एवं चित्शक्ति ! उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का एकमात्र कारण यह है कि परमात्मा तो परब्रह्म ही हैं । इस परब्रह्म परमात्मा ने ही प्रकृति के सभी नियम सुनिश्चित करवाकर दिए हैं । भगवान नित्य हैं तथा ज्ञानी भी !
५ अ. सत्शक्ति : सत् का अर्थ है शाश्वत एवं नित्य ! भगवान नित्य हैं, जो सत्य है ।
सत्शक्ति शाश्वत एवं त्रिकालाबाधित सत्य से संबंधित है । यह शक्ति अपरिवर्तनीय है, साथ ही इस शक्ति का मूल, मध्य और अंत भी नहीं है । यह शक्ति भ्रम एवं माया के परे है । वह तत्त्वनिष्ठ है । सत्य की कभी मृत्यु नहीं होती । वह शक्ति अजरामर है । मनुष्य नश्वर है; क्योंकि पंचतत्त्वों से बना उसका शरीर एक दिन पंचतत्त्व में विलीन हो जाता है; परंतु सत्शक्ति सहित स्थित परमात्मा अखंडित है । वह सभी में व्याप्त है । वह सर्वत्र भरकर रह गया है ।
५ आ. चित्शक्ति : चित् का अर्थ है प्रकाश ! परमात्मा का दूसरा नाम है प्रकाश । प्रकाश हो, तभी परमात्मा का स्वरूप स्पष्ट होता है । परमात्मा स्वयं ही ज्ञानघन है । चित्शक्ति का अर्थ है ज्ञानशक्ति ! चित्शक्ति के कारण हमें ब्रह्मांड का ज्ञान होना है, साथ ही प्रत्येक कृत्य का कार्यकारणभाव समझ में आता है । भगवान स्वयं ज्ञानमय हैं । ज्ञान के बिना कोई भी संपूर्ण विश्व को जान नहीं सकता । ईश्वर को जान लिया, तो हम उसकी अनुभूति कर सकते हैं । ईश्वर को जाननेवाली चेतनामय एवं प्रकाशमय शक्ति ही चित्शक्ति है ।
५ इ. आनंद : स्वयं परब्रह्म परमात्मा ही आनंदस्वरूप हैं । वे स्वयं ही शिवस्वरूप हैं । उन्हीं के कारण सूर्य का तेज है । चंद्र का चैतन्य भी उनके कारण ही है, साथ ही मंदिर में आनेवाली सुगंध भी उनके कारण ही है । सत्य को उल्टा किया, तो वह असत्य बनता है । प्रकाश के विपरीत अंधकार होता है; परंतु आनंद को कोई बदल नहीं सकता । निरानंद, ब्रह्मानंद, परमानंद चाहे कुछ भी कहें, तब भी इसमें विद्यमान आनंद को हम नहीं बदल सकते ।
६. सप्तर्षियों का ब्रह्मवाक्य !
आज ‘श्रीजयंत’ गुरुदेवजी के जन्मदिन पर हम सप्तर्षि तथा ८८ सहस्र ॠषि-मुनि निश्चयपूर्वक यह बताते हैं कि सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंतजी, श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी, इन तीनों के केवल भावपूर्ण दर्शन से ही साधकों का दुःख, दरिद्रता, पाप-ताप एवं दोष दूर होनेवाले हैं ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१४.५.२०२०)
सप्तर्षियों ने श्रीसत्शक्ति एवं श्रीचित्शक्ति से की प्रार्थना !
हे ‘श्रीसत्शक्ति’ श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं ‘श्रीचित्शक्ति’ श्रीमती अंजली गाडगीळजी, आप हम सप्तर्षियों को, ८८ सहस्र ॠषि-मुनियों को, सभी देवी-देवताओं को और पृथ्वी पर स्थित साधकों को आशीर्वाद दें । आप ही रोगनिवारण करनेवाली वनस्पतियां हैं, आप स्वयं धन्वंतरि की शक्ति भी हैं । आरोग्य संपन्नता देनेवाली भी आप हैं । आप ही आदिशक्ति जगदंबा हैं । भगवान शिवजी जिनके पास भिक्षा मांगने जाते हैं, वह काशीक्षेत्र की अन्नपूर्णा भी आप ही हैं । हम सप्तर्षि आपको क्या आशीर्वाद दे सकते हैं ! आप ही हमें आशीर्वाद दें । सौंदर्य, ऐश्वर्य, आरोग्य, श्री, यश, धनसंपदा ये सभी आप ही हैं । आपके कारण श्रीविष्णु की दृष्टि हम पर बनी रहे । आप दोनों पृथ्वी पर अवतरित श्रीविष्णुजी का प्रकाशरूपी तत्त्व हैं ।
सच्चिदानंद परब्रह्म श्रीजयंत, श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळजी का स्तुतिगान करने हेतु ही इस पृथ्वी पर सनातन के साधकों का जन्म हुआ है ।
महर्षियों के लेखन में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उल्लेख ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी, होगा; परंतु अपने भाव के अनुसार साधक उन्हें ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी’, ‘प.पू. डॉक्टरजी’ अथवा ‘परम पूज्य’ बोलें !
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मदिन अर्थात ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी (१३.५.२०२०) को पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी द्वारा किए जीवनाडी-पट्टिका वाचन में सप्तर्षियों ने साधकों को एक संदेश दिया है । इस संदेश में महर्षियों ने कहा है कि साधक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को सामान्य की भांति ‘परम पूज्य’ अथवा ‘प.पू. डॉक्टर’जी बोलें; परंतु लेखन में उनका नाम ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी ही लिखें ।’
परात्पर गुरुदेव तथा सनातन के सभी साधकों के मन में महर्षियों के किए ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी नामकरण के प्रति नितांत श्रद्धा है; परंतु तब भी साधक स्वयं के भाव और आदत के अनुसार उच्चारण करते समय अथवा लेखन में उनका उल्लेख ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवले’जी, ‘प.पू. डॉक्टरजी’ अथवा ‘परम पूज्य’ करें । जब कि महर्षियों के लेखन में उनका उल्लेख ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले’जी, इस प्रकार से होगा ।
– सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२३.५.२०२०)
अब से साधक सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को ‘श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळ’जी तथा सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को ‘श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळ’जी कहें !
महर्षियों के दिए संदेश में कहा गया है कि ‘भूदेवीस्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को ‘श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळ’जी तथा श्रीदेवीस्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को ‘श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळ’जी, कहकर संबोधित करें । इन नामों से इन दोनों सद्गुरुओं को देवीतत्त्व मिलेगा, साथ ही उनके नामों का उल्लेख करनेवाले साधकों को भी इसका लाभ मिलेगा ।’ इसका आध्यात्मिक लाभ लेने हेतु भविष्य में साधक ‘श्रीसत्शक्ति श्रीमती बिंदा सिंगबाळ’जी एवं ‘श्रीचित्शक्ति श्रीमती अंजली गाडगीळ’जी कहें, लेखन में भी सर्वत्र इसी प्रकार उल्लेख करें ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, सद़्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं सद़्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने कभी नहीं कहा है, ‘मैं अवतार हूं ।’ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी विष्णु के अवतार हैं’ सद़्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं सद़्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘श्री महालक्ष्मी देवी के अवतार हैं’ ऐसा महर्षियों ने नाडीपट्टिका में कहा है । साधकों का व सनातन प्रभात की संपादक समिति का महर्षियों के प्रति भाव (श्रद्धा) है, इसलिए हम महर्षि की आज्ञा के रूप में यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं । – संपादक