Third ‘Maharashtra Mandir Nyas Parishad’ Shirdi : अन्य धर्मियों के प्रार्थनास्थल सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं; परंतु हिन्दुओं के मंदिर ही सरकार के नियंत्रण में क्यों ? – पू. रामगिरी महाराज, मठाधिपति, सद्गुरु गंगागिरी महाराज संस्थान, नगर

संतों एवं सैकडों न्यासियों की उपस्थिति में शिरडी में तृतीय मंदिर न्यास परिषद का आरंभ

तृतीय ‘महाराष्ट्र मंदिर न्यास परिषद’ के दीपप्रज्वलन के समय बाईं ओर से श्री. सुनील घनवट, पू. राघवेश्वरानंदगिरी महाराज (दीपप्रज्वलन करते समय), पू. रमेशगिरी महाराज, सद्गुरु सत्यवान कदमजी, श्री. गिरीष शहा एवं श्री. प्रदीप तेंडोलकर

शिर्डी – प्रतिकूल स्थिति में संतों ने मंदिरों की संस्कृति टिकाए रखी । वर्तमान स्थिति में हिन्दू केवल तीर्थस्थलों पर जाते हैं; परंतु यदि उस तीर्थस्थल की पवित्रता नष्ट हो रही हो, तो वे उसकी अनदेखी करते हैं । अध्यात्म हमारी प्रत्येक सांस में तथा रक्त की प्रत्येक बूंद में आना चाहिए । हम यदि धर्म के प्रति निष्क्रीय रहे, तो भविष्य में हिन्दुओं को जीना कठिन होगा । भारत के मस्जिदों एवं चर्च में करोडों रुपए के लेनदेन होते हुए भी सरकार ने भारत की एक भी मस्जिद को अथवा चर्च को अपने नियंत्रण में नहीं लिया है । मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त कराने के लिए हिन्दू सरकार पर दबाव बनाएं, ऐसा आवाहन नगर के ‘सद्गुरु गंगागिरी महाराज संस्थान’के मठाधिपति पू. रामगिरीजी महाराज ने तृतीय महाराष्ट्र मंदिर-न्यास राज्यस्तरीय परिषद में किया ।

संतों की वंदनीय उपस्थिति में नगर-मनमाड मार्ग पर स्थित ‘श्री साई पालखी निवारा’के सभागार में २४ दिसंबर को तृतीय महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद का आरंभ हुआ । महाराष्ट्र के कोने-कोने से आए मंदिरों के ७५० से अधिक न्यासी, पुजारी एवं प्रतिनिधि इस परिषध में सहभागी हैं ।

पू. रामगिरी महाराज

‘हर हर महादेव’, ‘सनातन हिन्दू धर्म की जय हो’ के जयघोष में इस मंदिर-न्यास परिषद का आरंभ हुआ । महाराष्ट्र के कोने-कोने में स्थित ज्योतिबा, पंढरपुर के श्रीविठ्ठल, कोल्हापुर की श्री अंबामाता, नासिक के श्री कालाराम आदि देवताओं से आशीर्वाद लेकर विभिन्न देवस्थानों के न्यासी एवं प्रतिनिधि इस मंदिर-न्यास राज्य परिषद में सम्मिलित हुए । इस २ दिवसीय मंदिर-न्यास परिषद में हिन्दू धर्मकार्य में मंदिरों का योगदान, मंदिरों का सुयोग्य व्यवस्थापन, मंदिर में होनेवाली अप्रिय घटनाओं को रोकना, श्रद्धालुओं के लिए आवश्यक सुविधाएं, मंदिर में वस्त्रसंहिता का पालन आदि विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन, उद्बोधन सत्र, विचारगोष्ठी के माध्यम से विभिन्न उपाय तथा कार्य की अगली दिशा निर्धारित की गई ।

शिरडी की तृतीय महाराष्ट्र मंदिर न्यास राज्य परिषद के उपलक्ष्य में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का संदेश

राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु मंदिर संस्कृति का पुनरुज्जीवन अनिवार्य !

प्राचीन काल में समृद्ध एवं संपन्न देश था । वहां के लोग आनंदित एवं संतुष्ट थे । वहां लौकिक एवं पारलौकिक विद्याएं, साथ ही कला प्रवाहित थीं । इसका कारण यह है कि प्राचीन काल में देवालय वास्तव में सनातन धर्म की आधारशिला थे । सनातन धर्म के ज्ञान का प्रसार, प्रचार एवं संवर्धन का कार्य देवालयों के माध्यम से किया जाता था । उससे धर्मपरायण, राष्ट्रनिष्ठ, विद्वान एवं तेजस्वी पीढी उत्पन्न होती थी । संक्षेप में कहा जाए, तो संस्कृति के संवर्धन में केवल व्यक्ति का ही आध्यात्मिक विकास नहीं, अपितु राष्ट्र का सर्वांगीण विकास समाया हुआ है । दुर्भाग्यवश वर्तमान समय में मंदिरों की वैभवशाली धरोहर क्षीण हुई है । मंदिरों के माध्यम से ईश्वर की भक्ति तो होती हुई दिखाई दे रही है; परंतु राष्ट्रभक्ति एवं धर्मशक्ति की निर्मिति का कार्य होता हुआ दिखाई नहीं देता । राममंदिर तो बन गया; परंतु यद्यपि रामराज्य आना है । इसलिए भारत में वास्तव में रामराज्य लाना हो, तो प्रत्येक मंदिर को राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु आवश्यक मंदिर संस्कृति का पुनरुज्जीवन करना अनिवार्य है । – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, संस्थापक, सनातन संस्था. (२४.१२.२०२४)

‘श्री जीवदाननीदेवी मंदिर संस्थान’के अध्यक्ष श्री. प्रदीप तेंडोलकर, श्री क्षेत्र बेट कोपरगांव के ‘राष्ट्रसंत जनार्दन स्वामी (मौनगिरीजी) महाराज समाधि मंदिर’के पू. रमेशगिरीजी महाराज, सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु सत्यवान कदम, कोपरगांव के ‘श्रीक्षेत्र राघवेश्वर देवस्थाना’के मठाधिपति पू. राघवेश्वरानंदगिरीजी महाराज, ‘समस्त महाजन संस्था’ के राष्ट्रीय व्यवस्थापकीय न्यासी श्री. गिरीश शहा तथा मंदिर महासंघ के राष्ट्रीय संगठक श्री. सुनील घनवट इन मान्यवरों के करकमलों से दीपप्रज्वलन किया गया । दीपप्रज्वलन के उपरांत व्यासपीठ पर उपस्थित मान्यवरों को सम्मानित किया गया ।

इस अवसर पर पू. रामगिरीजी महाराज ने आगे कहा,

१. भक्तों द्वारा मंदिर में समर्पित धन का उपयोग धर्मकार्य के लिए न होकर अन्यत्र होना हिन्दुओं का दुर्भाग्य है । मंदिर से मिलनेवाले अर्पण से संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापन करना, बच्चों को आध्यात्मिक शिक्षा देना जैसे कार्याें के लिए इस धन का उपयोग किया जाना चाहिए । हम विकास के लिए अलग से कर दे ही रहे हैं, तो मंदिरों के धन का उपयोग विकासकार्याें के लिए क्यों ?

२. मंदिरों से अच्छे ढंग से धर्मप्रसार हो सकता है । युवक मंदिर आएं, हनुमान चालिसा का पाठ करें; इसलिए हम युवकों को प्रोत्साहित कर रहे हैं । मनोरंजन के अनेक साधन हैं; परंतु चित्त को संतुष्टि केवल मंदिरों में ही मिलती है । जीवन में जब दुविधा की स्थिति बनती है, उस समय मंदिर आने पर मन को स्थिरता मिलती है; परंतु विधर्मी लोग मंदिरों को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं ।

३. शिरडक्ष के श्री साईबाबा मंदिर में करोडों रुपए की आय होती है; परंतु श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित इस धन का धर्मकार्य के लिए क्या उपयोग होता है ? तिरुपति का बालाजी देवस्थान ईश्वर को न माननेवालों के नियंत्रण में जाना हिन्दुओं के लिए दुर्भाग्यशाली है ।

४. वर्तमान में अनेक स्थानों पर मंदिरों पर आक्रमण हो रहे हैं । जीवन में जब निराशा आती है, उस समय कोई निकट का व्यक्ति पास होना आवश्यक होता है । मन की भावना को परमेश्वर के सामने व्यक्त करने से मन हल्का बन जाता है तथा इसीलिए मंदिरों की आवश्यकता है । मंदिर का अर्थ है ‘मंगलता’ एवं ‘दिव्यता’का स्थान !

५. मंदिर में स्थित भगवान की मूर्ति से देवत्व प्रकट होता रहता है तथा उसके कारण अंत:करण में विद्यमान भाव जागृत होता है । सामाजिक कार्य करनेवालों को मंदिर सामाजिक सेवा का स्थान नहीं लगते । फिल्मों में अभिनय करनेवाली अभिनेत्री देखकर भिन्न भाव जागृत होते हैं तथा मंदिर में स्थित देवी की मूर्ति देखकर भिन्न भाव जागृत होते हैं । यही मंदिरों का श्रेष्ठत्व है ।

६. अंत:करण की स्थिरता एवं शुद्धता के लिए मंदिरों की आवश्यकता है । जब देवता का चरित्र हमारी आंखों के सामने हो, तो हम जीवन में उनका आदर्श सामने रखने का प्रयास करते हैं । इसलिए मंदिर एकप्रकार से समाजसेवा के भी केंद्र हैं ।

ऐसा संपन्न हुआ समारोह !

शंखनाद एवं श्री गणेश के श्लोक से मंदिर न्यास परिषद का आरंभ हुआ । उसके उपरांत मान्यवरों के करकमलों से दीपप्रज्वलन हुआ । उसके उपरांत ब्रह्मवृंद श्री. वैभव जोशी एवं श्री. नीलेश जोशी ने वेदमंत्र का पाठ किया । नासिक के ‘वैजनाथ महादेव देवस्थान’के न्यासी, साथ ही सेवानिवृत्त सेनाधिकारी श्री. किसान गांगुरडे ने पुरोहितों को सम्मानित किया । उसके उपरांत सनातन के सद्गुरु सत्यवान कदमजी ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का संदेश पढकर सुनाया । उसके पश्चात समारोह में उपस्िथत संतों एवं मान्यवरों को पुष्पमाला एवं शॉल-श्रीफल देकर सम्मानित किया गया । मंदिर महासंघ के राष्ट्रीय संगठक श्री. सुनील घनवट ने न्यास-मंदिर परिषद का उद्देश्य विशद किया ।

संतगणों का सम्मान !

पुणे के ‘ओम् जय शंकर आध्यात्मिक प्रतिष्ठान’ मठ के प.पू. पप्पाजी पुराणिक महाराज, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक सदस्य अधिवक्ता पू. सुरेश कुलकर्णीजी, सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडयेजी, अमरावती के ‘अखिल भारतीय श्री गुरुदेव दत्त गुरुकुल आश्रम’के अध्यात्म प्रसारप्रमुख श्री. राजाराम बोधे, पुणे के ह.भ.प. संभाजी महाराज अपुणे, पुणे के डॉ. प्रकाश मुंडे, ‘नृसिंह सरस्वती स्वामी महाराज संस्थान’के ह.भ.प. महेश महाराज तथा श्री सद्गुरु रामनाथ महाराज देवस्थान के प्रतिनिधि श्री. संतोष लोणकर.

मंदिर कोई पर्यटनस्थल नहीं हैं, अपितु मंदिर धर्म के ऊर्जास्रोत हैं । मंदिरों से धर्मशिक्षा मिली, तो उससे धर्माभिमान जागृत होकर हिन्दू धर्म को पुनर्तेज प्राप्त कर देंगे । इसलिए ‘मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त कर मंदिरों को हिन्दुओं के संगठन के केंद्र बनाना आवश्यक है तथा उसके लिए हम संगठित होकर लडाई लडेंगे’, ऐसा निश्चय तीर्थस्थल शिरडी की पवित्र भूमि के मंदिर न्यास परिषद में एकत्र सैकडों मंदिर के न्यासियों ने किया ।