सनातन के ६४ वें संत पू . (श्रीमती) शेऊबाई लोखंडे (उम्र 100 वर्ष) इनका देहत्याग !

पू . (श्रीमती) शेऊबाई लोखंडे

फोंडा (गोवा) – आनंदी निर्मल और सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले इनके प्रति अपार सम्मान रखनेवाले सनातन के ६४ वे संत पू. (श्रीमती) शेऊबाई लोखंडे (उम्र 100 वर्ष) इन्होंने १३ दिसंबर को रात्रि ८ः ३० बजे देहत्याग दिया। उनका धवली, फोंडा में निवास स्थान था। १४ दिसंबर को शाम ५ बजे उनका अंतिम संस्कार किया गया। सनातन के संत पू .सदाशिव परांजपे, साथ ही पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपे सहित सनातन के अन्य संत एवं साधक इन्होंने पू. लोखंडे आजी का अंतिम दर्शन लिया।

पू. (श्रीमती) शेऊबाई लोखंडे इनके पश्चात २ बेटियां, ८ पोते-पोतियां, ४ परपोतियाँ ४ जमाई और १२ परपोते हैं। उनकी पुत्री श्रीमती इंदुबाई श्रीधर भूकन (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत) यह रामनाथी स्थित सनातन के आश्रम में निवास करते हैं और साधना करते हैं। पोते श्री. रामेश्वर भूकन हिंदू जनजागृति समिति में कार्य करते हैं जबकि दूसरे पोते श्री. वाल्मीक भुकन, पोती सौ. मनीषा गायकवाड़, दोनों पोतियां, पोते-पोतियां और पतवंडे सनातन के मार्गदर्शन में पूरे समय साधना कर रहे हैं। इसी प्रकार पू. लोखंडेआजी के परिवार के अन्य सदस्य भी अन्य सम्प्रदायों के अनुसार साधना कर रहे है। ७ फरवरी २०१७ को (श्रीमती) लोखंडेआजी को संतपद पर विराजमान किया गया। उनका सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले और उनके उत्तराधिकारी श्री सत्‌शक्ति ( श्रीमती) बिंदा सिंगबाल और श्री चित्‌शक्ति ( श्रीमती ) अंजलि गाडगिल इनके प्रति बहुत भाव था। वह मांडवगन, तालुका श्रीगोंडा, जिला अहिल्यानगर की मूल निवासी है और पिछले ९ वर्षों से धवली में निवास कर रही थी। देहत्याग के बाद पू .आजी का चेहरा बहुत तेजस्वी, पीला और शांतिपूर्ण लग रहा था। वातावरण में भी अधिक चैतन्य की अनुभूती आ रही थी।

श्री चित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजलि गाडगिल इन्होंने वीडियो के माध्यम से लोखंडेआजी का अंतिम दर्शन किया । इस समय पू . लोखंडे आजी का चेहरा बहुत ही तेजस्वी लग रहा था और पू. लोखंडे आजी के शरीर से रोशनी निकल रही है। वे ध्यान में हैं और उनका जप चल रहा है’, ऐसा श्री चित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजलि गाडगिल इन्होंने अनुभव किया। पू . लोखंडेआजी ने सनातन के कार्य में महान योगदान दिया है। मैं और श्री सत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाल उन्हें हमेशा याद रखेंगे,” ऐसा भी उन्होंने कहा।

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक