लगन से सेवा करनेवाली एवं गुरुदेवजी के प्रति दृढ श्रद्धा रखनेवाली वाराणसी की श्रीमती प्राची जुवेकर ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त !
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – २५ नवंबर को प.पू. भक्तराज महाराजजी के महानिर्वाणदिन को वाराणसी आश्रम की साधिका श्रीमती प्राची हेमंत जुवेकर (आयु ६१ वर्ष) ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुईं, ऐसी घोषणा हिन्दू जनजागति समिति के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी ने की । यह आनंदवार्ता सुनने पर उपस्थित साधकों की भावजागृति हुई । निष्काम एवं समर्पित भाव, अखंड सेवारत साथ ही तीव्र लगन होनेवाली श्रीमती प्राची जुवेकर पिछले २५ वर्षाें से धर्मप्रचार की सेवा कर रही है । उनका पूर्ण परिजन साधनारत है ।
इस समय मनोगत व्यक्त करते हुए श्रीमती प्राची जुवेकर ने कहा, ‘‘यह सब गुरुदेवजी की कृपा से हुआ है ।’’ इस समय कार्यक्रम को ‘ऑनलाइन’ श्रीमती प्राची जुवेकर के पति श्री. हेमंत जुवेकर, पुत्र श्री. प्रशांत जुवेकर एवं बहू श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत) जुडे थे, उन सभी ने अपना मनोगत व्यक्त किया ।
श्रीमती प्राची जुवेकर की गुणविशेषताएं
१. सहनशील
‘श्रीमती जुवेकर को घुटने में असह्य वेदना होती है । उन्हें हो रही वेदनाओं के विषय में वे स्वयं किसी को नहीं बतातीं । उन्हें शारीरिक वेदनाएं हो रही हों, तब भी वे सेवा में कभी छूट नहीं लेतीं ।
२. उन्हें माया के विषय में आसक्ति बहुत कम है ।
३. साधकों को आधार देना
वे प्रत्येक सेवा करने के लिए तत्पर रहती हैैं । वे मेरी सहायता के लिए सदैव तैयार रहती हैं । मुझे उनका बहुत आधार लगता है ।
४. पूछने एवं स्वीकारने की वृत्ति
श्रीमती जुवेकर को सेवा का अधिक अनुभव हैे, तब भी वे सेवा से संबंधित सूत्र उत्तरदायी साधकों से पूछती हैं एवं उनसे चर्चा कर निर्णय लेती हैं । वे अन्य साधकों द्वारा बताए सूत्र स्वीकारती हैं ।
५. उनके जीवन में बहुत कठिन प्रसंग आए, तब भी उनकी गुरुदेवजी पर (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पर) दृढ श्रद्धा है ।
६. सेवा की लगन
श्रीमती जुवेकर दिनभर अत्यधिक सेवा करती हैं । एक बार उन्हें कमर में तीव्र वेदनाएं हो रही थीं, तब डॉक्टर ने उन्हें विश्राम करने के लिए बताया था । उस समय वे पलंग पर लेटे-लेटे सेवा करती थीं । वे सेवा के लिए कोई भी परिश्रम करने के लिए तैयार रहती हैं ।
– श्रीमती सानिका सिंह, सनातन आश्रम, वाराणसी, (२८.६.२०२४)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |