‘हलाल अर्थव्यवस्था’ और ‘जिहादी आतंकवाद’ का संबंध !
‘हलाल अर्थव्यवस्था’ आतंकवाद को सहायक !
पूरे विश्व में ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ संपूर्ण रूप से इस्लामी धार्मिक संस्थाओं द्वारा संचालित की जा रही है । इस व्यवस्था पर किसी भी देश की सरकार का किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है । ‘इस व्यवस्था में प्राप्त धन का उपयोग किसलिए किया जाता है ?’, यह भी संदेह के घेरे में है । हाल ही में वैश्विक स्तर पर ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ और ‘जिहादी आतंकवाद’ का भी संबंध जोडा जा रहा है । इस संदर्भ में कुछ समाचार और ब्योरे आगे दिए हैं ।
अमेरिका में स्थित ‘हलाल प्रमाणपत्र’ देनेवाली संस्था द्वारा आतंकवादी तथा कट्टरपंथी संस्थाओं की आर्थिक सहायता !
‘मिडल ईस्ट फोरम’ की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि विश्व की ‘हलाल प्रमाणपत्र’ देने में अग्रणी संस्था वर्ष २०१२ से इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों की आर्थिक सहायता कर रही है । इस संदर्भ में ‘इस्लामिस्ट वॉच’ के जे.एम. फेल्प्स और सैम वेस्ट्रॉप द्वारा बनाया गया ब्योरा आगे दिया है ।
१. ‘इस्लामिक फूड एण्ड न्यूट्रीशन काउन्सिल ऑफ अमेरिका (IFANCA)’, अमेरिका की ‘हलाल प्रमाणपत्र’ देनेवाली एक प्रमुख संस्था है तथा उसने आतंकी समूहों से संबंध रखनेवाले प्रमुख इस्लामी संगठनों की बडे स्तर पर आर्थिक सहायता की है, जिनमें ‘जमात-ए-इस्लामिया’, ‘हमास’ और ‘अल्-कायदा’ जैसे संगठनों का समावेश है ।
२. ‘IFANCA’ संस्था को इंडोनेशिया, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात, इन तीन प्रमुख ‘इस्लामिक अर्थव्यवस्थाओं’ से मान्यता प्राप्त है । यह संस्था ११ सहस्र से भी अधिक खाद्यपदार्थाें, पेयों, औषधियों और व्यक्तिगत सुरक्षा उत्पादों (पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स) को प्रमाणित करने का दावा करती है और लोगों में इस्लामिक जीवनशैली के विषय में जागरूकता बढाने का कार्य भी करती है । ऐसी सेवाएं ऊपरी स्तर पर आकर्षक दिखाई देती हैं; परंतु वर्ष २०१९ में सार्वजनिक रूप में उपलब्ध ‘इंटरनल रेवेन्यू सर्विस फॉर्म ९९०’ के अनुसार ‘IFANCA’ ने २५० लाख डॉलर से अधिक की आय और लगभग ७०० लाख डॉलर की संपत्ति पंजीकृत की है । एक ‘गैर-लाभकारी’ (No Profit) पद्धति से काम करनेवाली संस्था की संपत्ति में हुई यह प्रचंड वृद्धि निश्चितरूप से ध्यान आकर्षित करनेवाली है ।
३. ‘IFANCA’ द्वारा वर्ष २०१२ से २०१९ के बीच भरे गए आयकर विवरण में स्पष्ट दिखाई देता है कि कट्टरपंथी संस्थाओं और धर्मादाय संस्थाओं को निरंतर धन की आपूर्ति की गई है, उदा. ‘फुरकान अकादमी’ के शेख उमर बलोच, ‘यू-ट्यूब’ पर सार्वजनिक रूप से ‘सेमेटिक’ (हिब्रु भाषी) वंश के विरोध में विषवमन करते रहते हैं, उदा. वे दावा करते हैं कि अमेरिका पर किए गए ‘९/११’ के आतंकी आक्रमण, न्यूजीलैंड की क्राइस्ट चर्च मस्जिद पर की गई गोलीबारी और श्रीलंका में ‘ईस्टर’ के दिन किए गए बमविस्फोटों के लिए जिहादी आतंकी नहीं, अपितु ‘जायोनिस्ट’ (इजरायल समर्थक) उत्तरदायी हैं । ‘IFANCA’ ने वर्ष २०१५ से २०१८ की अवधि में ‘फुरकान एकादमी’ की ३ लाख ६० सहस्र डॉलर की आर्थिक सहायता की है ।
४. ‘इस्लामिक सर्कल ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ (ICNA) की धर्मांतरण हेतु प्रोत्साहित करनेवाली शाखा है ‘गेनपीस’ । ‘ICNA’ पाकिस्तान की ‘अल् खिदमत फाउंडेशन’ की सहयोगी संस्था है । ‘जमात-ए-इस्लामी’ के आधिकारिक जालस्थल पर प्रसारित जानकारी के अनुसार ‘अल् खिदमत फाउंडेशन’ ‘हमास’ जैसे इजरायल के विरुद्ध लडनेवाले आतंकी समूहों की आर्थिक सहायता करती है । ‘IFANCA’ ने वर्ष २०१६ और २०१९ के बीच ‘गेनपीस’ की १ लाख १२ सहस्र डॉलर की और ‘ICNA’ सहायता कोष में ३१ सहस्र २५० डॉलर की सहायता की है ।
५. ‘IFANCA’ ने वर्ष २०१९ में ‘खलील सेंटर’ को १० सहस्र डॉलर्स दिए । यह ‘जकात फाउंडेशन ऑफ अमेरिका (ZFA)’ की परियोजना है । ‘ZFA’ के संस्थापक हलील डेमिर ‘बेनेवोलेंस इंटरनेशनल फाउंडेशन’ के पूर्व अधिकारी हैं । ‘बेनेवोलेंस इंटरनेशनल फाउंडेशन’के ‘अल् कायदा’ से निकटतापूर्ण संबंध होने के कारण अमेरिका ने वर्ष २००२ में उसे ‘आतंकवाद की आर्थिक सहायता करनेवाली’ संस्था घोषित किया था । ‘ZFA’ ने आतंकी समूहों से संबंध रखनेवाले फिलिस्तीनी समूहों की भी आर्थिक सहायता की है ।
ऑस्ट्रेलिया के सांसद द्वारा ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ से कट्टरतावादी संगठनों की सहायता होने का संदेह व्यक्त !
आशंका है कि ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ से मिलनेवाले धन का उपयोग ऑस्ट्रेलिया में ‘शरीयत कानून’ लागू करने और कट्टरतावादी संगठनों की सहायता करने’ के लिए किया जाता है । ऑस्ट्रेलिया के व्यवसायियों पर ‘हलाल प्रमाणपत्र’ लेने का दबाव डाला जा रहा है । ‘हलाल प्रमाणपत्र’से मिलनेवाला लाभ कहां जाता है ?’, यह जानने का अधिकार ग्राहकों को है ।’
– जॉर्ज क्रिस्टेन्सेन, सांसद, ‘नेशनल्स दल’, ऑस्ट्रेलिया.
भारत में भी ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ द्वारा आतंकी गतिविधियों में लिप्त आरोपियों की कानूनी सहायता !
भारत में ‘हलाल प्रमाणपत्र’ प्रदान करनेवाली ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट’ एक प्रमुख संगठन है । दिसंबर २०१९ में ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ के बंगाल के प्रदेशाध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी ने ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ का विरोध करते हुए धमकी दी थी, ‘केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को कोलकाता हवाई अड्डे से बाहर निकलने नहीं देंगे ।’ यही संगठन उत्तर प्रदेश के हिन्दुत्वनिष्ठ नेता कमलेश तिवारी की हत्या करनेवाले आरोपियों का पक्ष रखने में कानूनी सहायता कर रहा है । इस संगठन ने ‘७/११’ का मुंबई रेल बमविस्फोट, वर्ष २००६ का मालेगांव बमविस्फोट, पुणे की जर्मन बेकरी में हुआ बमविस्फोट, ‘२६/११’ का मुंबई आतंकी आक्रमण, मुंबई के जवेरी बजार के शृंखलाबद्ध बमविस्फोट, देहली की जामा मस्जिद में हुआ बमविस्फोट, कर्णावती (अहमदाबाद) बमविस्फोट इत्यादि अनेक आतंकी प्रकरणों में लिप्त आरोपियों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई है । आज के समय में ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ इस प्रकार से ‘लष्कर-ए-तोयबा’ से लेकर ‘इंडियन मुजाहिदीन’, ‘इस्लामिक स्टेट’ जैसे विभिन्न आतंकी संगठनों से संबंधित लगभग ७०० संदिग्ध आरोपियों के अभियोग लड रहा है । उन्होंने इन अभियोगों के १९२ आरोपियों को छुडाने में सफलता पाई है । किसी निर्दाेष व्यक्ति पर अन्याय होने पर उसका अभियोग लडने की बात हम समझ सकते हैं; परंतु ‘प्रत्येक जिहादी आतंकवादी गतिविधि में लिप्त और पुलिस की जांच में दोषी पाए गए सभी के सभी ७०० मुसलमानों को निर्दाेष मानना’ आश्चर्यकारक है और संदेह को बल देता है !