संपादकीय : जहां मंदिर थे, वहां मंदिर ही बनने चाहिए !
उत्तर प्रदेश में काशी एवं मथुरा के उपरांत अब संभल में भी मस्जिद के स्थान पर मंदिर होने का विवाद बढ गया है । दीवानी न्यायालय के आदेश से २४ नवंबर को संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण चल रहा था, उस समय धर्मांध मुसलमानों ने हिंसाचार किया । इसमें पथराव के साथ ही आगजनी भी की गई, जिसमें ५ लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि २० पुलिसकर्मी घायल हो गए । वर्तमान में यहां बडी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है । देश का इतिहास रहा है कि मुगलों के आक्रमण के उपरांत अनेक मंदिरों को तोडकर वहां मस्जिदें बनाई गईं । बाबरनामा में हरिहर मंदिर का उल्लेख है तथा उसके सबूत राजपत्र में भी पाए गए हैं । ज्ञानवापी, मथुरा, वाराणसी, अयोध्या तथा अब जामा मस्जिद में भी हिन्दुओं के मंदिरों के अवशेष मिले हैं । इससे यह प्रमाणित होता है कि पहले वहां हिन्दुओं के मंदिर थे तथा उन मंदिरों को तोडकर ही वहां मस्जिदें बनाई गई हैं । पुरातत्व विभाग के पास भी इसके सबूत हैं । ऐसा होते हुए भी पूरे देश का इस्लामीकरण करने की जिनकी योजना है, उन धर्मांधों से यह देखा नहीं जाता । वे आगबबूला हो गए हैं । अब यही धर्मांध सच्चाई जाने बिना पुलिसकर्मियों तथा हिन्दुओं पर आक्रमण कर उन्हें घायल कर रहे हैं । इससे पूर्व भारतीय पुरातत्व विभाग ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का जब सर्वेक्षण किया था, उस समय वहां हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों सहित कुल ५५ प्राचीन शिल्प पाए गए थे । अयोध्या की भूमि पर हिन्दू मंदिर के अवशेष मिले हैं । जब मंदिर के अवशेषों पर बाबरी मस्जिद बनाए जाने के सबूत मिले थे, तब भारतीय पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त प्रादेशिक निदेशक के.के. मोहम्मद ने मुसलमानों को बाबरी मस्जिद परिसर हिन्दुओं को सौंपने के लिए कहा था । संभल में भी पूरे परिसर के स्थानीय हिन्दुओं को ज्ञात है कि ‘हरिहर मंदिर उनका है’ । यह लोगों की आस्था का विषय है । बाबर ने अयोध्या का श्रीराम मंदिर तथा संभल का हरिहर मंदिर तोडकर उसपर मस्जिद बनाई थी ।
हरिहर मंदिर होने के विषय में मिले अनेक सबूत !
संभल के केलादेवी मंदिर के महंत ऋषिराज गिरी केवल जामा मस्जिद के विषय में केवल दावा नहीं करते, वे पूरे विश्वास के साथ बताते हैं कि वह हमारा मंदिर है तथा हमारा ही रहेगा । हिन्दू पक्ष लंबे समय से मस्जिद के स्थान पर मंदिर होने का दावा कर रहा है । मुसलमान पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर होने की कोई भी प्रविष्टि नहीं है और मंदिर होने का दावा आधारहीन है ।
१९ नवंबर को इस प्रकरण में ८ लोगों ने जिला न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । इनमें सर्वोच्च न्यायालय के हिन्दू पक्ष के (पू.) अधिवक्ता हरिशंकर जैनजी तथा उनके पुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन प्रमुख हैं । ये दोनों ही ताजमहल, कुतुबमिनार, मथुरा, काशी एवं भोजशाला के अभियोग (मुकदमा) न्यायालय में चला रहे हैं । इसके अतिरिक्त अन्य याचिकाकर्ताओं में पार्थ यादव, केला मंदिर के महंत ऋषिराज गिरी, महंत दीनानाथ, सामाजिक कार्यकर्ता वेदपाल सिंह, मदनपाल, राकेश कुमार एवं जीतपाल यादव के नाम हैं । हिन्दू पक्ष का यह दावा है कि इस स्थान पर श्री हरिहर मंदिर था, जिसे तोडकर बाबर ने वर्ष १५२६ में वहां मस्जिद बनाई । हिन्दू पक्ष द्वारा न्यायालय में प्रविष्ट की गई ९५ पृष्ठ की याचिका में २ पुस्तकों तथा एक ब्योरे को आधार बनाया गया है । इनमें ‘बाबरनामा’, आइन-ए-अकबरी पुस्तक तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के (ए.एस.आई. के) १५० वर्ष पुराने ब्योरे का समावेश है ।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट रद्द किया जाए !
तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार ने पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, १९९१ (प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट, १९९१) बनाया । इसके अनुसार देश के किसी भी प्रार्थनास्थल की धार्मिक पहचान वही रखी जाएगी, जो देश की स्वतंत्रता के समय अर्थात १५ अगस्त १९४७ को थी । इसके अंतर्गत किसी भी प्रार्थनास्थल का रूपांतरण करने पर प्रतिबंध लगाया गया है । मूलतः यह कानून मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए ही अनुचित पद्धति से बनाया गया है । वास्तव में देखा जाए, तो देश के जिन-जिन स्थानों पर बडे मंदिर थे, उन मंदिरों को तोडकर मुगलों ने वहां मस्जिदें बनाई हैं । अतएव मस्जिदों को बचाने हेतु मुसलमानों ने बडी चतुराई से तत्कालीन कांग्रेस सरकार को यह कानून बनाने के लिए बाध्य किया था । केंद्र सरकार को संसद में इस कानून को रद्द कर ‘जहां मस्जिदों के स्थान पर मंदिरों के अवशेष मिले हैं, वहां मंदिर ही बनाए जाने चाहिए’, ऐसा कानून बनाना चाहिए; क्योंकि यह समस्या केवल उत्तर प्रदेश के मंदिरों तक ही सीमित नहीं है । यही स्थिति देश के अन्य राज्यों में भी है । मंदिर होने के सबूत मिलने के कारण किसी को आपत्ति जताने का कोई कारण नहीं है ।
धर्मांधों का तुष्टीकरण न सहा जाए !
१० वर्ष पूर्व तक देश में कांग्रेस की सत्ता थी । इस कारण मंदिरों के स्थान पर बनी मस्जिदों पर मंदिर होने का दावा किसी ने नहीं किया; परंतु काल के अनुसार अब स्थिति में परिवर्तन आया है । इसलिए अब ये अभियोग प्रविष्ट हुए हैं । विगत ७० वर्षाें में धर्मांधों ने लव जिहाद, लैंड जिहाद, वक्फ बोर्ड, धर्मांतरण, गोहत्या, दंगे अदि करवाकर हिन्दुओं का दमन किया है । वर्तमान में देश में अराजकता फैलाकर भारत का इस्लामीकरण करने में धर्मांध जुटे हैं । जैसे ही धर्मांधों को दिखता है कि उनकी संपत्ति संकट में है, वे दंगे करवाकर हिन्दुओं से मारपीट करते हैं तथा उनकी संपत्ति लूटते हैं । केंद्र सरकार को अब इन धर्मांधों को पुचकारना छोडकर, उन्हें उनकी जगह दिखा देनी चाहिए । हरिहर मंदिर के लिए कुछ संत अनेक वर्षाें से लडाई लड रहे हैं, यह बात कुछ ही दिन पूर्व सामने आई है । इस विषय में अब कानूनी लडाई चल रही है । इस प्रकरण में जो कुछ भी सबूत उपलब्ध हैं, उन्हें न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है, जिनसे यह प्रमाणित होता है कि मस्जिद वास्तव में हरिहर मंदिर है । इसलिए मुसलमान पक्ष को यह मंदिर शांतिपूर्वक हिन्दुओं को सौंपकर एकता का आदर्श स्थापित करना चाहिए ।
हिन्दुओ, एकजुट होकर संघर्ष करो !
अब हिन्दुओं को भी संगठित होकर मस्जिदों के चंगुल से मंदिरों को मुक्त कराने के प्रयास करने चाहिए । वक्फ बोर्ड कानून के द्वारा मुसलमानों ने हिन्दुओं की भूमि तथा मंदिरों पर अपना वर्चस्व जताना आरंभ किया है । हिन्दुत्वनिष्ठ विचारधारा की सरकार अभी सत्ता में है । इस सरकार के साथ मिलकर हिन्दुओं को संगठित होना होगा । अपने मंदिरों तथा उनकी संपत्ति को अपने नियंत्रण में लेने हेतु अंत तक संघर्ष करना होगा । यदि अभी हिन्दू सतर्क नहीं हुए, तो कहीं हिन्दुओं को आगे पछताना न पडे !
देश के हिन्दुओं एवं मुसलमानों में दूरी उत्पन्न होने के लिए कांग्रेस द्वारा मुसलमानों के तुष्टीकरण हेतु बनाया गया पूजास्थल कानून ही उत्तरदायी है ! |