Durgadi Fort Kalyan : कल्याण (जिला ठाणे) के दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मंदिर ही है !
कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय
ठाणे – कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय ने पिछले ६४ वर्षाें से लंबित कल्याण के दुर्गाडी किले पर स्थित मंदिर से संबंधित अभियोग पर निर्णय दिया है । दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु ‘मस्जिद’ नहीं, अपितु ‘मंदिर’ होने का महत्त्वपूर्ण निर्णय न्यायालय ने दिया है । समस्त हिन्दू धर्मप्रेमियों तथा गढ-किलाप्रेमियों ने इस निर्णय का स्वागत किया है । सभी धर्मप्रेमी हिन्दुओं ने दुर्गाडी किले पर स्थित श्री दुर्गादेवी के मंदिर में जाकर देवी की आरती उतार कर इस निर्णय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की ।
🏯 Victory for Hindus: Durgadi Fort Structure Ruled a Temple!
In a landmark verdict, the Kalyan District and Sessions Court has confirmed that the structure at Durgadi Fort in Kalyan, Thane district, is indeed a temple! 🏛️
This ruling is a significant win for Hindus who have… pic.twitter.com/wDxbXllqng
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) December 10, 2024
जिलाधिकारियों ने भी हिन्दुओं के पक्ष में दिया था निर्णय !
वर्ष १९६० में मुसलमानों ने दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मस्जिद होने का दावा किया था । इस विषय में वर्ष १९७३ में ठाणे जिलाधिकारी के सामने ‘यह वास्तु मस्जिद है अथवा मंदिर ?’, इसका निर्णय हुआ । उस समय हिन्दुओं ने इस वास्तु के ‘मंदिर’ होने के प्रमाण सरकार को प्रस्तुत किए । तब जिलाधिकारी ने भी इस वास्तु के मंदिर होने का ही निर्णय दिया । जिलाधिकारी ने ‘यह वास्तु तो श्री दुर्गादेवी का मंदिर है तथा इस मंदिर में पहले से पूजा-अर्चना चल रही है’, ऐसा स्पष्ट किया था ।
किले पर कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करने हेतु सरकार से अनुमति लेने की न्यायालय की सूचना
दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मंदिर होने के जिलाधिकारी के निर्णय को मुसलमानों ने जिला एवं सत्र न्यायालय में चुनौती दी थी । ‘दुर्गाडी किले की भूमि सरकार की है; इसलिए किले पर कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करना हो, तो सरकार से अनुमति लेनी पडेगी’, ऐसा न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा ।
अधिवक्ता भिकाजी साळवी एवं अधिवक्ता सुरेश पटवर्धन ने न्यायालय में रखा हिन्दुओं का पक्ष
दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु ‘मंदिर’ है, इस पक्ष में महाराष्ट्र सरकार तथा हिन्दू समाज की ओर से अधिवक्ता दिए गए थे । अधिवक्ता भिकाजी साळवी एवं अधिवक्ता सुरेश पटवर्धन ने न्यायालय में हिन्दुओं का पक्ष रखा । मुसलमानों की ओर से दुर्गाडी किले पर दावा किए जाने पर हिन्दू समाज की ओर से प्रतिवादी के रूप में ७ लोगों के नाम दिए गए थे; परंतु उनमें से ६ लोगों की मृत्यु होने से हिन्दू समाज की ओर से प्रतिवादी के रूप में और २२ लोगों के नाम दिए गए थे, जिसे न्यायालय ने स्वीकार किया था ।
दुर्गाडी किला ‘वक्फ बोर्ड’की संपत्ति होने का दावा !
वर्ष २००४ में वक्फ बोर्ड ने दुर्गाडी गड उसकी भूमि होने का दावा किया । वर्ष २०१६ में वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में किले पर स्थित वास्तु से संबंधित आयोग वक्फ बोर्ड ने उसे हस्तांतरित करने की मांग की; परंतु वर्ष २०२२ में न्यायालय ने वक्फ बोर्ड की यह मांग अस्वीकार की ।
धार्मिकस्थल की रक्षा हेतु समर्पित भाव से लडनेवाले सैनिक !दुर्गाडी किले पर स्थित मंदिर की रक्षा हो, इसके लिए जो न्यायालयीन लडाई लड रहे हैं, उनमें सर्वश्री दिनेश देशमुख, सुरेंद्र भालेकर एवं पराग तेली का नाम प्रमुखता से लिया जाना चाहिए । ये किलाप्रेमी अपना समय खर्च कर दुर्गाडी किले पर स्थित मंदिर की रक्षा हेतु वर्षाें से न्यायालयीन लडाई लड रहे हैं । इनमें से श्री. दिनेश देशमुख मलंगगढ पर स्थित श्री मच्छिंद्रनाथ की समाधि की रक्षा के लिए भी न्यायालयीन लडाई लड रहे हैं । धर्मादाय आयुक्त ने सरकारी कागदपत्रों में श्री मच्छिंद्रनाथ की समाधि का ‘श्री पीर हाजी मलंगबाबा’ के रूप में नामकरण किया है । यह नाम बदलकर श्री मच्छिंद्रनाथ की समाधीस्थली का नामकरण ‘श्री मलंग मच्छिंद्रनाथ समाधि’ किया जाए, इसके लिए श्री. दिनेश देशमुख ने ठाणे जिला न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा करना हिन्दुओं का कर्तव्य ! – दिनेश देशमुख, अध्यक्ष, हिन्दू मंचपूर्वजों से प्राप्त अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है । यह हमारा महान इतिहास है । हमने दुर्गाडी किले पर स्थित श्री दुर्गादेवी के मंदिर की रक्षा का व्रत लिया है । प्रत्येक हिन्दू को अपनी संस्कृति की रक्षा हेतु योगदान देना समय की मांग है । |
ईदगाह का विवाद अभी भी जारी !
(ईदगाह का अर्थ है नमाज पढने का स्थान)
दुर्गाडी किले पर दीवार है तथा वह परिसर ईदगाह होने का भी मुसलमानों के द्वारा किया गया है । वर्ष १९७३ में जिलाधिकारी ने किले पर स्थित वास्तु मंदिर होने का निर्णय देते समय उन्होंने कहा कि वहां की दीवार का विषय उनके सामने निर्णय के लिए आया नहीं है, ऐसा कहा । उस समय हिन्दू समाज ने किले पर स्थित दीवार तथा परिसर ईदगाह न होने के विषय में आवेदन किया; परंतु जिलाधिकारी ने उसे अस्वीकार किया । तब से लेकर किले पर स्थित दीवार तथा उसका परिसर को कथितरूप से ईदगाह मानकर मुसलमान ईद के दिन यहां नमाज पढते हैं ।
संपादकीय भूमिकादुर्गाडी किले को अतिक्रमणमुक्त करने हेतु लडाई लडनेवाले प्रत्येक धर्मप्रेमी का अभिनंदन ! अब महाराष्ट्र सरकार राज्य के किलों पर मुसलमानों के द्वारा किए गए इस प्रकार के अतिक्रमणों को हटाने हेतु व्यापक अभियान हाथ में लेकर किलों को अतिक्रमणों से मुक्त करे, यह किलेप्रेमियों की अपेक्षा है ! |