दत्तात्रेय अवतार

सनातन निर्मित भगवान दत्त का सात्विक चित्र

१. भगवान दत्तात्रेय का प्रकट होना

  ‘सृष्टि के रचयिता रजोगुणी ब्रह्मदेव, सत्त्वगुणी श्रीविष्णु और सृष्टि के संहारक तमोगुणी रुद्र, ये तीनों देवता अनसूया के सत्त्व की परीक्षा लेने के लिए भिक्षा मांगने के बहाने अतिथि बनकर आए; परंतु अनसूया के पतिव्रत धर्म के प्रभाव से तीनों देवता शिशु रूप में परिवर्तित हो गए । अत्रि और अनसूया ने देवताओं से ‘उनके पुत्र बनकर रहने’ का वरदान मांगा । तब तीनों देवों ने कहा, ‘दत्त’ का अर्थ ‘दिया’ । अत्रि का पुत्र ‘आत्रेय’ । इस प्रकार उनका नाम ‘दत्तात्रेय’ पडा ।

२. अत्रि, अनसूया और दत्तात्रेय के नाम का प्रतीकात्मक अर्थ

२ अ. त्रिगुण : ‘त्रि का अर्थ है त्रिगुण ।’ जिनपर त्रिगुणों का प्रभाव नहीं होता, वे अत्रि’, इस प्रकार इस कथा की व्याख्या  की है ।

२ आ. अनसूया : घृणा और ईर्ष्या (असूया) बुरी भावनाएं हैं । जिनमें यह भावना नहीं, वे अनसूया हैं ।

२ इ. दत्तात्रेय : दत्तात्रेय का अर्थ है ज्ञान । साधक के सद्गुणी होने पर उसकी वृत्तियां दोषरहित हो जाती हैं । तभी ज्ञान प्रकट होता है ।’

(सौजन्य : श्री. वी.गो. देसाई, ‘गीता मंदिर पत्रिका’, दिसंबर १९९८)


‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप क्यों करें ?

आजकल अधिकांश लोग श्राद्ध तथा साधना भी नहीं करते, इसलिए उन्हें पितृदोष (पूर्वजों की अतृप्ति) के कारण कष्ट होता है । परिणामस्वरूप विवाह, वैवाहिक संबंध, गर्भधारण, वंशवृद्धि आदि में बाधा होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, शारीरिक रोग, व्यसनादि समस्याएं हो सकती हैं । इन समस्याओं के समाधान हेतु कष्ट की तीव्रता के अनुसार ‘श्री गुरुदेव दत्त’ (दत्तात्रेय देवता का) जप प्रतिदिन न्यूनतम २ घंटे (२४ माला) एवं अधिकतम ६ घंटे (७२ माला) करें ।