शारीरिक कष्ट बढने के विविध कारण
‘डॉक्टर, हमारे समय में इतने कष्ट नहीं होते थे; तो इसे अभी से इतने कष्ट क्यों हो रहे हैं’, रोगी कभी-कभी ऐसा पूछते रहते हैं । ‘मेरी दादी ७० वर्ष की आयु में जितनी स्वस्थ थी, उतनी मेरी मां ५० वें वर्ष की आयु में होंगी तथा मैं कदाचित ४० वें वर्ष में होऊंगी । आजकल १०-११ वर्ष के बच्चों से लेकर रोगी आम्लपित्त (एसिडिटी) एवं पाचन विकार आदि की (भूख अल्प होना, पाचन संबंधी शिकायतें) शिकायतें लेकर आते हैं । वर्तमान में कैंसर के रोगी तो घर-घर में दिखते हैं । एक तो निरंतर परिवर्तित हो रहे प्राकृतिक घटक तथा उससे अल्प हुए शारीरिक परिश्रम, इन दोनों के साथ युवा पीढी जैसे-जैसे आगे बढ रही है, वैसे-वैसे उनकी शक्ति क्षीण होती जा रही है, यह तो निश्चित है ! शरीर के विभिन्न घटकों के कारण हो रही सूजन अथवा सूजन संबंधी होते जा रहे ‘इंफ्लेमेट्री’ (क्षोभजन्य) परिवर्तन जैसे लक्षण बहुत ही सामान्यरूप से दिखाई दे रहे हैं ।
उसके निम्न कारण हैं –
अ. फसलों पर छिडकी जानेवाली कीटनाशक औषधियां
आ. मिट्टी की पौष्टिकता तथा बदले हुए बीज
इ. जैसे दूध-घी में की जा रही मिलावट तथा रासायनिक मिलावट
ई. कोरोना महामारी के उपरांत दुर्बल हुई मानसिक क्षमता
उ. प्रदूषणकारी घटकों के कारण बढती जा रही हवा की अम्लता तथा बीमारी उत्पन्न करने की उनकी क्षमता
ऊ. बीमारी को थोडे समय के लिए अल्प करने हेतु मन से औषधियां लेने की आदत तथा उसके उपरांत भी उस बीमारी पर काम न किया जाना
मूलरूप से जब आप अन्न, हवा एवं पानी, इन मूल घटकों पर निर्भर होते हैं तथा वही यदि मिलावटी आती है, तो ऐसे में बीमारी से कोई अछूता नहीं रह सकता, यहां तक कि चिकित्सकीय क्षेत्र में कार्यरत मनुष्य भी ! इसीलिए हमारी दादी जैसे स्वस्थ रहीं, उस प्रकार से स्वस्थ रहने हेतु हमारी पीढी को बहुत अधिक प्रयास करने पडेंगे, यह तो निश्चित है !
– वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये, यशप्रभा आयुर्वेद, पुणे. (११.८.२०२४) (११.८.२०२४)
वर्षा ऋतु में बुखार आने पर तथा बुखार के उपरांत ध्यान रखने योग्य सूत्र
बुखार तथा उसके कारण होनेवाला जोडों का दर्द, शरीर पर फोडे आना, साथ ही लाली के लक्षण अधिक दिखाई दे रहे हैं । वर्षा ऋतु होने से गरमागरम तला हुआ खाने का मोह तथा वर्षा होने से स्वाभाविक ही बाहर जाकर व्यायाम करना भी रुक जाता है । इसके कारण आपका शरीर बीमारी को बहुत शीघ्र निमंत्रण देता है । इसलिए जब वर्षा अधिक होती रहती है, उस समय में ऐसे पदार्थ कभी-कभी ही खाएं ।
वर्षा रुक जाने से अब मच्छर भी बढेंगे तथा मच्छरों के कारण होनेवाली बीमारियों के रोगी भी बढेंगे । सायंकाल में उपले जलाकर नीम के पत्ते, बच, कपूर तथा धूप जलाकर घर के कोने-कोने में उसे घुमाने से लाभ मिलता है । बुखार के समय तथा बुखार समाप्त होने के उपरांत होनेवाले जोडों के दर्द में तेल लगाकर न सेंककर केवल सूखी सिकाई करें । इसके लिए तवे पर कपडा डालकर उसका सेंक, ‘हिटींग पैड’ अथवा गर्म पानी की थैली का उपयोग किया जा सकता है ।
– वैद्या (श्रीमती) स्वराली शेंड्ये