अत्यंत छोटे स्थान पर बहुत ही आनंद के साथ रहकर उस स्थान को मंदिर के गर्भगृह के स्पंदन प्रदान करनेवालीं श्री महालक्ष्मीस्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी !
‘हम पिछले ७ वर्षों से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के साथ चेन्नई के सेवाकेंद्र में रह रहे थे । अब हमने चेन्नई का यह सेवाकेंद्र बंद कर उसे कांचीपुरम् (तमिलनाडु) में स्थानांतरित किया है । चेन्नई सेवाकेंद्र चैतन्यमय हो गया था । उसे वैसा बनाने का कारण श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ही हैं । इस सेवाकेंद्र के विषय में तथा वहां रहते समय सीखने मिले सूत्र यहां दे रहा हूं ।
हमने जब प्रत्यक्ष सेवाकेंद्र देखा, तो वह बहुत छोटा था । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी तथा उनके साथ हम ४ साधक रहनेवाले थे ।’ श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने मुझसे कहा, ‘‘कुछ न होने की अपेक्षा भगवान ने हमें बहुत बडा स्थान उपलब्ध कराया है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी भी उनके छोटे कक्ष में रहकर संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन कर रहे हैं । भगवान ने हमें बहुत बडा स्थान दिया है तथा सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि जब हमारा मन बडा होता है, तब हम पर स्थान की मर्यादा का कोई बंधन नहीं रहता ।’’
१. ‘मन की मर्यादाएं बढाने से हम कहीं भी रहकर कार्य कर सकते हैं’, यह ध्यान में आना
आरंभ में लगा कि ‘यह स्थान बहुत ही छोटा है’; परंतु प्रत्यक्ष वहां रहने के लिए जाने पर यह ध्यान में आया कि स्थान चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, तब भी उस स्थान पर कार्य करने तथा कार्य संपन्न होने की गति बहुत ही तीव्र है । इससे श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के बताए अनुसार स्थान की अपेक्षा यदि हमने अपने मन की मर्यादा बढाई, तो हम कहीं भी रहकर कोई भी कार्य कर सकते हैं’, यह सूत्र सीखने के लिए मिला ।
२. चेन्नई सेवाकेंद्र के स्थान का स्वरूप !
२ अ. बैठक का कक्ष : चेन्नई सेवाकेंद्र में १२ फुट x १२ फुट आकार का एक बैठक है. ‘उसमें ४ फुट x ६ फुट आकार की भोजन की एक बडी चौपाई है । उसके कारण शेष बैठक में कितना स्थान शेष रह गया होगा’, यह ध्यान में आएगा ।
सेवाकेंद्र का रसोईघर केवल ६ फुट x ३ फुट आकार का है । उसके कारण जब कोई साधक अंदर गया, तो अंदर जा रहे साधक को उसके बाहर निकलने की प्रतीक्षा करनी पडती थी; परंतु उसी स्थान पर दोनों को समन्वय रखकर सेवा करनी पडती थी । इतनी समस्या होते हुए भी विगत ७ वर्षाें में हम कभी किसी से नहीं टकराए अथवा धक्का लगकर हाथ से सब्जी अथवा दाल नीचे गिरी हो’, ऐसा एक बार भी नहीं हुआ । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा सुनिश्चित की गई कार्यपद्धति के कारण तथा उनके अस्तित्व से सभी बातें सुचारू होती जा रही थीं ।
२ आ. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का कक्ष बहुत छोटा होते हुए भी उसमें उनका बहुत आनंदित एवं संतुष्ट होना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का कक्ष बहुत ही छोटा था । उनके १० x १० वर्ग फुट के कक्ष में ४ x ६ वर्ग फुट पलंग होने पर वहां कितना स्थान शेष रहा होगा ?’, इसकी हम कल्पना कर सकते हैं । उसमें भी कक्ष में २ फुट x २ फुट आकार की २ छोटी अलमारियां थी; परंतु अलमारी खोलने के लिए केवल १ फुट का स्थान ही शेष रह जाता था । उसके कारण ‘वहां खडे रहकर अलमारी कैसे खोलनी है ?’, यह समस्या होती थी । उसमें भी हम एक समय पर केवल एक ही अलमारी का द्वार खोल सकते थे । उस द्वार को बंद किए बिना दूसरी अलमारी खोली ही नहीं जा सकती थी । कभी दोनों अलमारी के दोनों द्वारा खोलने का प्रयास किया, तो द्वार एक-दूसरे में फंस जाते थे; परंतु ऐसा होते हुए भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के मुख से एक बार भी ‘यह स्थान अपर्याप्त है अथवा इसमें मुझे समस्या हो रही है, आप अन्य विकल्प देखिए’, ऐसा कभी भी सुनने को नहीं मिला ।
२ इ. बैठक में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को बैठने के लिए रखी गई कुर्सी (आसंदी) थोडी भी यहां-वहां की, तो उससे समस्या आकर उन्हें कुर्सी से उठना पडना; परंतु उन्होंने कभी भी इसकी शिकायत नहीं की : बैठक कक्ष में एक फ्रिज भी था, जो मुख्य द्वार के पास था तथा उसी के पास श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का कक्ष था । उनके कक्ष का द्वार तथा फ्रिज के मध्य के स्थान पर उनकी आसंदी रखी गई थी । आसंदी को १-२ इंच भी यहां-वहां किया, तो फ्रिज को खोला नहीं जा सकता था और यदि आसंदी को कक्ष के द्वार की ओर सरकाया, तो साधक उनके कक्ष में नहीं जा पाता था । उसके कारण उन्हें अनेक बार आसंदी को बाजू में कर बैठना पडता था । ऐसे उन्हें दिन में अनेक बार उठना-बैठना पडता था; परंतु उनके मुख से कभी भी सुनने को नहीं मिला कि ‘मुझे कितनी बार उठना-बैठना पड रहा है ।’ इसके विपरीत ऐसी स्थिति में वे स्वयं ही आसंदी से उठकर आसंदी बाजू में कर पुनः बैठती थीं ।
३. चेन्नई सेवाकेंद्र में अनुभव की गई विलक्षणता !
चेन्नई सेवाकेंद्र का बैठक बहुत छोटा था । आश्रम हेतु ली गई वस्तुएं, आश्रम भेजने हेतु आवश्यक सभी सेवाएं हमने इसी कक्ष में कीं । आज तक ‘आश्रम से संबंधित सेवाएं, अनेक यात्राएं, प्रतिष्ठित अतिथियों से मिलना’ जैसी अनेक सेवाएं हमने यहीं कीं । ‘सचमुच अवतारी कार्य कैसे होते हैं तथा कैसे अवतारी कार्य की कोई मर्यादा नहीं होती’, चेन्नई सेवाकेंद्र में हमें इसकी अनुभूति हुई ।
३ अ.‘आश्रम हेतु ली गई वस्तुओं के अनेक बक्से बहुत बडे होते हुए भी उन्हें रखने के लिए बैठक में स्थान ही नहीं है’, ऐसा कभी नहीं हुआ : अनेक बार आश्रम के लिए कभी चित्रीकरण की वस्तुएं, कभी पूजा के बरतन अथवा इस प्रकार की खरीदी गई वस्तुओं के बक्से बडे आकार के होते थे तथा वे संख्या में भी अधिक अर्थात कभी ८ से १२ बक्से भी होते थे । उन बक्सों को हम बाहर नहीं रख सकते थे; इसलिए हम उन्हें बैठक की चौपाई के नीचे रखते थे । भले ही ऐसा हो; परंतु ‘अब स्थान उपलब्ध नहीं है । अब हम कुछ नहीं कर सकते’, ऐसा बोलने की स्थिति हमपर कभी नहीं आई । कभी-कभी ऐसा लगता था कि ‘जैसे यह वस्तुएं बढती हैं, क्या वैसे ही इस कक्ष का आकार भी बढता है ?’ उस समय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के इस वचन की अनुभूति होती थी, ‘आप मन बडा करें, भगवान सबकुछ संभाल लेते हैं ।’
३ आ. चेन्नई सेवाकेंद्र में अनेक बार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी से मिलने हेतु गणमान्य अतिथियों के आने पर भी हमें कभी कोई समस्या नहीं लगी : अनेक बार कुछ गणमान्य अतिथि श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी से मिलने के लिए चेन्नई सेवाकेंद्र में आते थे । यदि एक ही समय ३ अतिथि आ गए, तो हमें रसोईघर के द्वार के पास अथवा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के कक्ष के द्वार के पास खडा रहना पडता था अथवा छोटा मुडा (बैठने हेतु बांस का बनाया हुआ आसन) लेकर बैठना पडता था; परंतु श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की कृपा से कभी नहीं लगा कि ‘हमें सदा परिस्थिति से समझौता करना पडता है ।’
३ इ. सोने के लिए स्थान पर्याप्त न होते हुए भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की कृपा से कभी भी उस प्रकार प्रतीत न होना : रात में सोते समय २ साधक चौपाई के बाजू में सोते थे तथा एक साधक फ्रिज के निकट सिर कर पैरों को चौपाई के नीचे रखकर सोता था तथा एक साधक कक्ष में सोता था; परंतु ऐसा होते हुए भी श्रीचित्शक्ति(श्रीमती) गाडगीळजी के कारण हमें वहां किसी प्रकार का अभाव प्रतीत नहीं हुआ; अपितु उसके विपरीत हम सभी को लगता था तम ‘यह सेवाकेंद्र तो एक राजमहल ही है ।’ श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के वचन का प्रतिक्षण स्मरण होता था, ‘मन बडा होना चाहिए, स्थान नहीं ।’
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने हमें कभी ऐसा प्रतीत होने ही नहीं दिया कि ‘यह सेवाकेंद्र छोटा है तथा यह स्थान पर्याप्त नहीं है ।’ श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को भी कई समस्याएं आती थीं; परंतु तब भी उनकी बातों में अथवा कृति में हमें कभी वैसे प्रतीत नहीं हुआ ।
३ ई. कितनी भी बडी यात्रा कर वापस आने पर तथा साथ में कितनी भी वस्तुएं होते हुए भी सेवाकेंद्र में आने पर १०-१५ मिनट में ही सभी वस्तुएं यथास्थान रख दी जाती थीं : चेन्नई सेवाकेंद्र का स्थान बहुत छोटा होने के कारण वहां रखी जानेवाली प्रत्येक वस्तु का स्थान निर्धारित था तथा उस सामग्री को तुरंत संबंधित स्थान पर ही रखना पडता था । श्री गुरुकृपा से वैसा होता भी था । हम चाहे कितनी भी बडी यात्रा कर वापस आए हों तथा आते समय हमने चाहे कितनी भी वस्तुएं साथ लाई हों, तब भी गाडी खाली करने के १०-१५ मिनट में सभी वस्तुएं संबंधित स्थान पर रख दी जाती थीं । ऐसा करते समय कोई भी वस्तु रखनी शेष रह गई हो अथवा ‘सामग्री अंदर रखने के लिए अब स्थान नहीं है’, ऐसा कभी नहीं हुआ । ‘समय रहते यह सब कैसे पूर्ण होता था’, इसका हमें आश्चर्य होता था । हमारे लिए वह एक चमत्कार ही था ।
सत्य है, ईश्वर ने कार्य करना सुनिश्चित किया, तो उसमें किसी प्रकार की मर्यादा नहीं आती; उसके विपरीत, हम साधक कार्य करने से पूर्व ही ‘यह कार्य कैसे होगा, क्या होगा’, इन विचारों में ही आधा समय व्यर्थ गंवा देते हैं । इन सभी अनुभवों से सीखने को मिला कि ‘अवतारी कार्य कैसे चलता है ।’ अवतार के लिए स्थान की मर्यादा नहीं होती; क्योंकि संपूर्ण ब्रह्मांड ही उनका है ।
४. आनेवाले समय में सभी को सनातन के तीनों गुरुओं का स्मरण रहनेवाला है; इसलिए उनके स्थान भी सभी के स्मरण में रहेंगे
हम रामायण अथवा महाभारत में ‘श्रीराम यहां रहे थे अथवा श्रीकृष्ण यहां रहे थे’, ऐसा पढते हैं । जब हम उस स्थान पर जाते हैं, तब हमारे मन में भाव निर्माण होता है और हम कहते हैं, ‘अरे ! प्रभु श्रीराम यहां रहे थे अथवा श्रीकृष्ण यहां रहे थे !’ सनातन के साधकों, अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों तथा हितचिंतकों के मन में सनातन के तीनों गुरुओं के प्रति अपार भाव है । उसके कारण भविष्य में हमें सुनने को मिलेगा, ‘परात्पर गुरु यहां रहे थे, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी यहां रही थीं तथा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी यहां रही थीं ।’ आगे जाकर सनातन के तीनों गुरु सभी के स्मरण में रहेंगे तथा उसके कारण उनके स्थानों का भी स्मरण रहेगा है ।
५. कृतज्ञता
‘तीनों गुरुओं की कृपा से मुझे चेन्नई सेवाकेंद्र में रहकर अत्यंत अनमोल क्षणों को अनुभव करने का अवसर मिला तथा मैंने जो अनुभव किया, मुझे अपने टूटे-फूटे शब्दों में उसे प्रस्तुत करने का अवसर मिला तथा उन्होंने ही मुझसे यह लिखवा लिया’, इसके लिए मैं तीनों श्रीगुरुओं के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हूं ।’
– श्री. स्नेहल मनोहर राऊत (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत), कांचीपुरम्, तमिलनाडु. (४.१२.२०२३)
चेन्नई सेवाकेंद्र में हुईं अनुभूतियां
१. चेन्नई का सेवाकेंद्र छोडने पर चेन्नई सेवाकेंद्र में आनेवाले संतों एवं साधकों को मंदिर में आने की अनुभूति होना
महर्षियों ने हमें बताया कि ‘आपातकाल की दृष्टि से अब आप यह सेवाकेंद्र कांचीपुरम् में स्थानांतरित कर सकते हैं ।’ उसके उपरांत कांचीपुरम् का स्थान देखकर हमने सेवाकेंद्र को वहां स्थानांतरित किया । जब हम चेन्नई में रह रहे थे, उस समय हमें उस स्थान का महत्त्व ज्ञात नहीं हुआ था; परंतु जब हमने वह सेवाकेंद्र छोडा, तब अनेक संत तथा साधक वहां आए । उन सभी को श्रीचित्शक्ति(श्रीमती) गाडगीळजी के कक्ष में प्रवेश करने पर हम देवी के गर्भगृह में आए हैं, ऐसी सुंदर अनुभूति हुई । अब तक ५ संतों एवं १२ साधकों को अनुभूति हुई कि ‘देवी के गर्भगृह में जो सुगंध एवं स्पंदन प्रतीत होते हैं, वही यहां प्रतीत होते हैं ।’
तब हमारे ध्यान में आया, ‘इतना छोटा स्थान होते हुए भी हमें कभी भी समस्या क्यों नहीं प्रतीत हुई ? चाहे वहां कितनी भी सामग्री क्यों न आए, तब भी वह सामग्री वहां व्यवस्थित रूप से आ जाती थी ? हम इस सेवाकेंद्र की ओर मात्र एक स्थान के रूप में देखते, तो निश्चित ही हमें समस्याएं लगी होतीं; परंतु श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के अस्तित्व से वह सेवाकेंद्र मंदिर बन गया था तथा जहां मंदिर होता है, वहां समस्याएं कैसे आ सकती हैं ?’
२. चेन्नई सेवाकेंद्र के निकट बस्ती बढना
जहां मंदिर होता है, उसके आसपास अपनेआप ही बस्ती बढ जाती है । ऐसे न जाने कितने मंदिर हैं, जिनके आसपास कुछ अवधि उपरांत बस्तियां बस गईं । मंदिर के भगवान उन्हें वहां नहीं बुलाते, अपितु लोग स्वयं वहां आ जाते हैं । यह हमने चेन्नई सेवाकेंद्र के विषय में अनुभव किया । हम जब यहां रहने आए, उस समय उस परिसर में कोई विशेष दुकान अथवा सुविधाएं नहीं थी; परंतु धीरे-धीरे वहां बस्ती बढने लगी । अब ऐसी एक भी वस्तु नहीं है जो यहां न मिले । अब यहां सर्व प्रकार की दुकानें, सब्जी बिक्रेता, अधिकोष आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं ।
– श्री. स्नेहल मनोहर राऊत (४.१२.२०२३)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |